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यह उपनिषद ब्रह्म के शाश्वत सर्वोच्च आनंद के रूप में मुक्ति की बात करता है#viralvideo#sanatani#yoddha

अमृतबिन्दु उपनिषद्, कृष्ण यजुर्वेद से सम्बद्ध एक लघु किंतु अत्यंत महत्वपूर्ण उपनिषद् है, जो योग और आत्मज्ञान पर केंद्रित है। यह उपनिषद मुख्य रूप से **मन** के स्वरूप और उसकी भूमिका को स्पष्ट करता है। इसके अनुसार मन ही बंधन का कारण है और वही मोक्ष का भी माध्यम बनता है। यदि मन इन्द्रिय-विषयों में रमा रहता है, तो वह आत्मा को संसार में बाँध देता है। परन्तु जब वही मन विषयों से हटकर आत्मा में स्थिर हो जाता है, तब वही मुक्ति का द्वार बन जाता है। यह उपनिषद् यह भी कहता है कि केवल वेदों का पठन-पाठन आत्मसाक्षात्कार के लिए पर्याप्त नहीं है। अभ्यास के माध्यम से अपने मन को एकाग्र करता है और आत्मा के स्वरूप का अनुभव करता है। यहाँ शब्दों के जाल को चेतना में भ्रम उत्पन्न करने वाला बताया गया है और आन्तरिक अनुभव को सर्वोपरि माना गया है अमृतबिन्दु उपनिषद का मूल संदेश है "मन को जीतो, आत्मा को जानो, और अमृतत्व को प्राप्त करो।"** यह उपनिषद आत्मानुभूति, वैराग्य, और योग की शक्ति को सरल परंतु अत्यंत प्रभावी शब्दों में प्रस्तुत करता है। अमृतबिन्दु उपनिषद् अत्यंत संक्षिप्त है, जिसमें केवल **22 श्लोक** हैं, परंतु इन थोड़े से श्लोकों में ही यह उपनिषद् सम्पूर्ण जीवन-दर्शन, योगशास्त्र, और आत्मज्ञान का सार प्रस्तुत करता है। इसके प्रत्येक श्लोक में गहराई से भरा हुआ तत्वचिंतन है। यह उपनिषद बताता है कि मनुष्य का वास्तविक उद्देश्य आत्मा को जानना है, और यह तभी संभव है जब मन को संयमित करके ध्यान में स्थिर किया जाए। इन श्लोकों में जीवन की समस्याओं का समाधान, दुखों का मूल कारण, और मोक्ष का मार्ग – तीनों को अत्यंत सरल भाषा में समझाया गया है। जहां अन्य ग्रंथों में विस्तार से विवेचन होता है, वहीं अमृतबिन्दु उपनिषद् सूत्र रूप में केवल मूल तत्त्व को ही प्रस्तुत करता है।
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