चित्तौड़गढ़ का तीसरा जौहर और अकबर की शर्मनाक हार
चित्तोड़ का तीसरा जौहर
३० अगस्त १५६७ के रोज अकबर ‘बारी’ नामक स्थान पर शिकार के कयास से आ पहुंचा। बादशाह के वहा आ पहुँचने से अकबर के बहुत से दरबारी वहा आ पहुंचे। अबुल फजल के मुताबिक वहा इतने सारे सैनिक इक्कठा हो चुके थे के वह किसी राज्य को आसानी से फ़तेह कर सकते थे। फजल आगे लिखता है -मालवे के सुल्तान मिर्ज़ा के बेटे ने उपद्रव मचा रखा था, इस उपद्रव को दबाने के खातर बादशाह ने कुछ सिपासलारो को मालवे की ओर कुच करने का हुकम दिया।
आगे जब धौलपुर में अकबर ने अपनी सेना का पड़ाव डाला तब शक्ति सिंह के साथ इक रोज बातचीत के दौरान अकबर ने चित्तोड़ फ़तेह करने की मंशा जताई,जिसके चलते शक्ति सिंह रातो रात चित्तोड़ आ पहुंचे और उन्होंने राणा उदय सिंह को अकबर द्वारा आक्रमण होने की पूर्व सुचना दी।
१९ सितम्बर १५६७ के रोज,अकबर ने अपना मेवाड़ अभियान शुरू किया।इससे पहले अकबर ने बयाना का परगाना हाजी मुहम्मद खान सिस्तानी से लेकर असफ खां को जागीर में दे दिया।मांडलगढ और वजीरपुर भी आसफ खान को दे दिया गया ताकि वह सेना के लिए सामग्री इक्कट्ठा कर सके।
इधर जैसे ही शक्ति सिंह ने चित्तोड़ पहुँच कर महाराणा उदय सिंह को खबर दी,उदयसिंह ने भी अपनी तय्यरियाँ आरम्भ कर दी। फ़ौरन भावी रणनीती तय करने के लिए सभा बुलाई गई।
राणा उदयसिंह,रावत साहीदास चुण्डावत,रावत नेतसी सारंगदेवोत,राव जयमल राठोड,कुंवर प्रतापसिंह,कुंवर शक्तिसिंह,राव बल्लू सोलंकी,इसरदास चौहान,रावत पत्ता चुण्डावत,रावत साहिब खान चौहान आदि इस सभा में मौजूद थे।मेड़ता के राव जयमल राठोड को किलेदार नियुक्त किया गया,राव बल्लू सोलंकी को मांडलगढ़ की किलेदारी सौंपी गई,कुँवर प्रताप को कुम्भलगढ़ की रक्षा का दाइत्व सौंपकर राणाजी उदयपुर में तैनात रहे।
उदयपुर की ओर रवाना होने से पहले,उदयसिंह ने चित्तोड़ के किले को भारी रसद सामग्री से भर दिया,तथा चित्तोड़ की रक्षा के लिए ८००० राजपूतो को दाइत्व सौंपा गया और बाकी सभी अपने अपने सेना नायको के साथ अन्यत्र ऊपर दिए गये स्थानों पर निकल गए।
चित्तोड़ में मौजूद सरदारों की सूची इस प्रकार है:-
१)राठोड राव जयमल सिंह मेडतिया
२)रावत पत्ता चुण्डावत केलवा
३)रावत नेतसी सारंगदेवोत
४)रावत साईंदास चुण्डावत सलुम्बर
५)इसरदास चौहान
६)साहिबखान चौहान
दूसरी ओर अकबर को उदयसिंह के चित्तोड़ से निकलने की खबर मिलते ही उसने हुसैन कुली खान को उदयसिंह के पीछे भेज दिया।लाख कोशिश के बावजूद उदयसिंह को पकड़ने में हुसैन कुली खान नाकाम रहा और हारकर लौट आया।उदयपुर होते हुए उदयसिंह कुम्भलगढ़ आ पहुंचे।
मांडलगढ़ में राव बल्लू सोलंकी के पीछे अकबर ने असफ खान और वजीर खान को भेजा था,वहाँ युद्ध में बल्लू सोलंकी अपने साथियों समेत काम आया और मांडलगढ़ अकबर ने फ़तेह कर लिया।
मंडलगढ़ से आसफ खान और वजीर खान रामपुर की ओर बढे और रामपुर फ़तेह कर चित्तोड़ लौट आये।
वही दूसरी ओर कुम्भलगढ़ में कई दिनों तक पड़ाव डालने के बाद उदयसिंह वहा से राजपिपला(गुजरात) की ओर निकल पड़े।वहाँ के गुहिल राजा ने उन्हें आश्रय दिया।और कुंवर प्रताप अरावली की पहाडियों में निकल गए जहा से उन्होंने आगे चलकर चावंड को अपनी अस्थायी राजधानी बनाई।
#Chittorgarh
#Jauhar
#चित्तोड़ का तीसरा जौहर
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३० अगस्त १५६७ के रोज अकबर ‘बारी’ नामक स्थान पर शिकार के कयास से आ पहुंचा। बादशाह के वहा आ पहुँचने से अकबर के बहुत से दरबारी वहा आ पहुंचे। अबुल फजल के मुताबिक वहा इतने सारे सैनिक इक्कठा हो चुके थे के वह किसी राज्य को आसानी से फ़तेह कर सकते थे। फजल आगे लिखता है -मालवे के सुल्तान मिर्ज़ा के बेटे ने उपद्रव मचा रखा था, इस उपद्रव को दबाने के खातर बादशाह ने कुछ सिपासलारो को मालवे की ओर कुच करने का हुकम दिया।
आगे जब धौलपुर में अकबर ने अपनी सेना का पड़ाव डाला तब शक्ति सिंह के साथ इक रोज बातचीत के दौरान अकबर ने चित्तोड़ फ़तेह करने की मंशा जताई,जिसके चलते शक्ति सिंह रातो रात चित्तोड़ आ पहुंचे और उन्होंने राणा उदय सिंह को अकबर द्वारा आक्रमण होने की पूर्व सुचना दी।
१९ सितम्बर १५६७ के रोज,अकबर ने अपना मेवाड़ अभियान शुरू किया।इससे पहले अकबर ने बयाना का परगाना हाजी मुहम्मद खान सिस्तानी से लेकर असफ खां को जागीर में दे दिया।मांडलगढ और वजीरपुर भी आसफ खान को दे दिया गया ताकि वह सेना के लिए सामग्री इक्कट्ठा कर सके।
इधर जैसे ही शक्ति सिंह ने चित्तोड़ पहुँच कर महाराणा उदय सिंह को खबर दी,उदयसिंह ने भी अपनी तय्यरियाँ आरम्भ कर दी। फ़ौरन भावी रणनीती तय करने के लिए सभा बुलाई गई।
राणा उदयसिंह,रावत साहीदास चुण्डावत,रावत नेतसी सारंगदेवोत,राव जयमल राठोड,कुंवर प्रतापसिंह,कुंवर शक्तिसिंह,राव बल्लू सोलंकी,इसरदास चौहान,रावत पत्ता चुण्डावत,रावत साहिब खान चौहान आदि इस सभा में मौजूद थे।मेड़ता के राव जयमल राठोड को किलेदार नियुक्त किया गया,राव बल्लू सोलंकी को मांडलगढ़ की किलेदारी सौंपी गई,कुँवर प्रताप को कुम्भलगढ़ की रक्षा का दाइत्व सौंपकर राणाजी उदयपुर में तैनात रहे।
उदयपुर की ओर रवाना होने से पहले,उदयसिंह ने चित्तोड़ के किले को भारी रसद सामग्री से भर दिया,तथा चित्तोड़ की रक्षा के लिए ८००० राजपूतो को दाइत्व सौंपा गया और बाकी सभी अपने अपने सेना नायको के साथ अन्यत्र ऊपर दिए गये स्थानों पर निकल गए।
चित्तोड़ में मौजूद सरदारों की सूची इस प्रकार है:-
१)राठोड राव जयमल सिंह मेडतिया
२)रावत पत्ता चुण्डावत केलवा
३)रावत नेतसी सारंगदेवोत
४)रावत साईंदास चुण्डावत सलुम्बर
५)इसरदास चौहान
६)साहिबखान चौहान
दूसरी ओर अकबर को उदयसिंह के चित्तोड़ से निकलने की खबर मिलते ही उसने हुसैन कुली खान को उदयसिंह के पीछे भेज दिया।लाख कोशिश के बावजूद उदयसिंह को पकड़ने में हुसैन कुली खान नाकाम रहा और हारकर लौट आया।उदयपुर होते हुए उदयसिंह कुम्भलगढ़ आ पहुंचे।
मांडलगढ़ में राव बल्लू सोलंकी के पीछे अकबर ने असफ खान और वजीर खान को भेजा था,वहाँ युद्ध में बल्लू सोलंकी अपने साथियों समेत काम आया और मांडलगढ़ अकबर ने फ़तेह कर लिया।
मंडलगढ़ से आसफ खान और वजीर खान रामपुर की ओर बढे और रामपुर फ़तेह कर चित्तोड़ लौट आये।
वही दूसरी ओर कुम्भलगढ़ में कई दिनों तक पड़ाव डालने के बाद उदयसिंह वहा से राजपिपला(गुजरात) की ओर निकल पड़े।वहाँ के गुहिल राजा ने उन्हें आश्रय दिया।और कुंवर प्रताप अरावली की पहाडियों में निकल गए जहा से उन्होंने आगे चलकर चावंड को अपनी अस्थायी राजधानी बनाई।
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