The Lakes of Delhi - कौन लील गया दिल्ली की झीलें!
The Lakes of Delhi - कौन लील गया दिल्ली की झीलें!
DIU ने पिछले डेढ़ दशक में ली गई सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया तो उनसे संकेत मिले कि एनसीआर की झीलें या तो विलुप्त हो गई हैं या उनके अस्तित्व पर गहरा खतरा मंडरा रहा है.
दक्षिण से लेकर उत्तर तक तेज़ी से बढ़ते कंक्रीट के जंगलों और बेतरतीब विकास ने देश की अनेक झीलों को सूखे उजाड़ में तब्दील कर दिया है. इंडिया टुडे की जांच से ये कड़वी हकीकत सामने आई है.
चेन्नई में पिछले महीने, शहर के चार जलाशयों के पूरी तरह सूख जाने का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया था. इस वजह से चेन्नई को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ा.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने जब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की मैपिंग (नक्शाबद्ध) किया तो चेन्नई जैसे ही खौफ़नाक हालात के आसार दिल्ली और आसपास के उपनगरों में भी दिखे.
DIU ने पिछले डेढ़ दशक में ली गई सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया तो उनसे संकेत मिले कि एनसीआर की झीलें या तो विलुप्त हो गई हैं या उनके अस्तित्व पर गहरा खतरा मंडरा रहा है.
कभी पर्यटक स्थल के तौर पर मशहूर रही फरीदाबाद की बड़खल झील अपनी बदहाली की कहानी खुद ही बयां करती है. हाई-टेक सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ कि बड़खल का विशाल तल 15 साल से भी अधिक समय से पानी को तरस रहा है. विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि इस मृत जलाशय के आसपास अरावली की पर्वत श्रृंखला भी सिकुड़ रही है और साथ ही यहां जीव-जन्तु और पेड़-पौधों पर भी बुरा असर पड़ रहा है. (फोटो: बड़खल झील: 2018 Vs 2019)
एक स्थानीय नागरिक ने इंडिया टुडे को बताया, “कई साल हो गए हमने इस झील में पानी नहीं देखा. जब इस झील में पानी होता था तो यहां खूब पर्यटन होता था. तब यहां मेला सा लगा रहता था. अब सब कुछ ख़त्म हो गया है. ये अब रेगिस्तान जैसा है. हमारे रोज़गार के जरिए भी खत्म हो गए.”
DIU की ओर से तस्वीरों के अध्ययन से पता चलता है कि बीते तीन साल में बड़खल का तेजी से लोप हुआ है.
ड्रोन्स से पता चलता है कि किस हद तक बेतहाशा औद्योगिकरण, कंस्ट्रक्शन, अवैध खनन और खदानों ने झील को नुकसान पहुंचाया. विशेषज्ञों के मुताबिक इन सब ने झील के सतही जल पर बुरा असर डाला. उनका कहना है कि यहां पानी का स्तर 150 से 200 फीट नीचे चला गया.
इंडिया टुडे के DIU की ओर से तैयार किए गए हिस्ट्री-चार्ट से पता चलता है कि बड़खल 1990 में पूरी तरह सूख गई थी तो इसे मौसमी बरसात के पानी से कुछ साल तक बहाल किया गया. लेकिन 2006 के बाद से इसका पानी गायब होता चला गया.
ये तबाही कुदरत की नहीं बल्कि इनसान की गतिविधियों की वजह से आई. पर्यावरणविदों के मुताबिक पर्वत श्रृंखला का सिकुड़ना और संभवत: जलवायु परिवर्तन इसके लिए ज़िम्मेदार है. बड़खल से महज़ 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सूरजकुंड का हाल भी ऐसा ही बुरा हुआ.
दसवीं सदी में पानी को जमा करने के लिए बनाए गए सूरजकुंड (सूरज की झील) भी विलुप्त हो गया.
UAV (मानव रहित उड़न यंत्र) से ली गई तस्वीरों से सूरजकुंड का सूखा तल दिखता है. वही सूरजकुंड जो कभी पानी से लबालब होने की वजह से क्षेत्र के सबसे बड़े जलाशयों में से एक माना जाता था.
दिल्ली
छह महीने पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजधानी को ‘झीलों के शहर’ में तब्दील करने का वादा किया था.
24 दिसंबर को अपने ट्वीट में एनसीआर की सूखती झीलों के कायापलट का भरोसा देते हुए लिखा था- ‘दिल्ली झीलों का शहर बन जाएगा. इससे प्रदूषण घटेगा, भू-जल का स्तर बढ़ेगा, इससे हमारा शहर ख़ूबसूरत बनेगा. इन सभी झीलों को पर्यटन स्थल में विकसित किया जाएगा.’
लेकिन इंडिया टुडे के सर्वे ने पाया कि दिल्ली सरकार का महत्वाकांक्षी झीलों को बचाने का अभियान भी शायद डूब गया है. सैटेलाइट तस्वीरों से दिखता है कि शहर में पानी के स्त्रोत तेजी से इमारतों के निर्माण और संसाधनों के कुप्रबंध की भेंट चढ़ गए हैं.
जो झील कभी पर्यटकों से रहती थी गुलज़ार, अब वहां रेगिस्तान जैसा मंज़र
इंडिया टुडे के रिपोर्टर जब उत्तरी दिल्ली में भलस्वा पहुंचे तो वहां बदबू बर्दाश्त से बाहर थी. कभी भलस्वा को यमुना के उत्तरी मैदान में कभी पानी का अहम स्रोत माना जाता था. इसे इसके आकार की वजह से घोड़े के खुर वाली झील भी कहा जाता था. ज़मीनी रिपोर्ट के मुताबिक ये झील भी प्रदूषणकारी कचरे में डूब गई.
सबसे खराब ये है कि सैटेलाइट तस्वीरों ने दिखाया कि ये जल स्रोत कुछ ही महीनों में सिकुड़ गया. भलस्वा की मैपिंग से खुलासा होता है कि तस्वीरों के लाल निशान प्रतीक हैं कि कैसे झील का पानी पिछले वर्षों में लगातार सूखता चला गया. रिपोर्ट के मुताबिक पड़ोस में कचरे के पहाड़ ने तेजी से सूखते इस स्रोत को जहरीले विस्तार में बदल दिया है.
शाहदरा की वेलकम झील में ऐसा कुछ भी नहीं जिसे स्वागत योग्य कहा जाए. ये झील भी शहरीकरण का शिकार हुई है.
स्थानीय निवासियों के मुताबिक वेलकम झील को दोबारा जीवित करने का 22 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले ही डूब गया.
एक नागरिक ने शिकायत के लहज़े में कहा, ‘पानी यहां सूख गया है. वर्षों से म्युनिसिपल अधिकारी झील को बहाल करने और पार्क स्थापित करने की बात करते रहे हैं. लेकिन कुछ नहीं हुआ.’
पूर्वी दिल्ली में म्युनिसिपल अधिकारियों ने छह साल पहले झील को जीवित करने का प्लान प्रस्तावित किया था. जांच के मुताबिक आज तक ये प्रस्ताव अमली जामा नहीं पहन सका.
दिल्ली सरकार ने बताया, "रजोकरी के बाद दिल्ली सरकार राजधानी में 254 और जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने पर काम कर रही है, ये प्रक्रिया जारी है, इन जल स्रोतों के अलावा शहर के अलग अलग हिस्सों में स्थित 6 झीलों को विकसित किया जा रहा है. इन 6 झीलों की पूरी भूमि 200 एकड़ है. इसके अलावा सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग 5 सूख चूके नहरों को भी रिवाइव करने की प्रक्रिया में है. कुल मिलाकर इन नहरों की लंबाई 60 किलोमीटर है.
Видео The Lakes of Delhi - कौन लील गया दिल्ली की झीलें! канала Taj Agro Products
DIU ने पिछले डेढ़ दशक में ली गई सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया तो उनसे संकेत मिले कि एनसीआर की झीलें या तो विलुप्त हो गई हैं या उनके अस्तित्व पर गहरा खतरा मंडरा रहा है.
दक्षिण से लेकर उत्तर तक तेज़ी से बढ़ते कंक्रीट के जंगलों और बेतरतीब विकास ने देश की अनेक झीलों को सूखे उजाड़ में तब्दील कर दिया है. इंडिया टुडे की जांच से ये कड़वी हकीकत सामने आई है.
चेन्नई में पिछले महीने, शहर के चार जलाशयों के पूरी तरह सूख जाने का मुद्दा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियों में आया था. इस वजह से चेन्नई को पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ा.
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
इंडिया टुडे की डेटा इंटेलिजेंस यूनिट (DIU) ने जब राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) की मैपिंग (नक्शाबद्ध) किया तो चेन्नई जैसे ही खौफ़नाक हालात के आसार दिल्ली और आसपास के उपनगरों में भी दिखे.
DIU ने पिछले डेढ़ दशक में ली गई सैटेलाइट तस्वीरों का अध्ययन किया तो उनसे संकेत मिले कि एनसीआर की झीलें या तो विलुप्त हो गई हैं या उनके अस्तित्व पर गहरा खतरा मंडरा रहा है.
कभी पर्यटक स्थल के तौर पर मशहूर रही फरीदाबाद की बड़खल झील अपनी बदहाली की कहानी खुद ही बयां करती है. हाई-टेक सैटेलाइट तस्वीरों से खुलासा हुआ कि बड़खल का विशाल तल 15 साल से भी अधिक समय से पानी को तरस रहा है. विशेषज्ञ चेता रहे हैं कि इस मृत जलाशय के आसपास अरावली की पर्वत श्रृंखला भी सिकुड़ रही है और साथ ही यहां जीव-जन्तु और पेड़-पौधों पर भी बुरा असर पड़ रहा है. (फोटो: बड़खल झील: 2018 Vs 2019)
एक स्थानीय नागरिक ने इंडिया टुडे को बताया, “कई साल हो गए हमने इस झील में पानी नहीं देखा. जब इस झील में पानी होता था तो यहां खूब पर्यटन होता था. तब यहां मेला सा लगा रहता था. अब सब कुछ ख़त्म हो गया है. ये अब रेगिस्तान जैसा है. हमारे रोज़गार के जरिए भी खत्म हो गए.”
DIU की ओर से तस्वीरों के अध्ययन से पता चलता है कि बीते तीन साल में बड़खल का तेजी से लोप हुआ है.
ड्रोन्स से पता चलता है कि किस हद तक बेतहाशा औद्योगिकरण, कंस्ट्रक्शन, अवैध खनन और खदानों ने झील को नुकसान पहुंचाया. विशेषज्ञों के मुताबिक इन सब ने झील के सतही जल पर बुरा असर डाला. उनका कहना है कि यहां पानी का स्तर 150 से 200 फीट नीचे चला गया.
इंडिया टुडे के DIU की ओर से तैयार किए गए हिस्ट्री-चार्ट से पता चलता है कि बड़खल 1990 में पूरी तरह सूख गई थी तो इसे मौसमी बरसात के पानी से कुछ साल तक बहाल किया गया. लेकिन 2006 के बाद से इसका पानी गायब होता चला गया.
ये तबाही कुदरत की नहीं बल्कि इनसान की गतिविधियों की वजह से आई. पर्यावरणविदों के मुताबिक पर्वत श्रृंखला का सिकुड़ना और संभवत: जलवायु परिवर्तन इसके लिए ज़िम्मेदार है. बड़खल से महज़ 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित सूरजकुंड का हाल भी ऐसा ही बुरा हुआ.
दसवीं सदी में पानी को जमा करने के लिए बनाए गए सूरजकुंड (सूरज की झील) भी विलुप्त हो गया.
UAV (मानव रहित उड़न यंत्र) से ली गई तस्वीरों से सूरजकुंड का सूखा तल दिखता है. वही सूरजकुंड जो कभी पानी से लबालब होने की वजह से क्षेत्र के सबसे बड़े जलाशयों में से एक माना जाता था.
दिल्ली
छह महीने पहले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने राष्ट्रीय राजधानी को ‘झीलों के शहर’ में तब्दील करने का वादा किया था.
24 दिसंबर को अपने ट्वीट में एनसीआर की सूखती झीलों के कायापलट का भरोसा देते हुए लिखा था- ‘दिल्ली झीलों का शहर बन जाएगा. इससे प्रदूषण घटेगा, भू-जल का स्तर बढ़ेगा, इससे हमारा शहर ख़ूबसूरत बनेगा. इन सभी झीलों को पर्यटन स्थल में विकसित किया जाएगा.’
लेकिन इंडिया टुडे के सर्वे ने पाया कि दिल्ली सरकार का महत्वाकांक्षी झीलों को बचाने का अभियान भी शायद डूब गया है. सैटेलाइट तस्वीरों से दिखता है कि शहर में पानी के स्त्रोत तेजी से इमारतों के निर्माण और संसाधनों के कुप्रबंध की भेंट चढ़ गए हैं.
जो झील कभी पर्यटकों से रहती थी गुलज़ार, अब वहां रेगिस्तान जैसा मंज़र
इंडिया टुडे के रिपोर्टर जब उत्तरी दिल्ली में भलस्वा पहुंचे तो वहां बदबू बर्दाश्त से बाहर थी. कभी भलस्वा को यमुना के उत्तरी मैदान में कभी पानी का अहम स्रोत माना जाता था. इसे इसके आकार की वजह से घोड़े के खुर वाली झील भी कहा जाता था. ज़मीनी रिपोर्ट के मुताबिक ये झील भी प्रदूषणकारी कचरे में डूब गई.
सबसे खराब ये है कि सैटेलाइट तस्वीरों ने दिखाया कि ये जल स्रोत कुछ ही महीनों में सिकुड़ गया. भलस्वा की मैपिंग से खुलासा होता है कि तस्वीरों के लाल निशान प्रतीक हैं कि कैसे झील का पानी पिछले वर्षों में लगातार सूखता चला गया. रिपोर्ट के मुताबिक पड़ोस में कचरे के पहाड़ ने तेजी से सूखते इस स्रोत को जहरीले विस्तार में बदल दिया है.
शाहदरा की वेलकम झील में ऐसा कुछ भी नहीं जिसे स्वागत योग्य कहा जाए. ये झील भी शहरीकरण का शिकार हुई है.
स्थानीय निवासियों के मुताबिक वेलकम झील को दोबारा जीवित करने का 22 करोड़ रुपए का प्रोजेक्ट शुरू होने से पहले ही डूब गया.
एक नागरिक ने शिकायत के लहज़े में कहा, ‘पानी यहां सूख गया है. वर्षों से म्युनिसिपल अधिकारी झील को बहाल करने और पार्क स्थापित करने की बात करते रहे हैं. लेकिन कुछ नहीं हुआ.’
पूर्वी दिल्ली में म्युनिसिपल अधिकारियों ने छह साल पहले झील को जीवित करने का प्लान प्रस्तावित किया था. जांच के मुताबिक आज तक ये प्रस्ताव अमली जामा नहीं पहन सका.
दिल्ली सरकार ने बताया, "रजोकरी के बाद दिल्ली सरकार राजधानी में 254 और जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने पर काम कर रही है, ये प्रक्रिया जारी है, इन जल स्रोतों के अलावा शहर के अलग अलग हिस्सों में स्थित 6 झीलों को विकसित किया जा रहा है. इन 6 झीलों की पूरी भूमि 200 एकड़ है. इसके अलावा सिंचाई और बाढ़ नियंत्रण विभाग 5 सूख चूके नहरों को भी रिवाइव करने की प्रक्रिया में है. कुल मिलाकर इन नहरों की लंबाई 60 किलोमीटर है.
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