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संध्याकाळचे श्लोक with Lyrics | Evening Prayers | Shubhank Karoti | Maruti Stotra | Ganpati Stotra

Title - Sandhyakalche Shlok नित्य पठण
Singer - Shubhangi Joshi
Copyrights - Bhakti Vision Entertainment

00:01 - Shubhank Karoti Kalyanam ( शुभं करोति कल्याणम )
01:27​ - Maruti Stotra ( मारुती स्तोत्र ) Bhimrupi Maharudra
05:19​ - Ganpati Stotra ( गणपती स्तोत्र ) Pranamya Sirsa Devam
07:00​ - Nivadak Mannache Shlok ( मनाचे श्लोक )
11:32​ - Pasayadaan ( पसायदान )

01. Shubhankaroti Kalyanam
शुभं करोती कल्याण कल्याणं आरोग्यं धनसंपदा |
शत्रुबुद्धि-विनाशाय दीपज्योती नमोऽस्तुते |
दिव्या दिव्या दिपोत्कार कानीं कुंडलें मोतीहार |
दिव्यला देखून नमस्कार || १ ||
तिळाचे तेल कापसाची वात |
दिवा जळो मध्यान्हरात |
दिवा लावला देवांपाशी |
उजेड पडला तुळशीपाशीं |
माझा नमस्कार सर्व देवांपाशी || २ ||
ऐक लक्ष्मि बैस बाजे |
माझे घर तुला साजे |
घरातली पीडा बाहेर जावो |
बाहेरची लक्ष्मि घरांत येवो |
घरच्या घरधण्याला उदंड आयुष्य लाभो || ३ ||

02. Maruti Stotra
भीमरूपी महारुद्रा, वज्रहनुमान मारुती | वनारी अंजनीसूता रामदूता प्रभंजना ||१||
महाबळी प्राणदाता, सकळां उठवी बळें | सौख्यकारी दुःखहारी, दूत वैष्णव गायका ||२||
दीननाथा हरीरूपा, सुंदरा जगदंतरा | पातालदेवताहंता, भव्यसिंदूरलेपना ||३||
लोकनाथा जगन्नाथा, प्राणनाथा पुरातना | पुण्यवंता पुण्यशीळा, पावना परितोषका ||४||
ध्वजांगे उचली, बाहो, आवेशें लोटला पुढें | काळाग्नी काळरुद्राग्नी, देखतां कांपती भयें ||५||
ब्रह्मांडे माईली नेणों, आंवळे दंतपंगती | नेत्राग्नी चालिल्या ज्वाळा, भ्रुकुटी ताठिल्या बळें ||६||
पुच्छ ते मुरडीले माथा, किरीटी कुंडले बरीं | सुवर्ण कटी कांसोटी, घंटा किंकिणी नागरा ||७||
ठकारे पर्वता ऐसा, नेटका सडपातळू | चपळांग पाहतां मोठे, महाविद्युल्लतेपरी ||८||
कोटिच्या कोटि उड्डाणें, झेपावे उत्तरेकडे | मंद्राद्रीसारिखा द्रोणू, क्रोधें उत्पाटिला बळें ||९||
आणिला मागुतीं नेला, आला गेला मनोगती | मनासी टाकिलें मागें, गतीसी तुळणा नसे ||१०||
अणूपासोनि ब्रह्मांडाएवढा होत जातसे | तयासी तुळणा कोठे, मेरु मंदार धाकुटे ||११||
ब्रह्मांडाभोवते वेढे, वज्रपुच्छें करू शकें | तयासी तुळणा कैंची, ब्रह्मांडी पाहता नसे ||१२||
आरक्त देखिलें डोळा, ग्रासिले सूर्यमंडळा | वाढतां वाढतां वाढें, भेदिले शून्यमंडळा ||१३||
धनधान्य पशूवृद्धि, पुत्रपौत्र समग्रही | पावती रूपविद्यादी, स्तोत्रपाठें करूनियां ||१४||
भूतप्रेतसमंधादी, रोगव्याधी समस्तही | नासती तूटती चिंता, आनंदे भीमदर्शनें ||१५||
हे धरा पंधरा श्र्लोकी, लाभली शोभली बरी | दृढदेहो निसंदेहो, संख्या चन्द्रकळा गुणें ||१६||
रामदासी अग्रगण्यू, कपिकुळासि मंडणू | रामरूपी अंतरात्मा, दर्शनें दोष नासती ||१७||
॥इति श्रीरामदासकृतं संकटनिरसनं मारुतिस्तोत्रं संपूर्णम्॥

03. Ganapti Stotra
Pranamya shirasa devam gauri-putram vinayakam |
Bhaktavasam smarennityam ayuh-kamartha-siddhaye || 1 ||
Prathamam vakra-tundam cha eka-dantam dvitiyakam |
Tritiyam krishna-pingaksham, gaja-vaktram chaturthakam || 2 ||
Lambodaram panchamam cha shashtham vikatameva cha |
Saptamam vighna-rajendram dhumra-varnam tathashtamam || 3 ||
Navamam bhala-chandram cha dashamam tu vinayakam |
Ekadashamam gana-patim dvadasham tu gajananam || 4 ||
Dvadashaitani namani trisandhyam yah pathen_narah |
Na cha vighna-bhayam tasya sarva-siddhi-karah prabhuh || 5 ||
Vidyarthi labhate vidyam dhanarthi labhate dhanam |
Putrarthi labhate putranmoksharthi labhate gatim || 6 ||
Japedganapati-stotram shadbhirmasaih phalam labhet |
Samvatsarena siddhim cha labhate natra samshayah || 7 ||
Ashtebhyo brahmanebhyashcha likhitva yah samarpayet |
Tasya vidya bhavetsarva ganeshasya prasadatah || 8 ||

04. Manache Shlok

॥ जय जय रघुवीर समर्थ ॥
गणाधीश जो ईश सर्वां गुणांचा।
मुळारंभ आरंभ तो निर्गुणाचा॥
नमूं शारदा मूळ चत्वार वाचा।
गमूं पंथ आनंत या राघवाचा॥१॥

मना सज्जना भक्तिपंथेचि जावें।
तरी श्रीहरी पाविजेतो स्वभावें॥
जनीं निंद्य तें सर्व सोडूनि द्यावें।
जनीं वंद्य ते सर्व भावे करावे॥२॥

प्रभाते मनी राम चिंतीत जावा।
पुढे वैखरी राम आधी वदावा॥
सदाचार हा थोर सांडूं नये तो।
जनीं तोचि तो मानवी धन्य होतो॥३॥

मना वासना दुष्ट कामा न ये रे।
मना सर्वथा पापबुद्धी नको रे॥
मना सर्वथा नीति सोडूं नको हो।
मना अंतरीं सार वीचार राहो॥४॥

मना पापसंकल्प सोडूनि द्यावा।
मना सत्यसंकल्प जीवीं धरावा॥
मना कल्पना ते नको वीषयांची।
विकारे घडे हो जनी सर्व ची ची॥५॥

नको रे मना क्रोध हा खेदकारी।
नको रे मना काम नाना विकारी॥
नको रे मना सर्वदा अंगिकारू।
नको रे मना मत्सरु दंभ भारु॥६॥

मना श्रेष्ठ धारिष्ट जीवीं धरावे।
मना बोलणे नीच सोशीत जावें॥
स्वयें सर्वदा नम्र वाचे वदावे।
मना सर्व लोकांसि रे नीववावें॥७॥

देहे त्यागितां कीर्ति मागें उरावी।
मना सज्जना हेचि क्रीया धरावी॥
मना चंदनाचे परी त्वां झिजावे।
परी अंतरीं सज्जना नीववावे॥८॥

05.Pasayadaan -
आता विश्वात्मकें देवें । येणे वाग्यज्ञें तोषावें ।
तोषोनिं मज ज्ञावे । पसायदान हें ॥

जें खळांची व्यंकटी सांडो । तया सत्कर्मी- रती वाढो ।
भूतां परस्परे पडो । मैत्र जीवाचें ॥

दुरितांचे तिमिर जावो । विश्व स्वधर्म सूर्यें पाहो ।
जो जे वांच्छिल तो तें लाहो । प्राणिजात ॥

वर्षत सकळ मंगळी । ईश्वरनिष्ठांची मांदियाळी ।
अनवरत भूमंडळी । भेटतु भूतां ॥

चलां कल्पतरूंचे आरव । चेतना चिंतामणींचें गाव ।
बोलते जे अर्णव । पीयूषाचे ॥

चंद्र्मे जे अलांछ्न । मार्तंड जे तापहीन ।
ते सर्वांही सदा सज्जन । सोयरे होतु ॥

किंबहुना सर्व सुखी । पूर्ण होऊनि तिन्हीं लोकी ।
भजिजो आदिपुरुखी । अखंडित ॥
आणि ग्रंथोपजीविये । विशेषीं लोकीं इयें ।
दृष्टादृष्ट विजयें । होआवे जी ।
येथ म्हणे श्री विश्वेशराओ । हा होईल दान पसावो ।
येणें वरें ज्ञानदेवो । सुखिया जाला ॥

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