जानिए माता सुई के जीवित भूमि समाधि लेने के साथ जुड़ी कथा | 4K | दर्शन 🙏
Credits:
संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम! सादर नमन, वंदन और अभिनन्दन....जैसा की आप सब जानते हैं कि हमारे देश में हजारों तीर्थस्थान और लाखों प्राचीन मंदिर हैं... सभी की न केवल अपनी अपनी कहानियाँ हैं, इतिहास हैं और मान्यताएँ हैं...बल्कि सभी से जुड़े कुछ घटनाएँ, कुछ चमत्कार और कुछ रहस्य हैं... जो आज वैज्ञानिक युग के तार्किक लोगों में श्रद्धा, आस्था और विश्वास का बीजारोपण कर, नास्तिक को आस्तिक बना देते हैं... ऐसा ही एक मंदिर है पुण्यभूमि हिमांचल के प्रदेश चंबा जिले में, सुई माता का मंदिर...
इतिहास:
भक्तों! सुई माता मंदिर का इतिहास जानने से पहले, चंबा का इतिहास जानना ज़रूरी है। कहा जाता है कि पहाड़ी राजा साहिल वर्मन की राजकुमारी चंपावती को, समुद्र तल से 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, रावी नदी का ये किनारा बहुत पसंद था। इसलिए राजा साहिल वर्मन ने 920 ईसवी में राजकुमारी चंपावती के नाम पर चंबा नगरी बसाई, और उसे अपनी नई राजधानी बनाई।
भक्तों! राजा ने चंबा नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी तो बना लिया, लेकिन चंबा में पीने के पानी की काफी समस्या थी। राजा, अपनी प्रजा को पानी की किल्लत से जूझती देख बड़े दुखी थे... और निरंतर इस प्रयास में थे कि पानी संकट दूर हो जाए।
भक्तों! कहते हैं कि एक रात राजा को सपना आया कि यदि वह खुद या अपने किसी प्रिय की बलि दे दें तो नगर में पानी की कमी दूर हो जाएगी। इस सपने राजा साहिल वर्मन बहुत परेशान थे, राजा की रानी सुनयना बड़ी पतिव्रता थीं उन्होने अपने पति राजा साहिल वर्मन से परेशानी की वजह पूछी तो राजा ने सपने की बात बताई। तब रानी ने खुशी खुशी प्रजा की खातिर अपना बलिदान देने इच्छा जताई। लेकिन राजा इसके लिए तैयार नहीं थे लेकिन रानी के हठ के आगे राजा की एक न चली। रानी ने जीवित ही भूमिसमाधि ले ली। रानी के भूमिसमाधि लेते ही नजदीक ही जलधारा फूट पड़ी थी। रानी के बलिदान का स्मारक स्वरूप सूही मंदिर बनाया गया। राजा साहिल वर्मन के पुत्र युगाकार जब उत्तराधिकारी बने, तब उन्होने ताम्रपत्र पर अपनी माता रानी सुनयनादेवी का नाम अंकित करवाकर लगवा दिया।
उनकी भक्ति की स्मृति में उस स्थान पर एक छोटा तीर्थ बनाया गया था और मेला जिसे सुई माता का मेला कहते है 15 वीं चैत से पहली बैशाख तक हर वर्ष आयोजित होना जाने लगा | जो अपने सबसे अच्छे पोशाक में रानी की प्रशंसा के गीत गाते हैं और रानी को उनके एकमात्र बलिदान के लिए श्रद्धांजलि देते हैं।
रानी की याद में मेला:
भक्तों! रानी के बलिदान को श्रद्धांजलि देने के लिए, यहाँ हर साल मेला लगता है। पहले यह मेला चैत्र पूर्णिमा से बैशाख पूर्णिमा तक पूरे एक महीने तक चलता था, लेकिन अब यह तीन दिन ही मनाया जाता है। इस मेले में महिलाओं और बच्चों द्वारा भाग लिया जाता है।
पानी बरसानेवाला गीत:
भक्तों मेले के अंतिम दिन भव्य शोभायात्रा के साथ मेले का समापन होता है। उस वक्त रानी सुनयना को समर्पित गीत गाया जाता है।
गीत के बोल:
गुड़क चमक भाऊआ मेघा हो।
बरैं रानी चंबयाली रे देसा हो॥
किहां गुड़कां-किहां चमकां हो।
अंबर भरोरा घणे तारे हो॥
कुथुए दी आई काली बादली हो।
कुथुए दा बरसेया मेघा हो॥
गाया जाता है।
भक्तों चंबयाली भाषा में गाए जाने वाले गीत के बोल मन को भिगो देते हैं। ये गीत सिर्फ मेले के अंत मे गाया जाता है इसके अलावा इस गीत को गाना अशुभ माना जाता है। इस गीत के बारे में लोक मान्यता है कि चाहे कितना भी साफ आसमान हो, ये गीत गाने के बाद चंबा में बारिश जरूर होती है।
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन !
🙏
इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
#devotional #mandir #suimatatemple #hinduism #himachalpradesh #travel #vlogs
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संगीत एवम रिकॉर्डिंग - सूर्य राजकमल
लेखक - रमन द्विवेदी
भक्तों नमस्कार! प्रणाम! सादर नमन, वंदन और अभिनन्दन....जैसा की आप सब जानते हैं कि हमारे देश में हजारों तीर्थस्थान और लाखों प्राचीन मंदिर हैं... सभी की न केवल अपनी अपनी कहानियाँ हैं, इतिहास हैं और मान्यताएँ हैं...बल्कि सभी से जुड़े कुछ घटनाएँ, कुछ चमत्कार और कुछ रहस्य हैं... जो आज वैज्ञानिक युग के तार्किक लोगों में श्रद्धा, आस्था और विश्वास का बीजारोपण कर, नास्तिक को आस्तिक बना देते हैं... ऐसा ही एक मंदिर है पुण्यभूमि हिमांचल के प्रदेश चंबा जिले में, सुई माता का मंदिर...
इतिहास:
भक्तों! सुई माता मंदिर का इतिहास जानने से पहले, चंबा का इतिहास जानना ज़रूरी है। कहा जाता है कि पहाड़ी राजा साहिल वर्मन की राजकुमारी चंपावती को, समुद्र तल से 996 मीटर की ऊंचाई पर स्थित, रावी नदी का ये किनारा बहुत पसंद था। इसलिए राजा साहिल वर्मन ने 920 ईसवी में राजकुमारी चंपावती के नाम पर चंबा नगरी बसाई, और उसे अपनी नई राजधानी बनाई।
भक्तों! राजा ने चंबा नगर बसाकर उसे अपनी राजधानी तो बना लिया, लेकिन चंबा में पीने के पानी की काफी समस्या थी। राजा, अपनी प्रजा को पानी की किल्लत से जूझती देख बड़े दुखी थे... और निरंतर इस प्रयास में थे कि पानी संकट दूर हो जाए।
भक्तों! कहते हैं कि एक रात राजा को सपना आया कि यदि वह खुद या अपने किसी प्रिय की बलि दे दें तो नगर में पानी की कमी दूर हो जाएगी। इस सपने राजा साहिल वर्मन बहुत परेशान थे, राजा की रानी सुनयना बड़ी पतिव्रता थीं उन्होने अपने पति राजा साहिल वर्मन से परेशानी की वजह पूछी तो राजा ने सपने की बात बताई। तब रानी ने खुशी खुशी प्रजा की खातिर अपना बलिदान देने इच्छा जताई। लेकिन राजा इसके लिए तैयार नहीं थे लेकिन रानी के हठ के आगे राजा की एक न चली। रानी ने जीवित ही भूमिसमाधि ले ली। रानी के भूमिसमाधि लेते ही नजदीक ही जलधारा फूट पड़ी थी। रानी के बलिदान का स्मारक स्वरूप सूही मंदिर बनाया गया। राजा साहिल वर्मन के पुत्र युगाकार जब उत्तराधिकारी बने, तब उन्होने ताम्रपत्र पर अपनी माता रानी सुनयनादेवी का नाम अंकित करवाकर लगवा दिया।
उनकी भक्ति की स्मृति में उस स्थान पर एक छोटा तीर्थ बनाया गया था और मेला जिसे सुई माता का मेला कहते है 15 वीं चैत से पहली बैशाख तक हर वर्ष आयोजित होना जाने लगा | जो अपने सबसे अच्छे पोशाक में रानी की प्रशंसा के गीत गाते हैं और रानी को उनके एकमात्र बलिदान के लिए श्रद्धांजलि देते हैं।
रानी की याद में मेला:
भक्तों! रानी के बलिदान को श्रद्धांजलि देने के लिए, यहाँ हर साल मेला लगता है। पहले यह मेला चैत्र पूर्णिमा से बैशाख पूर्णिमा तक पूरे एक महीने तक चलता था, लेकिन अब यह तीन दिन ही मनाया जाता है। इस मेले में महिलाओं और बच्चों द्वारा भाग लिया जाता है।
पानी बरसानेवाला गीत:
भक्तों मेले के अंतिम दिन भव्य शोभायात्रा के साथ मेले का समापन होता है। उस वक्त रानी सुनयना को समर्पित गीत गाया जाता है।
गीत के बोल:
गुड़क चमक भाऊआ मेघा हो।
बरैं रानी चंबयाली रे देसा हो॥
किहां गुड़कां-किहां चमकां हो।
अंबर भरोरा घणे तारे हो॥
कुथुए दी आई काली बादली हो।
कुथुए दा बरसेया मेघा हो॥
गाया जाता है।
भक्तों चंबयाली भाषा में गाए जाने वाले गीत के बोल मन को भिगो देते हैं। ये गीत सिर्फ मेले के अंत मे गाया जाता है इसके अलावा इस गीत को गाना अशुभ माना जाता है। इस गीत के बारे में लोक मान्यता है कि चाहे कितना भी साफ आसमान हो, ये गीत गाने के बाद चंबा में बारिश जरूर होती है।
भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद। दर्शन !
🙏
इस कार्यक्रम के प्रत्येक एपिसोड में हम भक्तों को भारत के प्रसिद्ध एवं प्राचीन मंदिर, धाम या देवी-देवता के दर्शन तो करायेंगे ही, साथ ही उस मंदिर की महिमा उसके इतिहास और उसकी मान्यताओं से भी सन्मुख करायेंगे। तो देखना ना भूलें ज्ञान और भक्ति का अनोखा दिव्य दर्शन। 🙏
Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है. यहां यह बताना जरूरी है कि तिलक किसी भी तरह की मान्यता, जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी या मान्यता को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.
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19 ноября 2022 г. 16:30:05
00:04:58
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