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नदी की नाव पर अनाथ की चालाकी

चाँदनी रात में गंगा की शांत लहरों पर एक बड़ी नाव धीरे-धीरे बह रही थी। उसी नाव पर था छोटा अनाथ बालक अर्जुन, जिसकी आँखों में अपने परिवार की यादें झलक रहीं थीं। उसके माता-पिता का संगीत डिब्बा, जो जुआरियों ने धोखे से जीत लिया था, उसकी सबसे बड़ी चाहत थी। नाव पर ताश के पत्तों की गूंज सुनाई दी, जुआरी लोग हँसी मजाक में मशगूल थे। अर्जुन ने साहस जुटाया और पास जाकर बोला, "अगर मैं तुम्हारी पहेली सुलझा दूँ, तो मेरा डिब्बा मुझे लौटा देना।" जुआरी हँस पड़े, पर चुनौती स्वीकार कर ली।

पहेली थी: "संगीत में वो क्या है, जो बजता भी है, पर कभी बोलता नहीं?" जुआरी उलझ गए, कई उत्तर दिए, पर सही जवाब न मिला। अर्जुन ने ध्यान से उनकी बातें सुनीं, फिर मुस्कुराया और बोला, "संगीत का डिब्बा!" सब चौंक गए। शर्त के अनुसार, जुआरियों ने डिब्बा उसे लौटा दिया। अर्जुन ने डिब्बे को छाती से लगाया, उसमें से बजती धुन में अपने माता-पिता की यादें महसूस कीं। नाव धीरे-धीरे आगे बढ़ती रही, पर अर्जुन के लिए आज की रात एक नई उम्मीद और अमूल्य याद बन गई थी।

Видео नदी की नाव पर अनाथ की चालाकी канала The Hindu Echo
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