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Gayatri Chalisa. by Ninad Mehta/ Umangi Shah

हीं श्रीं, क्लीं, मेधा, प्रभा, जीवन ज्योति प्रचण्ड ।

शांति, क्रांति, जागृति, प्रगति, रचना शक्ति अखण्ड ॥

जगत जननि, मंगल करनि, गायत्री सुखधाम ।

प्रणवों सावित्री, स्वधा, स्वाहा पूरन काम ॥

भूर्भुवः स्वः ॐ युत जननी ।

गायत्री नित कलिमल दहनी ॥१॥
अक्षर चौबिस परम पुनीता ।

इनमें बसें शास्त्र, श्रुति, गीता ॥
शाश्वत सतोगुणी सतरुपा ।

सत्य सनातन सुधा अनूपा ॥
हंसारुढ़ सितम्बर धारी ।

स्वर्णकांति शुचि गगन बिहारी ॥४॥
पुस्तक पुष्प कमंडलु माला ।

शुभ्र वर्ण तनु नयन विशाला ॥
ध्यान धरत पुलकित हिय होई ।

सुख उपजत, दुःख दुरमति खोई ॥
कामधेनु तुम सुर तरु छाया ।

निराकार की अदभुत माया ॥
तुम्हरी शरण गहै जो कोई ।

तरै सकल संकट सों सोई ॥८॥
सरस्वती लक्ष्मी तुम काली ।

दिपै तुम्हारी ज्योति निराली ॥
तुम्हरी महिमा पारन पावें ।

जो शारद शत मुख गुण गावें ॥
चार वेद की मातु पुनीता ।

तुम ब्रहमाणी गौरी सीता ॥
महामंत्र जितने जग माहीं ।

कोऊ गायत्री सम नाहीं ॥१२॥
सुमिरत हिय में ज्ञान प्रकासै ।

आलस पाप अविघा नासै ॥
सृष्टि बीज जग जननि भवानी ।

काल रात्रि वरदा कल्यानी ॥
ब्रहमा विष्णु रुद्र सुर जेते ।

तुम सों पावें सुरता तेते ॥
तुम भक्तन की भक्त तुम्हारे ।

जननिहिं पुत्र प्राण ते प्यारे ॥१६॥
महिमा अपरम्पार तुम्हारी ।

जै जै जै त्रिपदा भय हारी ॥
पूरित सकल ज्ञान विज्ञाना ।

तुम सम अधिक न जग में आना ॥
तुमहिं जानि कछु रहै न शेषा ।

तुमहिं पाय कछु रहै न क्लेषा ॥
जानत तुमहिं, तुमहिं है जाई ।

पारस परसि कुधातु सुहाई ॥२०॥
तुम्हरी शक्ति दिपै सब ठाई ।

माता तुम सब ठौर समाई ॥
ग्रह नक्षत्र ब्रहमाण्ड घनेरे ।

सब गतिवान तुम्हारे प्रेरे ॥
सकलसृष्टि की प्राण विधाता ।

पालक पोषक नाशक त्राता ॥
मातेश्वरी दया व्रत धारी ।

तुम सन तरे पतकी भारी ॥२४॥
जापर कृपा तुम्हारी होई ।

तापर कृपा करें सब कोई ॥
मंद बुद्घि ते बुधि बल पावें ।

रोगी रोग रहित है जावें ॥
दारिद मिटै कटै सब पीरा ।

नाशै दुःख हरै भव भीरा ॥
गृह कलेश चित चिंता भारी ।

नासै गायत्री भय हारी ॥२८ ॥
संतिति हीन सुसंतति पावें ।

सुख संपत्ति युत मोद मनावें ॥
भूत पिशाच सबै भय खावें ।

यम के दूत निकट नहिं आवें ॥
जो सधवा सुमिरें चित लाई ।

अछत सुहाग सदा सुखदाई ॥
घर वर सुख प्रद लहैं कुमारी ।

विधवा रहें सत्य व्रत धारी ॥३२॥
जयति जयति जगदम्ब भवानी ।

तुम सम और दयालु न दानी ॥
जो सदगुरु सों दीक्षा पावें ।

सो साधन को सफल बनावें ॥
सुमिरन करें सुरुचि बड़भागी ।

लहैं मनोरथ गृही विरागी ॥
अष्ट सिद्घि नवनिधि की दाता ।

सब समर्थ गायत्री माता ॥३६॥
ऋषि, मुनि, यती, तपस्वी, जोगी ।

आरत, अर्थी, चिंतित, भोगी ॥
जो जो शरण तुम्हारी आवें ।

सो सो मन वांछित फल पावें ॥
बल, बुद्घि, विघा, शील स्वभाऊ ।

धन वैभव यश तेज उछाऊ ॥
सकल बढ़ें उपजे सुख नाना ।

जो यह पाठ करै धरि ध्याना ॥४०॥
॥ दोहा ॥

यह चालीसा भक्तियुत, पाठ करे जो कोय ।

तापर कृपा प्रसन्नता, गायत्री की होय ॥

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5 марта 2012 г. 22:53:35
00:07:14
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