विश्व का ऐसा श्मशान घाट जहां नहीं बुझती है चिता की आग।#brajbhushandubey
kashi varanasi rajaharishchand markarnikaghat
वाराणसी का मणिकर्णिका घाट विश्व का एऐसा श्मसान घाट है जहां कभी भी चिता की आग बुझती ही नहीं। यह परंपरा 3000 वर्षों से अधिक की है।
बताते हैं कि पार्वती जी के कान का कुंडल यहां किसी कुंड में गिर गया था जिसे निकालने के लिए भगवान शंकर ने अपना योगदान किया था। दूसरी कथा यह बताई जाती है कि पार्वती जी के मरणोपरांत भगवान शिव ने उनका अंतिम संस्कार इसी घाट पर किया था।
मान्यता है कि मरणोपरांत जिनका भी अंतिम संस्कार इस घाट पर होगा उन्हें मुक्ति मिलेगी।
एक पार्थिव शरीर जलाने में लगभग 3 कुंतल लकड़ियां लगती हैं एक कुंतल लकड़ी 8:30 सौ से 900 रुपए में मिलती है इसके अतिरिक्त चंदन शमी बेल एवं घी आदि को छोड़कर।
लकड़ियों के अभाव में लोग अधजली लाश को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं जिससे गंगा बुरी तौर पर प्रदूषित होती है।
हमने गंगा घाटों पर विद्युत शवदाह गृह बनाए जाने का अनुरोध माननीय प्रधानमंत्री जी के पोर्टल पर किया था जिसे स्वीकार भी किया गया है। हमारा सुनिश्चित मत है कि यदि गंगा तथा अन्य नदियों के किनारे विद्युत शवदाह गृह आबादी के हिसाब से नहीं बनाए गए तो आने वाले समय में ना तो लकड़ियां मिलेगी शव जलाने के लिए और ना ही पर्यावरण को ही हम बचा पाएंगे।
देखें वाराणसी के मणिकर्णिका घाट से ब्रजभूषण दूबे की रिपोर्ट।
Видео विश्व का ऐसा श्मशान घाट जहां नहीं बुझती है चिता की आग।#brajbhushandubey канала Brajbhushan Markandey
वाराणसी का मणिकर्णिका घाट विश्व का एऐसा श्मसान घाट है जहां कभी भी चिता की आग बुझती ही नहीं। यह परंपरा 3000 वर्षों से अधिक की है।
बताते हैं कि पार्वती जी के कान का कुंडल यहां किसी कुंड में गिर गया था जिसे निकालने के लिए भगवान शंकर ने अपना योगदान किया था। दूसरी कथा यह बताई जाती है कि पार्वती जी के मरणोपरांत भगवान शिव ने उनका अंतिम संस्कार इसी घाट पर किया था।
मान्यता है कि मरणोपरांत जिनका भी अंतिम संस्कार इस घाट पर होगा उन्हें मुक्ति मिलेगी।
एक पार्थिव शरीर जलाने में लगभग 3 कुंतल लकड़ियां लगती हैं एक कुंतल लकड़ी 8:30 सौ से 900 रुपए में मिलती है इसके अतिरिक्त चंदन शमी बेल एवं घी आदि को छोड़कर।
लकड़ियों के अभाव में लोग अधजली लाश को गंगा में प्रवाहित कर देते हैं जिससे गंगा बुरी तौर पर प्रदूषित होती है।
हमने गंगा घाटों पर विद्युत शवदाह गृह बनाए जाने का अनुरोध माननीय प्रधानमंत्री जी के पोर्टल पर किया था जिसे स्वीकार भी किया गया है। हमारा सुनिश्चित मत है कि यदि गंगा तथा अन्य नदियों के किनारे विद्युत शवदाह गृह आबादी के हिसाब से नहीं बनाए गए तो आने वाले समय में ना तो लकड़ियां मिलेगी शव जलाने के लिए और ना ही पर्यावरण को ही हम बचा पाएंगे।
देखें वाराणसी के मणिकर्णिका घाट से ब्रजभूषण दूबे की रिपोर्ट।
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