होली का त्यौहार "HOLI" FESTIVAL प्रहलाद की सम्पूर्ण कथा
होली का त्योहार रंगों, उमंग और भाईचारे का प्रतीक है। यह भारत के सबसे पुराने और प्रमुख त्योहारों में से एक है। होली के पीछे कई पौराणिक कथाएँ जुड़ी हुई हैं, जिनमें से सबसे प्रमुख प्रह्लाद और होलिका की कहानी है।
प्रह्लाद का जन्म और परिवार
प्रह्लाद का जन्म असुर राज हिरण्यकश्यप के घर हुआ था। हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकता है, न कोई पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न किसी अस्त्र-शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह स्वयं को अमर मान बैठा और उसने भगवान विष्णु की भक्ति का विरोध करना शुरू कर दिया।
प्रह्लाद की माता कयाधु थीं, जो गर्भावस्था के दौरान महर्षि नारद के आश्रम में रहीं। वहीं पर उन्होंने विष्णु भक्ति की शिक्षा प्राप्त की, जो गर्भ में ही प्रह्लाद को भी प्राप्त हुई। इसी कारण प्रह्लाद जन्म से ही विष्णु के परम भक्त बन गए।
प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकश्यप का क्रोध
जब प्रह्लाद बड़ा हुआ, तो वह भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहने लगा। उसने अपने पिता के आदेशों की अवहेलना कर दी और असुरों के बीच भी "ॐ नमो नारायणाय" का प्रचार करने लगा। यह देखकर हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और उसने अपने पुत्र को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए अनेक यातनाएँ दीं:
गुरुकुल में शिक्षा – हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को राक्षस गुरु शुक्राचार्य के पुत्रों को सौंप दिया ताकि वे उसे असुरों के गुण सिखाएँ, लेकिन प्रह्लाद ने वहाँ भी विष्णु भक्ति का प्रचार किया।
उसे पहाड़ से गिराया गया – उसे एक ऊँचे पर्वत से नीचे फेंक दिया गया, लेकिन विष्णु भगवान ने उसे बचा लिया।
सांपों के बीच डाला गया – विषैले नागों से डसवाने की कोशिश की गई, लेकिन प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।
हाथी के पैरों तले कुचलवाना – उसे हाथियों से कुचलवाने का प्रयास किया गया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से कुछ भी नहीं हुआ।
जहर पिलाने का प्रयास – उसे विष पिलाया गया, लेकिन विष भी अमृत बन गया।
रंगों वाली होली की कथा
अग्नि में जलाने की कोशिश – हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जल सकती। हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसी घटना की याद में होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
रंगों से खेली जाने वाली होली की परंपरा भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कथा से जुड़ी है। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण को अपनी गहरी सांवली त्वचा को देखकर चिंता होती थी कि राधा और अन्य गोपियाँ उन्हें पसंद नहीं करेंगी। उनकी माँ यशोदा ने उन्हें सलाह दी कि वे राधा के चेहरे पर कोई भी रंग लगा दें और वह जैसी चाहें वैसी दिखने लगें। कृष्ण ने राधा और उनकी सखियों पर रंग डालकर होली खेली, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
होली का महत्व
होली केवल रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सौहार्द, और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। इस दिन लोग अपने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और खुशियाँ मनाते हैं।
होली कैसे मनाई जाती है?
प्रह्लाद की कथा हमें धर्म, सत्य, और ईश्वर के प्रति अडिग विश्वास की प्रेरणा देती है। उनकी भक्ति और साहस के कारण ही उन्हें भक्त शिरोमणि कहा जाता है। उनकी कथा आज भी भक्तों को ईश्वर पर अटूट विश्वास रखने की सीख देती है।
होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सौहार्द और मस्ती का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में हमेशा सच्चाई और प्रेम की जीत होती है
गैर नृत्य का इतिहास और महत्व
गैर नृत्य राजस्थान के राजपूत और भील समाज की एक ऐतिहासिक लोक नृत्य परंपरा है।
गैर नृत्य का मुख्य उद्देश्य सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखना है।
यह नृत्य समूह में किया जाता है, जहाँ नर्तक लकड़ी की छड़ियों (डांडिया) को बजाते हुए तालबद्ध नृत्य करते हैं।
राजस्थान में गैर नृत्य उत्सव
राजस्थान के कई जिलों में गैर नृत्य उत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें प्रमुख स्थान हैं:
जोधपुर
मारवाड़ उत्सव (Marwar Festival) जोधपुर में आयोजित होता है, जिसमें हजारों लोक कलाकार गैर नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
पुरुष रंगीन अंगरखा, धोती, और साफा पहनकर नृत्य करते हैं, जबकि ढोल-नगाड़ों की धुन पर पूरा माहौल गूंज उठता है।
जयपुर में होली के अवसर पर सिटी पैलेस और आमेर किले में गैर नृत्य का आयोजन किया जाता है।
विदेशी पर्यटकों के लिए यह एक प्रमुख आकर्षण होता है।
बाड़मेर और जैसलमेर – मरु महोत्सव
रेगिस्तान के इस क्षेत्र में मरु महोत्सव (Desert Festival) के दौरान भव्य गैर नृत्य किया जाता है।
गैर नृत्य की प्रस्तुति और परिधान
पुरुषों की पोशाक:
रंगीन घेरदार अंगरखा, धोती, और साफा (पगड़ी)
कंधों पर पटका और पैरों में मोजड़ी
हाथ में डांडिया या तलवार, जिससे नृत्य के दौरान चमत्कारी ताल बनाई जाती है।
महिलाओं की भूमिका:
कई बार महिलाएँ भी गैर नृत्य में भाग लेती हैं, लेकिन वे अधिकतर घूमर या तेरहताली नृत्य करती हैं।
रंगीन घाघरा-चोली और ओढ़नी पहनकर वे ढोल की धुन पर झूमती हैं।
गैर नृत्य का संगीत और वाद्ययंत्र
गैर नृत्य के दौरान कई पारंपरिक राजस्थानी वाद्ययंत्र
बजाए जाते हैं:
ढोल और नगाड़ा – मुख्य लयबद्ध ध्वनि के लिए
शंख – धार्मिक और ऊर्जावान माहौल बनाने के लिए
रावणहत्था और कमायचा – राजस्थानी लोक धुनों के लिए
नर्तक वृत्ताकार (गोल घेरा) बनाकर खड़े होते हैं।
तालबद्ध रूप से वे आगे-पीछे झूमते हैं और एक-दूसरे की डांडिया से ताल मिलाते हैं।
कई बार नर्तक हवा में छलांग लगाते हैं और तलवारों से भी नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
गैर नृत्य की विशेषताएँ
✔ वीरता और शक्ति का प्रतीक
✔ समूह नृत्य, जिसमें सभी एक साथ ताल मिलाते हैं
✔ राजस्थानी संस्कृति और परंपरा की झलक
✔ धार्मिक और उत्सवी माहौल बनाने वाला नृत्य
Видео होली का त्यौहार "HOLI" FESTIVAL प्रहलाद की सम्पूर्ण कथा канала PRITAM KUMAWAT
प्रह्लाद का जन्म और परिवार
प्रह्लाद का जन्म असुर राज हिरण्यकश्यप के घर हुआ था। हिरण्यकश्यप को ब्रह्मा जी से यह वरदान प्राप्त था कि उसे न कोई मनुष्य मार सकता है, न कोई पशु, न दिन में, न रात में, न धरती पर, न आकाश में, न किसी अस्त्र-शस्त्र से। इस वरदान के कारण वह स्वयं को अमर मान बैठा और उसने भगवान विष्णु की भक्ति का विरोध करना शुरू कर दिया।
प्रह्लाद की माता कयाधु थीं, जो गर्भावस्था के दौरान महर्षि नारद के आश्रम में रहीं। वहीं पर उन्होंने विष्णु भक्ति की शिक्षा प्राप्त की, जो गर्भ में ही प्रह्लाद को भी प्राप्त हुई। इसी कारण प्रह्लाद जन्म से ही विष्णु के परम भक्त बन गए।
प्रह्लाद की भक्ति और हिरण्यकश्यप का क्रोध
जब प्रह्लाद बड़ा हुआ, तो वह भगवान विष्णु की भक्ति में लीन रहने लगा। उसने अपने पिता के आदेशों की अवहेलना कर दी और असुरों के बीच भी "ॐ नमो नारायणाय" का प्रचार करने लगा। यह देखकर हिरण्यकश्यप क्रोधित हो गया और उसने अपने पुत्र को विष्णु भक्ति छोड़ने के लिए अनेक यातनाएँ दीं:
गुरुकुल में शिक्षा – हिरण्यकश्यप ने प्रह्लाद को राक्षस गुरु शुक्राचार्य के पुत्रों को सौंप दिया ताकि वे उसे असुरों के गुण सिखाएँ, लेकिन प्रह्लाद ने वहाँ भी विष्णु भक्ति का प्रचार किया।
उसे पहाड़ से गिराया गया – उसे एक ऊँचे पर्वत से नीचे फेंक दिया गया, लेकिन विष्णु भगवान ने उसे बचा लिया।
सांपों के बीच डाला गया – विषैले नागों से डसवाने की कोशिश की गई, लेकिन प्रह्लाद को कुछ नहीं हुआ।
हाथी के पैरों तले कुचलवाना – उसे हाथियों से कुचलवाने का प्रयास किया गया, लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से कुछ भी नहीं हुआ।
जहर पिलाने का प्रयास – उसे विष पिलाया गया, लेकिन विष भी अमृत बन गया।
रंगों वाली होली की कथा
अग्नि में जलाने की कोशिश – हिरण्यकश्यप की बहन होलिका को वरदान था कि वह आग में नहीं जल सकती। हिरण्यकश्यप ने होलिका को आदेश दिया कि वह प्रह्लाद को गोद में लेकर आग में बैठ जाए। लेकिन भगवान विष्णु की कृपा से प्रह्लाद सुरक्षित रहा और होलिका जलकर भस्म हो गई। इसी घटना की याद में होली के एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
रंगों से खेली जाने वाली होली की परंपरा भगवान कृष्ण और राधा की प्रेम कथा से जुड़ी है। कथा के अनुसार, भगवान कृष्ण को अपनी गहरी सांवली त्वचा को देखकर चिंता होती थी कि राधा और अन्य गोपियाँ उन्हें पसंद नहीं करेंगी। उनकी माँ यशोदा ने उन्हें सलाह दी कि वे राधा के चेहरे पर कोई भी रंग लगा दें और वह जैसी चाहें वैसी दिखने लगें। कृष्ण ने राधा और उनकी सखियों पर रंग डालकर होली खेली, जिससे यह परंपरा शुरू हुई।
होली का महत्व
होली केवल रंगों का त्योहार नहीं है, बल्कि यह बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सौहार्द, और सामाजिक एकता का भी प्रतीक है। इस दिन लोग अपने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को रंग लगाते हैं और खुशियाँ मनाते हैं।
होली कैसे मनाई जाती है?
प्रह्लाद की कथा हमें धर्म, सत्य, और ईश्वर के प्रति अडिग विश्वास की प्रेरणा देती है। उनकी भक्ति और साहस के कारण ही उन्हें भक्त शिरोमणि कहा जाता है। उनकी कथा आज भी भक्तों को ईश्वर पर अटूट विश्वास रखने की सीख देती है।
होली का त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत, प्रेम, सौहार्द और मस्ती का प्रतीक है। यह हमें सिखाता है कि जीवन में हमेशा सच्चाई और प्रेम की जीत होती है
गैर नृत्य का इतिहास और महत्व
गैर नृत्य राजस्थान के राजपूत और भील समाज की एक ऐतिहासिक लोक नृत्य परंपरा है।
गैर नृत्य का मुख्य उद्देश्य सामाजिक एकता और सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखना है।
यह नृत्य समूह में किया जाता है, जहाँ नर्तक लकड़ी की छड़ियों (डांडिया) को बजाते हुए तालबद्ध नृत्य करते हैं।
राजस्थान में गैर नृत्य उत्सव
राजस्थान के कई जिलों में गैर नृत्य उत्सव बड़े धूमधाम से मनाए जाते हैं। इनमें प्रमुख स्थान हैं:
जोधपुर
मारवाड़ उत्सव (Marwar Festival) जोधपुर में आयोजित होता है, जिसमें हजारों लोक कलाकार गैर नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
पुरुष रंगीन अंगरखा, धोती, और साफा पहनकर नृत्य करते हैं, जबकि ढोल-नगाड़ों की धुन पर पूरा माहौल गूंज उठता है।
जयपुर में होली के अवसर पर सिटी पैलेस और आमेर किले में गैर नृत्य का आयोजन किया जाता है।
विदेशी पर्यटकों के लिए यह एक प्रमुख आकर्षण होता है।
बाड़मेर और जैसलमेर – मरु महोत्सव
रेगिस्तान के इस क्षेत्र में मरु महोत्सव (Desert Festival) के दौरान भव्य गैर नृत्य किया जाता है।
गैर नृत्य की प्रस्तुति और परिधान
पुरुषों की पोशाक:
रंगीन घेरदार अंगरखा, धोती, और साफा (पगड़ी)
कंधों पर पटका और पैरों में मोजड़ी
हाथ में डांडिया या तलवार, जिससे नृत्य के दौरान चमत्कारी ताल बनाई जाती है।
महिलाओं की भूमिका:
कई बार महिलाएँ भी गैर नृत्य में भाग लेती हैं, लेकिन वे अधिकतर घूमर या तेरहताली नृत्य करती हैं।
रंगीन घाघरा-चोली और ओढ़नी पहनकर वे ढोल की धुन पर झूमती हैं।
गैर नृत्य का संगीत और वाद्ययंत्र
गैर नृत्य के दौरान कई पारंपरिक राजस्थानी वाद्ययंत्र
बजाए जाते हैं:
ढोल और नगाड़ा – मुख्य लयबद्ध ध्वनि के लिए
शंख – धार्मिक और ऊर्जावान माहौल बनाने के लिए
रावणहत्था और कमायचा – राजस्थानी लोक धुनों के लिए
नर्तक वृत्ताकार (गोल घेरा) बनाकर खड़े होते हैं।
तालबद्ध रूप से वे आगे-पीछे झूमते हैं और एक-दूसरे की डांडिया से ताल मिलाते हैं।
कई बार नर्तक हवा में छलांग लगाते हैं और तलवारों से भी नृत्य प्रस्तुत करते हैं।
गैर नृत्य की विशेषताएँ
✔ वीरता और शक्ति का प्रतीक
✔ समूह नृत्य, जिसमें सभी एक साथ ताल मिलाते हैं
✔ राजस्थानी संस्कृति और परंपरा की झलक
✔ धार्मिक और उत्सवी माहौल बनाने वाला नृत्य
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21 февраля 2025 г. 15:14:00
00:09:31
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