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प्रातकाल जगायवे से मंगला तक नित्य कीर्तन क्रम: pratkal jagave se mangla nitya bhagwan das keertankar

पुष्टिमार्ग प्रणालिका के अनुसार, प्रातःकाल नित्यसेवा के कीर्तनों का क्रमबद्ध गायन, जिसमें स्पष्ट उच्चारण का विशेष ध्यान रखा गया है
अन्य नित्य सेवा कीर्तन-
https://youtu.be/VamIsa65lEQ
https://youtu.be/o58qC4bCzA4

1. गाउँ श्रीवल्लभ ध्याऊँ श्री वल्लभ
2. जय जय श्रीवल्लभप्रभु विट्ठलेश साथे
3. जागिये गोपाल लाल जननी बल जाई
4. मैया मोहि माखन मिश्री भावै
5. तिहारौ दरस मोहि भावै श्रीयमुनाजी
6. मंगलम मंगलम ब्रज भुवि मंगलम
7. मंगल आरती गोपाल की माई
8. प्रात समय हरि नाम लीजिए
પુષ્ટિમાર્ગ પ્રણાલિકા કે અનુસાર,

1-गाऊं श्रीवल्लभ ध्याऊँ श्रीवल्लभ वल्लभ चरणरज तन वल्लभ संतति नित्य प्रति निरखूँ वल्लभदासन दास कहाऊँ।
कृष्ण लीला सेवा नित्य करके जगत सबै तृण तुल्य धराऊँ।
व्यासदास की यही प्रतिज्ञा श्री गोविंद कृपा ते पाऊँ।
ગાઊં શ્રીવલ્લભ ધ્યાઊઁ શ્રીવલ્લભ વલ્લભ ચરણરજ તન લપટાઊઁ।
વલ્લભ સંતતિ નિત્ય પ્રતિ નિરખૂઁ વલ્લભદાસન દાસ કહાઊઁ।
કૃષ્ણ લીલા સેવા નિત્ય કરકે જગત સબૈ તૃણ તુલ્ય ધરાઊઁ।
વ્યાસદાસ કી યહી પ્રતિજ્ઞા શ્રી ગોવિંદ કૃપા તે પાઊઁ।

2-जय जय जय श्रीवल्लभ प्रभु विट्ठलेश साथें निजजन पर करत कृपा धरत हाथ माथे।
दोष सब दूर करत भक्ति भाव हिये धरत काज सब सरत सदा गावत गुण गाथें।
काहे कों देह दमत साधन कर मूरख जन विद्यमान आनंद त्यज चलत क्यों अपाथें।
रसिक चरण शरण सदा रहत है बड़भागी जन अपनों कर गोकुल पति भरत ताहि बाथें।।
જય જય જય શ્રીવલ્લભ પ્રભુ વિટ્ઠલેશ સાથેં નિજજન પર કરત કૃપા ધરત હાથ માથે।
દોષ સબ દૂર કરત ભક્તિ ભાવ હિયે ધરત કાજ સબ સરત સદા ગાવત ગુણ ગાથેં।
કાહે કોં દેહ દમત સાધન કર મૂરખ જન વિદ્યમાન આનંદ ત્યજ ચલત ક્યોં અપાથેં।
રસિક ચરણ શરણ સદા રહત હૈ બડ઼ભાગી જન અપનોં પર ગોકુલ પતિ ભરત તાહિ બાથેં।।

3-जागिये गोपाललाल जननी बलजाई।
उठौ तात प्रात भयौ रजनी कौ तिमिर गयौ टेरत सब ग्वाल बाल मोहना कन्हाई।
उठौ मेरे आनंदकंद गगन चंद मंद भयौ प्रगट्यौ अंशुमान भानु कमलने सुखदाई।
सखा सब पूरत वेणु तुम बिना न छूटै धेनु उठो लाल तजौ सेज सुंदर वरराई।
मुख ते पट दूर कियौ यशोदा कों दर्श दियौ और दधि मांग लियौ विविध रस मिठाई।
जेंवत दोउ राम श्याम सकल मंगल गुण निधान थार में जूंठ रही मानदास पाई।।
જાગિયે ગોપાલલાલ જનની બલજાઈ।
ઉઠૌ તાત પ્રાત ભયૌ રજની કૌ તિમિર ગયૌ ટેરત સબ ગ્વાલ બાલ મોહના કન્હાઈ।
ઉઠૌ મેરે આનંદકંદ ગગન ચંદ મંદ ભયૌ પ્રગટ્યૌ અંશુમાન ભાનુ કમલને સુખદાઈ।
સખા સબ પૂરત વેણુ તુમ બિના ન છૂટૈ ધેનુ ઉઠો લાલ તજૌ સેજ સુંદર વરરાઈ।
મુખ તે પટ દૂર કિયૌ યશોદા કોં દર્શ દિયૌ ઔર દધિ માંગ લિયૌ વિવિધ રસ મિઠાઈ।
જેંવત દોઉ રામ શ્યામ સકલ મંગલ ગુણ નિધાન થાર મેં કછુ જૂંઠ રહી માનદાસ પાઈ।।

4-मैया मोहि माखन मिश्री भावै।
मीठौ दधि मिठाई मधु घृत अपने कर सों क्यों ना खबावै।
कनक दोहनी देकर मेरे गौ दोहन क्यों न सिखावै।
ओंट्यौ दूध धेनु धौरी कौ भर कें कटोरा क्यों न पिबावै।
अजहूं ब्याह करत नहीं मेरौ तोहै नींद क्यों आवै।
चतुर्भुजप्रभु गिरिधर की बतियां सुन लै उछंग पय पान करावै।।

5-तिहारौ दरस मोहि भावै श्री यमुना जी जी।
श्रीगोकुल के निकट बहत है लहरन की छवि आवै। सुखदेनी दुख हरनी श्रीजमुनाजी जे जन प्रात उठ न्हावै।
श्रीमदनमोहनजी की खरी पियारी पटरानी जु कहावै।
श्रीवृंदावन में रास रच्यौ है मोहन मुरली बजावै।
सूरदासप्रभु तिहारे मिलन कों वेद विमल जस गावै।।
તિહારૌ દરસ મોહિ ભાવૈ શ્રી યમુના જી જી।
શ્રીગોકુલ કે નિકટ બહત હૈ લહરન કી છવિ આવૈ। સુખદેની દુખ હરની શ્રીજમુનાજી જે જન પ્રાત ઉઠ ન્હાવૈ।
શ્રીમદનમોહનજી કી ખરી પિયારી પટરાની જુ કહાવૈ।
શ્રીવૃંદાવન મેં રાસ રચ્યૌ હૈ મોહન મુરલી બજાવૈ।
સૂરદાસપ્રભુ તિહારે મિલન કોં વેદ વિમલ જસ ગાવૈ।।
6-मंगलम् मंगलम् ब्रजभुवि मंगलम्।
मंगलमिह श्री नंद यशोदा नाम स्वकीर्तनमेतदरुचिरोत्संग सुलालित पालित रूपम्। श्री श्रीकृष्ण इति श्रुति सारं नाम स्वार्त जनाशयता पापहमिति मंगल रावम्।
ब्रज सुंदरी वयस्य सुरभिवृन्द मृगीगण निरूपम भावा: मंगल सिंधु चयायम्।
मंगलमीषस्मित युतमीक्षण भाषण मुन्नत नासापुट गत मुक्ताफल चलनम।
कोमल चल दंगुलिदल संगत वेणु निनाद विमोहित वृंदावन भुविजाता:।
मंगलमखिलम गोपी शितुरति मंथरगति विभ्रममोहित रासस्थित गानम्।
त्वंजयसततम् गोवर्धनधर पालय निजदासान।।
મંગલમ્ મંગલમ્ બ્રજભુવિ મંગલમ્।
મંગલમિહ શ્રી નંદ યશોદા નામ સ્વકીર્તનમેતદરુચિરોત્સંગ સુલાલિત પાલિત રૂપમ્। શ્રી શ્રીકૃષ્ણ ઇતિ શ્રુતિ સારં નામ સ્વાર્ત જનાશયતા પાપહમિતિ મંગલ રાવમ્।
બ્રજ સુંદરી વયસ્ય સુરભિવૃન્દ મૃગીગણ નિરૂપમ ભાવા: મંગલ સિંધુ ચયાયમ્।
મંગલમીષસ્મિત યુતમીક્ષણ ભાષણ મુન્નત નાસાપુટ ગત મુક્તાફલ ચલનમ।
કોમલ ચલ દંગુલિદલ સંગત વેણુ નિનાદ વિમોહિત વૃંદાવન ભુવિજાતા:।
મંગલમખિલમ ગોપી શિતુરતિ મંથરગતિ વિભ્રમમોહિત રાસસ્થિત ગાનમ્।
ત્વંજયસતતમ્ ગોવર્ધનધર પાલય નિજદાસાન।।

7-मंगल आरती गोपाल की माई माई।
नित्यप्रति मंगल होत निरख मुख चितवन नैन विशाल की।
मंगल रूप श्यामसुंदर कौ मंगल छवि भृकुटी सुभाल की।
चतुर्भुजप्रभु सदा मंगलनिधि बानिक श्रीगिरिधरलाल की।।
8-प्रात समय हरि नाम नाम लीजिए आनंद मंगल में दिन जाय।
चक्रपाणि करुणामय केशव विघ्नविनाशन यादवराय।
कलिमल हरण तरण भवसागर भक्तचिंतामणि कामधेनु।
ऐसौ समरथ नाम हरी कौ वंदनीक पावन पद रेणु। शिव विरंचि इंद्रादि देवता मुनिजन करत नाम की आस।
भक्तवत्सल हरिनाम कल्पतरु वरदायक परमानंददास।।
डॉ भगवान दास कीर्तनकार, कामवन
(अष्टछाप के श्रीगोविंदस्वामीजी के वंशज)
ડૉ ભગવાન દાસ કીર્તનકાર, કામવન
(અષ્ટછાપ કે શ્રીગોવિંદસ્વામીજી કે વંશજ)
सम्पर्क 9828737151
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12 июня 2020 г. 10:07:31
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