शीतला माता का मंदिर गुडगाँव की कहानी/दर्शन करने मात्र से दूर होते हे चरम रोग| SHEETLA MATA MANDIR
शीतला माता का मंदिर, गुडगाँव की कहानी / इतिहास और live दर्शन
'शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।।
शीतला माता मंदिर
देश में नौ शक्तिपीठों में से एक गुड़गांव गांव में शीतला माता देवी धार्मिक मंदिर तालाब, लोगों की एक बड़ी भीड़ को आकर्षित करता है, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, दिवाली त्यौहार के आसपास इस मंदिर में चैत्र और अशध में एक वर्ष में दो बार महीने। कुम्भ जैसी स्थिति इन मेलों के दौरान अनुभव की जाती है ऐसा माना जाता है कि इस शक्तिपीठ की पूजा सभी इच्छाओं को पूरा करती है।गुड़गांव के शीतला मंदिर की कहानी
पौराणिक
गुड़गांव स्थित शीतला माता के मंदिर कहानी को महाभारत काल से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य यही पर कौरवों और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया करते थे। जब महाभारत युद्ध में गुरु द्रोण वीरगति को प्राप्त हुए तो उनकी कृपी उनके साथ सती हो गई। माना जाता है कि लोगों के लाख मनाने पर भी वे नहीं मानी और 16 श्रृंगार कर सती होने का निश्चय लेकर गुरु द्रोण की चिता पर बैठ गई। उस समय उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया कि मेरे इस सती स्थल पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर पहुँचेगा, उसकी मन्नत जरुर पूरी होगी।
क्या कहता है शीतला मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि सत्रहवीं सदी में महाराजा भरतपुर ने गुड़गाँव में माता कृपि के सती स्थल पर मन्दिर का निर्माण करवाया और सवा किलो सोने की माता कृपी की मूर्ति बनवाकर वहां स्थापित करवायी। कहा जाता है कि बाद में किसी मुगल बादशाह ने मूर्ति को तालाब में गिरवा दिया जिसे बाद में माता के दर्शन के बाद सिंघा भक्त ने निकलवाया। बताया जाता है कि सिंघा भगत के तप को देखकर क्षेत्रीय लोग उनके पांव पूजने लगे थे।
मूर्ति की स्थापना को लेकर ही एक अन्य रोचक किस्सा कुछ यूं है गुड़गांव से थोड़ी दूर है फर्रुख नगर वहां के एक बढ़ई की कन्या बहुत सुंदर थी। दिल्ली के तत्कालीन बादशाह तक उसकी सुंदरता का जिक्र पहुंच गया। बादशाह ने विवाह की इच्छा प्रकट की लेकिन लड़की के पिता को विधर्मी बादशाह से बेटी की शादी मंजूर नहीं थी। उसने भरतपुर के महाराज सूरजमल से इसकी फरियाद की लेकिन दूसरे राज्य का मसला बताकर उसे टाल दिया। जब मायूस होकर वह लौट रहा था तो युवराज से उसकी मुलाकात हुई और उसने युवराज के आगे गुहार लगाई। इस पर युवराज ने पिता के खिलाफ जाकर विद्रोह करते हुए दिल्ली पर आक्रमण किया उसने आक्रमण से पहले गुड़गांव में माता से विजय की मन्नत मांगी और माता के मढ़ को पक्का करवाने का संकल्प लिया। विजयी होने के बाद उसने यहां पर माता का पक्का मढ़ बनवाया।
Kindly watch my this video and share ur comments with me. This is my small effort to spread our Indian culture and sanskriti in India. Please give me ur blessings for this deed.
Kindly contact me for devotional anchoring in hindi and Sanskrit, for script writing of religious stories and for Sanskrit vandana.
Background Sunrise video is from : Beautiful Sunrise Time lapse | Unedited | No Copyright Video | Hamilton, New Zealand
https://www.youtube.com/watch?v=o_kgdCGisso
Background music is from : Divine peace By Deepak Meena - Soft instrumental theme music
From :Mr. Deepak Meena. He is great Music Composer.
https://www.youtube.com/watch?v=99S2nvai4Ac
Background Music : Relax Music -Indian Temple [Royalty free INDIAN MUSIC ]
From :
Sfx and Music World
https://www.youtube.com/watch?v=fjrY-UouDjI
Background video is from : Red Indian Traditional Graphics Video background HD 1080
Amit111188
https://www.youtube.com/watch?v=gQgu-uEKR2A
KINDLY VISIT MY BLOG : https://jyotiupasana.in/
Thanks a lot,
Jyoti Goenka
Blessings of Jai Mata Di
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'शीतले त्वं जगन्माता शीतले त्वं जगत्पिता।
शीतले त्वं जगद्धात्री शीतलायै नमो नमः।।
शीतला माता मंदिर
देश में नौ शक्तिपीठों में से एक गुड़गांव गांव में शीतला माता देवी धार्मिक मंदिर तालाब, लोगों की एक बड़ी भीड़ को आकर्षित करता है, विशेष रूप से नवरात्रि के दौरान, दिवाली त्यौहार के आसपास इस मंदिर में चैत्र और अशध में एक वर्ष में दो बार महीने। कुम्भ जैसी स्थिति इन मेलों के दौरान अनुभव की जाती है ऐसा माना जाता है कि इस शक्तिपीठ की पूजा सभी इच्छाओं को पूरा करती है।गुड़गांव के शीतला मंदिर की कहानी
पौराणिक
गुड़गांव स्थित शीतला माता के मंदिर कहानी को महाभारत काल से जोड़कर देखा जाता है। मान्यता है कि महाभारत काल में गुरु द्रोणाचार्य यही पर कौरवों और पांडवों को अस्त्र-शस्त्र विद्या का ज्ञान दिया करते थे। जब महाभारत युद्ध में गुरु द्रोण वीरगति को प्राप्त हुए तो उनकी कृपी उनके साथ सती हो गई। माना जाता है कि लोगों के लाख मनाने पर भी वे नहीं मानी और 16 श्रृंगार कर सती होने का निश्चय लेकर गुरु द्रोण की चिता पर बैठ गई। उस समय उन्होंने लोगों को आशीर्वाद दिया कि मेरे इस सती स्थल पर जो भी अपनी मनोकामना लेकर पहुँचेगा, उसकी मन्नत जरुर पूरी होगी।
क्या कहता है शीतला मंदिर का इतिहास
कहा जाता है कि सत्रहवीं सदी में महाराजा भरतपुर ने गुड़गाँव में माता कृपि के सती स्थल पर मन्दिर का निर्माण करवाया और सवा किलो सोने की माता कृपी की मूर्ति बनवाकर वहां स्थापित करवायी। कहा जाता है कि बाद में किसी मुगल बादशाह ने मूर्ति को तालाब में गिरवा दिया जिसे बाद में माता के दर्शन के बाद सिंघा भक्त ने निकलवाया। बताया जाता है कि सिंघा भगत के तप को देखकर क्षेत्रीय लोग उनके पांव पूजने लगे थे।
मूर्ति की स्थापना को लेकर ही एक अन्य रोचक किस्सा कुछ यूं है गुड़गांव से थोड़ी दूर है फर्रुख नगर वहां के एक बढ़ई की कन्या बहुत सुंदर थी। दिल्ली के तत्कालीन बादशाह तक उसकी सुंदरता का जिक्र पहुंच गया। बादशाह ने विवाह की इच्छा प्रकट की लेकिन लड़की के पिता को विधर्मी बादशाह से बेटी की शादी मंजूर नहीं थी। उसने भरतपुर के महाराज सूरजमल से इसकी फरियाद की लेकिन दूसरे राज्य का मसला बताकर उसे टाल दिया। जब मायूस होकर वह लौट रहा था तो युवराज से उसकी मुलाकात हुई और उसने युवराज के आगे गुहार लगाई। इस पर युवराज ने पिता के खिलाफ जाकर विद्रोह करते हुए दिल्ली पर आक्रमण किया उसने आक्रमण से पहले गुड़गांव में माता से विजय की मन्नत मांगी और माता के मढ़ को पक्का करवाने का संकल्प लिया। विजयी होने के बाद उसने यहां पर माता का पक्का मढ़ बनवाया।
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https://www.youtube.com/watch?v=gQgu-uEKR2A
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