रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 78 - रुक्मिणी का शिशुपाल से विवाह का प्रस्ताव
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बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।
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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 78 - Rukmini Ka Shishupaal Se Vivah Ka Prastaav
नारद मुनि द्वारिका आते हैं और भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर कहते हैं कि माता लक्ष्मी ने आपकी सेवा के लिये ही धरती पर रुक्मिणी के रूप में अवतार लिया है, किन्तु अभी तक उन्हें आपके दर्शन नहीं हुए। नारद बताते हैं कि रुक्मिणी को विश्वास था कि उनके पिता विदर्भ नरेश राजा भीष्मक उनका स्वयंकर करेंगे और आप उस स्वयंवर में पधारेंगे तो वह आपका वरण कर लेंगी। परन्तु विदर्भ राजकुमार रुक्मि अपनी बहन का विवाह अपने मित्र शिशुपाल से करना चाहता है इसलिये उसके दबाव में महाराज भीष्मक स्वयंवर का आयोजन नहीं कर रहे हैं। राजकुमार रुक्मि को ब्रह्मा जी से ब्रह्मास्त्र प्राप्त है, इसलिये सब उससे डरते हैं। नारद श्रीकृष्ण को यह भी सूचित करते हैं कि यदि आपने देवी रुक्मिणी का उद्धार नहीं किया तो वह अपने प्राण त्याग देंगी। वह भावुक होकर यह भी कहते हैं कि मुझे स्मरण है कि आपके रामावतार के समय माता लक्ष्मी सीता के रूप में अवतरित हुई थीं और उन्हें पूरे जीवन दुख ही दुख उठाने पड़े थे। प्रभु, अब इस जीवन में उन्हें दुखी मत होने देना। यह कहते-कहते उनके नेत्रों से अश्रु की अविरल धारा बहती है। श्रीकृष्ण भी भावुक होते हैं और नारद जी से कहते हैं कि आप यह उलाहना क्यों दे रहे हैं जबकि आप जानते हैं कि उस जीवन में मैंने भी सीता से कम दुख नहीं सहे थे। सीता त्याग के बाद राजा होते हुए भी मैं राजमहल में सारे सुख त्याग कर सन्यासी की भाँति ही रहा था। नारद क्षमा माँगते हैं और कहते हैं कि वे उलाहना देने नहीं, देवी रुक्मिणी की पीड़ा आप तक पहुँचाने आया था। उधर विदर्भ राज्य में रुक्मिणी माँ गौरी के मन्दिर में सखियों संग पूजा अर्चना करती हैं और माता गौरी से कहती हैं कि यदि आप मेरा हाथ पकड़ कर श्रीकृष्ण जी के चरणों तक नहीं पहुँचा सकती हैं तो धर्मराज से कह दें कि मेरी मृत्यु के द्वार खोल दें ताकि मैं उस द्वार को पार करके सीधे उनके पास पहुँच जाऊँ। उधर राजमहल में उसके माता पिता व पांचों भाई उसके विवाह के लिये चर्चा कर रहे थे। राजा भीष्मक कहते हैं कि रुक्मिणी की कुण्डली देखकर राजपुरोहित ने उसे दिव्य कन्या बताया है और कहा है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने उसका विवाह श्रीकृष्ण के साथ पहले से निर्धारित कर रखा है। महारानी कहती हैं कि उनकी बेटी स्वयं भी श्रीकृष्ण को अपने मन में रमाये हुए है। रुक्मिणी का एक अन्य भाई रुक्मरथ कहता है कि लोग तो श्रीकृष्ण को भगवान का अवतार मानते हैं। युवराज रुक्मि पूरी वार्ता को अनमने ढंग से सुनता है और अन्त में अपना निर्णय सुनाता है कि चेदि के राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल को मगध नरेश जरासंध ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया है और वह अपार शक्ति का स्वामी बन चुका है। वही मेरी बहन का योग्य वर है, कृष्ण जैसा डरपोक और कायर नहीं जो जरासंध के भय से समुद्र के एक छोटे से टापू में चूहे की भाँति छिपकर बैठा हुआ है। इसके बाद वह सबको अपना अन्तिम निर्णय सुनाते हुए कहता है कि राजपरिवारों में राजकुमारियों के विवाह राजनीतिक संतुलन बनाने के लिये किये जाते हैं। एक शक्तिशाली दूसरे शक्तिशाली से सम्बन्ध बनाकर स्वयं को और शक्तिशाली बना सकता है। मैं एक ग्वाले के साथ सम्बन्ध जोड़ने के पक्ष में नहीं हूँ, इसलिये आज ही शिशुपाल को बारात लाने का न्यौता भेज रहा हूँ। राजा भीष्मक स्वयं को असहाय बताकर सब कुछ विधाता के हाथ छोड़ते हैं। महारानी अपनी बेटी रुक्मिणी से मिलने उसके कक्ष में जाती हैं और उसे राजकुमार रुक्मि के हठ के बारे में बताती हैं। रुक्मिणी उनसे साफ कह देती हैं कि शिशुपाल से मेरे मृत शरीर का ही विवाह हो सकेगा। यह रात रुक्मिणी के लिये बेचैन करने वाली है। वह दर्द भरा गीत गाती हैं। क्षीर सागर में विराजमान भगवान विष्णु अपनी प्रिया की इस दर्द भरी पुकार को सुनते हैं। अगले दिन राजकुमार रुक्मि सेनापति को पत्र लेकर शिशुपाल के पास जाने को कहता है और तत्काल बारात लाने का न्यौता देता है। वह यह सन्देश भी देता है कि सम्भव है कि यदुवंशी इस विवाह में विघ्न डालें इसलिये हमारे सभी मित्र राजा इस बारात में अवश्य आयें ताकि यादवों का पूरी शक्ति के साथ प्रतिकार किया जा सके। रुक्मि सारी तैयारी गुप्त रखने का आदेश भी देता है किन्तु उसकी योजना श्रीकृष्ण के मानस तक पहुँचती है।
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बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏 भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।
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नारद मुनि द्वारिका आते हैं और भगवान श्रीकृष्ण से मिलकर कहते हैं कि माता लक्ष्मी ने आपकी सेवा के लिये ही धरती पर रुक्मिणी के रूप में अवतार लिया है, किन्तु अभी तक उन्हें आपके दर्शन नहीं हुए। नारद बताते हैं कि रुक्मिणी को विश्वास था कि उनके पिता विदर्भ नरेश राजा भीष्मक उनका स्वयंकर करेंगे और आप उस स्वयंवर में पधारेंगे तो वह आपका वरण कर लेंगी। परन्तु विदर्भ राजकुमार रुक्मि अपनी बहन का विवाह अपने मित्र शिशुपाल से करना चाहता है इसलिये उसके दबाव में महाराज भीष्मक स्वयंवर का आयोजन नहीं कर रहे हैं। राजकुमार रुक्मि को ब्रह्मा जी से ब्रह्मास्त्र प्राप्त है, इसलिये सब उससे डरते हैं। नारद श्रीकृष्ण को यह भी सूचित करते हैं कि यदि आपने देवी रुक्मिणी का उद्धार नहीं किया तो वह अपने प्राण त्याग देंगी। वह भावुक होकर यह भी कहते हैं कि मुझे स्मरण है कि आपके रामावतार के समय माता लक्ष्मी सीता के रूप में अवतरित हुई थीं और उन्हें पूरे जीवन दुख ही दुख उठाने पड़े थे। प्रभु, अब इस जीवन में उन्हें दुखी मत होने देना। यह कहते-कहते उनके नेत्रों से अश्रु की अविरल धारा बहती है। श्रीकृष्ण भी भावुक होते हैं और नारद जी से कहते हैं कि आप यह उलाहना क्यों दे रहे हैं जबकि आप जानते हैं कि उस जीवन में मैंने भी सीता से कम दुख नहीं सहे थे। सीता त्याग के बाद राजा होते हुए भी मैं राजमहल में सारे सुख त्याग कर सन्यासी की भाँति ही रहा था। नारद क्षमा माँगते हैं और कहते हैं कि वे उलाहना देने नहीं, देवी रुक्मिणी की पीड़ा आप तक पहुँचाने आया था। उधर विदर्भ राज्य में रुक्मिणी माँ गौरी के मन्दिर में सखियों संग पूजा अर्चना करती हैं और माता गौरी से कहती हैं कि यदि आप मेरा हाथ पकड़ कर श्रीकृष्ण जी के चरणों तक नहीं पहुँचा सकती हैं तो धर्मराज से कह दें कि मेरी मृत्यु के द्वार खोल दें ताकि मैं उस द्वार को पार करके सीधे उनके पास पहुँच जाऊँ। उधर राजमहल में उसके माता पिता व पांचों भाई उसके विवाह के लिये चर्चा कर रहे थे। राजा भीष्मक कहते हैं कि रुक्मिणी की कुण्डली देखकर राजपुरोहित ने उसे दिव्य कन्या बताया है और कहा है कि स्वयं ब्रह्मा जी ने उसका विवाह श्रीकृष्ण के साथ पहले से निर्धारित कर रखा है। महारानी कहती हैं कि उनकी बेटी स्वयं भी श्रीकृष्ण को अपने मन में रमाये हुए है। रुक्मिणी का एक अन्य भाई रुक्मरथ कहता है कि लोग तो श्रीकृष्ण को भगवान का अवतार मानते हैं। युवराज रुक्मि पूरी वार्ता को अनमने ढंग से सुनता है और अन्त में अपना निर्णय सुनाता है कि चेदि के राजा दमघोष के पुत्र शिशुपाल को मगध नरेश जरासंध ने अपना दत्तक पुत्र बना लिया है और वह अपार शक्ति का स्वामी बन चुका है। वही मेरी बहन का योग्य वर है, कृष्ण जैसा डरपोक और कायर नहीं जो जरासंध के भय से समुद्र के एक छोटे से टापू में चूहे की भाँति छिपकर बैठा हुआ है। इसके बाद वह सबको अपना अन्तिम निर्णय सुनाते हुए कहता है कि राजपरिवारों में राजकुमारियों के विवाह राजनीतिक संतुलन बनाने के लिये किये जाते हैं। एक शक्तिशाली दूसरे शक्तिशाली से सम्बन्ध बनाकर स्वयं को और शक्तिशाली बना सकता है। मैं एक ग्वाले के साथ सम्बन्ध जोड़ने के पक्ष में नहीं हूँ, इसलिये आज ही शिशुपाल को बारात लाने का न्यौता भेज रहा हूँ। राजा भीष्मक स्वयं को असहाय बताकर सब कुछ विधाता के हाथ छोड़ते हैं। महारानी अपनी बेटी रुक्मिणी से मिलने उसके कक्ष में जाती हैं और उसे राजकुमार रुक्मि के हठ के बारे में बताती हैं। रुक्मिणी उनसे साफ कह देती हैं कि शिशुपाल से मेरे मृत शरीर का ही विवाह हो सकेगा। यह रात रुक्मिणी के लिये बेचैन करने वाली है। वह दर्द भरा गीत गाती हैं। क्षीर सागर में विराजमान भगवान विष्णु अपनी प्रिया की इस दर्द भरी पुकार को सुनते हैं। अगले दिन राजकुमार रुक्मि सेनापति को पत्र लेकर शिशुपाल के पास जाने को कहता है और तत्काल बारात लाने का न्यौता देता है। वह यह सन्देश भी देता है कि सम्भव है कि यदुवंशी इस विवाह में विघ्न डालें इसलिये हमारे सभी मित्र राजा इस बारात में अवश्य आयें ताकि यादवों का पूरी शक्ति के साथ प्रतिकार किया जा सके। रुक्मि सारी तैयारी गुप्त रखने का आदेश भी देता है किन्तु उसकी योजना श्रीकृष्ण के मानस तक पहुँचती है।
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