nb-2022-02-16-ब्रज के होरी रसिया गायन
होरी में नैन मार गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
मोते कहे गैल चल मेरी,
वहीं करूँगो मन की तेरी,
मोपे ऐसो रंग डार गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
मोते कहे नाम कहा तेरौ,
कौन धाम गाम कहा तेरौ,
कुंजन में मोय बुलाय गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
मोते कहे नाँच संग मेरे,
और हा हा खावै मेरे,
मोय अपने संग नचाय गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
जब कुँजन में मैं आई,
वाने बाँह पकर बैठाई,
होलै-होलै बतराय गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
मोरी अँखिया गुलाबी कर डारी रसिया ।।
हाथ में लाल, गुलाल फेंट में, दो मुट्ठी भर मारी रसिया ।। मोरी...
अँगिया तोड़, मरोड़ी बैयां मोरी, पिचकारी भर मारी रसिया ।।
मोतियन माँग भरी बिखरी मोरी, सास सुनेगी दे गारी रसिया ।।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, चरण कमल बलिहारी रसिया ।।
रंग मत डारै रे अरे साँवरिया ||
साँवरिया होरी के खिलार, रंग मत डारै ....|
मेरी सास बड़ी लड़हारी रे सुन साँवरिया,
मेरी ननदी फरिया फार, रंग मत डारै ....|
मेरे तो बलम की रीति बुरी सुन साँवरिया,
वो हरदम रखै कटार, रंग मत डारै ....|
मेरे ससुर की मूंछ बड़ी है साँवरिया,
वो तो लम्बी छल्लेदार, रंग मत डारै ....|
सवा लाख की मेरी चूनर साँवरिया,
मेरी साड़ी तो जरतार, रंग मत डारै ....|
तेरी कमरिया को कहा बिगरैगो साँवरिया,
जब चाहे झरकार, रंग मत डारै ....||
वृन्दावन खेल रच्यो भारी ।।
वृन्दावन की गोरी नारी, टूटे हार फटी सारी ।
ब्रज की होरी ब्रज की गारी, ब्रज की श्री राधा प्यारी ।
पुरुषोत्तम प्रभु होरी खेलैं, तन मन धन सर्वस वारी ।
आवै अचक मेरी बाखर में होरी को खिलार ।।
अचक-अचक मेरे अँगना आवै, आप नचै और मोय नचावै,
देखत ननदुल खोल किंवार, होरी को खिलार ।।
डारत रंग करत रस बतियाँ, सहज हि सहज लिपट जाय छतियाँ,
यह दारी तेरो लगवार, होरी को खिलार ।।
जानै कहा सार होरी की, समुझै बहुत घात चोरी की,
आखिर तो गायन कौ ग्वार, होरी को खिलार ।।
शालिग्राम नेक हँस बोलै, कपट गाँठ हियरा की खोलै,
लिपटत होय गरे को हार, होरी को खिलार ।।
रंगभरी होरी खिलाय ले ओ होरी के रसिया ।।
होरी के रसिया प्यारे नन्द जू के छैया, फागुन खूब मनाय ले ।
फगुना में मैं नथनी लूँगी, नथनी में फूलना डलाय दे ।
शीशा जरी आरसी लूँगी, मुख अपनों दिखराय दे ।
१६ लर की लऊँ कौंधनी, रौना हू लटकाय दे ।
पायल लूँगी बिछुवा लूँगी, बिछुवा में घुँघरू जड़ाय दे ।
होरी हो ब्रजराज दुलारे ।।
अब क्यों जाय छिपे जननी ढिंग, द्वै बापन के वारे ।
कै तो निकस के होरि खेलो, कै कहो मुख ते हारे -
जोर कर आगे हमारे ।
बहुत दिनन सों तुम मनमोहन फाग ही फाग पुकारे ।
आज देखियो खेल फाग कौ, रंग की उड़त फुहारें -
चले जहाँ कुम–कुम न्यारे ।
निपट अनीति उठाई तुमने, रोकत गैल गिरारे ।
नारायण अब खबर परेगी, नेक निकस आय द्वारे -
सूरत अपनी दिखलारे ।
छेड़ै रोज डगरिया में तेरो ढीट कन्हैया मैया ।।
बरस दिना याकी होरी होवै,
पूछो सबै नगरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
फागुन की तौ कहा बताऊँ,
छाँड़ै रंग घघरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
भर-भर फेंट गुलाल उड़ावै,
करदे छेद बदरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
ऊबट बाट अकेली घेरै,
रोकै गली संकरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
बैठ कदम पै वंशी बजावै,
लै लै नाम बँसुरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
भयो दिवानों फाग खेल जाय,
देखो गली बजरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
कैसे कोई बचैगी याते,
डारै जाल मछरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।।
रसिया भँवर बन्यौ बैठ्यौ रहियो रे, चल बस मेरी प्यौसार ।।
नथ गढाऊँ गुरदा गोखुरू रे, खँगवारी के छल्ला छार ।
पलका की दऊँ चाकरी रे, अँचरा ते करूँ ब्यार ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै, तोते नैनां लड़ाऊँ द्वै चार ।
Morning Satsang Time-08:30 to 09:30 am
Night Sankeertan Time-06:30 to 07:30 pm
Видео nb-2022-02-16-ब्रज के होरी रसिया गायन канала Maan Mandir
मोते कहे गैल चल मेरी,
वहीं करूँगो मन की तेरी,
मोपे ऐसो रंग डार गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
मोते कहे नाम कहा तेरौ,
कौन धाम गाम कहा तेरौ,
कुंजन में मोय बुलाय गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
मोते कहे नाँच संग मेरे,
और हा हा खावै मेरे,
मोय अपने संग नचाय गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
जब कुँजन में मैं आई,
वाने बाँह पकर बैठाई,
होलै-होलै बतराय गयो री कान्हा बंसी वारौ ।
मोरी अँखिया गुलाबी कर डारी रसिया ।।
हाथ में लाल, गुलाल फेंट में, दो मुट्ठी भर मारी रसिया ।। मोरी...
अँगिया तोड़, मरोड़ी बैयां मोरी, पिचकारी भर मारी रसिया ।।
मोतियन माँग भरी बिखरी मोरी, सास सुनेगी दे गारी रसिया ।।
चन्द्रसखी भज बालकृष्ण छवि, चरण कमल बलिहारी रसिया ।।
रंग मत डारै रे अरे साँवरिया ||
साँवरिया होरी के खिलार, रंग मत डारै ....|
मेरी सास बड़ी लड़हारी रे सुन साँवरिया,
मेरी ननदी फरिया फार, रंग मत डारै ....|
मेरे तो बलम की रीति बुरी सुन साँवरिया,
वो हरदम रखै कटार, रंग मत डारै ....|
मेरे ससुर की मूंछ बड़ी है साँवरिया,
वो तो लम्बी छल्लेदार, रंग मत डारै ....|
सवा लाख की मेरी चूनर साँवरिया,
मेरी साड़ी तो जरतार, रंग मत डारै ....|
तेरी कमरिया को कहा बिगरैगो साँवरिया,
जब चाहे झरकार, रंग मत डारै ....||
वृन्दावन खेल रच्यो भारी ।।
वृन्दावन की गोरी नारी, टूटे हार फटी सारी ।
ब्रज की होरी ब्रज की गारी, ब्रज की श्री राधा प्यारी ।
पुरुषोत्तम प्रभु होरी खेलैं, तन मन धन सर्वस वारी ।
आवै अचक मेरी बाखर में होरी को खिलार ।।
अचक-अचक मेरे अँगना आवै, आप नचै और मोय नचावै,
देखत ननदुल खोल किंवार, होरी को खिलार ।।
डारत रंग करत रस बतियाँ, सहज हि सहज लिपट जाय छतियाँ,
यह दारी तेरो लगवार, होरी को खिलार ।।
जानै कहा सार होरी की, समुझै बहुत घात चोरी की,
आखिर तो गायन कौ ग्वार, होरी को खिलार ।।
शालिग्राम नेक हँस बोलै, कपट गाँठ हियरा की खोलै,
लिपटत होय गरे को हार, होरी को खिलार ।।
रंगभरी होरी खिलाय ले ओ होरी के रसिया ।।
होरी के रसिया प्यारे नन्द जू के छैया, फागुन खूब मनाय ले ।
फगुना में मैं नथनी लूँगी, नथनी में फूलना डलाय दे ।
शीशा जरी आरसी लूँगी, मुख अपनों दिखराय दे ।
१६ लर की लऊँ कौंधनी, रौना हू लटकाय दे ।
पायल लूँगी बिछुवा लूँगी, बिछुवा में घुँघरू जड़ाय दे ।
होरी हो ब्रजराज दुलारे ।।
अब क्यों जाय छिपे जननी ढिंग, द्वै बापन के वारे ।
कै तो निकस के होरि खेलो, कै कहो मुख ते हारे -
जोर कर आगे हमारे ।
बहुत दिनन सों तुम मनमोहन फाग ही फाग पुकारे ।
आज देखियो खेल फाग कौ, रंग की उड़त फुहारें -
चले जहाँ कुम–कुम न्यारे ।
निपट अनीति उठाई तुमने, रोकत गैल गिरारे ।
नारायण अब खबर परेगी, नेक निकस आय द्वारे -
सूरत अपनी दिखलारे ।
छेड़ै रोज डगरिया में तेरो ढीट कन्हैया मैया ।।
बरस दिना याकी होरी होवै,
पूछो सबै नगरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
फागुन की तौ कहा बताऊँ,
छाँड़ै रंग घघरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
भर-भर फेंट गुलाल उड़ावै,
करदे छेद बदरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
ऊबट बाट अकेली घेरै,
रोकै गली संकरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
बैठ कदम पै वंशी बजावै,
लै लै नाम बँसुरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
भयो दिवानों फाग खेल जाय,
देखो गली बजरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।
कैसे कोई बचैगी याते,
डारै जाल मछरिया में तेरो ढीट कन्हैया ....।।
रसिया भँवर बन्यौ बैठ्यौ रहियो रे, चल बस मेरी प्यौसार ।।
नथ गढाऊँ गुरदा गोखुरू रे, खँगवारी के छल्ला छार ।
पलका की दऊँ चाकरी रे, अँचरा ते करूँ ब्यार ।
पुरुषोत्तम प्रभु की छवि निरखै, तोते नैनां लड़ाऊँ द्वै चार ।
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