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रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 67 - राजा मुचुकन्द की कथा

भक्त को भगवान से और जिज्ञासु को ज्ञान से जोड़ने वाला एक अनोखा अनुभव। तिलक प्रस्तुत करते हैं दिव्य भूमि भारत के प्रसिद्ध धार्मिक स्थानों के अलौकिक दर्शन। दिव्य स्थलों की तीर्थ यात्रा और संपूर्ण भागवत दर्शन का आनंद।

Watch the video song of ''Darshan Do Bhagwaan'' here - https://youtu.be/j7EQePGkak0

Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 67 - Raja Muchukand Ki Katha

राजा शल्य मगध नरेश जरासंध को कालयवन के जन्म की कथा सुनाता है किस प्रकार अप्सरा रम्भा बालक को उसके पिता शैशिरायण के सुपुर्द कर वापस स्वर्गलोक को चली गयी। अप्सरा के जाने के बाद ऋषि शैशिरायण का संसारिक मोह खत्म हो गया और वह फिर से वैरागी हो गये। उन्हीं दिनों मलेच्छ देश में पराक्रमी यवन राजा कालजंग राज करता था। वह सन्तानहीन था। उसका मंत्री उसे आनन्दगिरि पर्वत पर रहने वाले एक चमत्कारी बाबा के पास ले गया। बाबा ने कालजंग को शैशिरायण मुनि और अप्सरा रम्भा के बालक को गोद लेने का परामर्श दिया और यह भी बताया कि वह बालक वीर और पराक्रमी होगा और भगवान शिव के वरदान के कारण कोई उसे मार नहीं सकेगा। कालजंग ने तारकण्डय वन जाकर ऋषि शैशिरायण से भेंट की। ऋषिवर ने इसे देवइच्छा मानकर अपना पुत्र कालजंग को सौंप दिया। कालजंग ने उसका नाम कालयवन रखा। कालजंग की मृत्यु के बाद कालयवन मलेच्छ देश का राजा बना। राजा शल्य जरासंध से कहता है कि कालयवन ने पूरे विश्व के राजाओं को युद्ध की चुनौती दे रखी है। हमारे उकसाने पर कालयवन मथुरा पर आक्रमण कर देगा। इसके बाद शल्य मलेच्छ देश जाकर कालयवन से मिलता है और उसे जरासंध का पत्र सौंपता है। कालयवन आश्चर्यचकित होता है कि अकेले कृष्ण और बलराम ने जरासंध की कई अक्षौहिणी सेना को सत्रह बार पराजित कर दिया है। तब शल्य उसे बताता है कि कृष्ण के सुदर्शन चक्र के सामने कोई भी आ जाये तो उसका सिर कट जाता है। इसी कारण मैं आपसे सहायता माँगने आया हूँ। कालयवन अट्टाहास करके कहता है कि मुझे स्वयं ऐसे योद्धा की तलाश थी जिससे बराबरी का युद्ध करने में मुझे मजा आये। चाहे उससे युद्ध करने में मेरी जीत हो या हार। किन्तु कालयवन यह सोच कर परेशान होता है कि वह सुदर्शन चक्र का सामना कैसे करेगा क्योंकि उसका तोड़ तो उसके पास भी नहीं है। वह शल्य से कहता है कि सुदर्शन चक्र के सामने आने पर तो मेरा सिर भी कट सकता है। तब शल्य उसे बताता है कि भगवान शिव के दो वरदान हैं कि इस संसार में कोई भी योद्धा किसी भी अस्त्र या शस्त्र से आपको मार नहीं सकता है। इसके अतिरिक्त सूर्यवंशी हो अथवा चन्द्रवंशी कोई भी क्षत्रिय आपको युद्ध में पराजित नहीं कर सकेगा। शल्य यह राज भी बताता है कि कृष्ण का लालन पालन भले ही गोकुल में हुआ हो लेकिन जन्म मथुरा में हुआ था। इसलिये वह माथुर हैं। कालयवन अपने सेनापति को हिन्दुस्थान के लिये कूच करने का आदेश देता है। अक्रूर इसकी सूचना श्रीकृष्ण को देते हैं। वह उन्हें यह भी योजना बताते हैं कि जब आप कालयवन के साथ युद्धरत होंगे तब जरासंध पीछे से मथुरा में घुसकर नगर का विध्वंस करने की योजना बनाये हुए है। यह सुनकर बलराम क्रोध में भरते हैं और श्रीकृष्ण से कहते हैं कि अबकी बार मैं जरासंध को जान से मार दूँगा। श्रीकृष्ण पुनः बलराम को समझाते हैं कि ब्रह्माजी ने जरासंध की मृत्यु आपके हाथों नहीं लिखी है इसलिये व्यर्थ की चेष्टा करने से कोई लाभ नहीं है। अभी हमें कालयवन के बारे में सोचना है क्योंकि भगवान शिव के वरदान के कारण उसे कोई नहीं मार सकता। उसे न तो आपका हल मार सकता है और न मेरा सुदर्शन चक्र। इसके बाद श्रीकृष्ण कालयवन से निपटने की अपनी रणनीति का कुछ भाग बताते हैं। वह कहते हैं कि जब कालयवन मथुरा को घेर ले तो उससे युद्ध करने मुझे अकेले जाने देना। बलराम कृष्ण की बात पर विस्मित होते हैं। श्रीकृष्ण उन्हें बताते हैं कि शिव जी के वरदान के कारण हम उसे नहीं मार सकते तो हमें कोई ऐसा पुरुष ढूँढ़ना होगा जो उसे मार सके, और मैंने ऐसा पुरुष ढूँढ़ लिया है। इसके बाद श्रीकृष्ण राजा मुचुकन्द के बारे में बताते हैं जो त्रेतायुग में पैदा हुए थे और द्वापर युग में भी धरती पर विद्यमान हैं। अक्रूर के पूछने पर श्रीकृष्ण बताते हैं कि राजा मुचुकन्द मथुरा के निकट ही एक पर्वत में सोये पड़े हैं। श्रीकृष्ण राजा मुचुकन्द का इतिहास भी सुनाते हैं कि मुचुकन्द इक्ष्वाकु वंश के प्रतापी राजा थे। एक समय जब देवासुर संग्राम में देवता हार रहे थे तब देवराज इन्द्र ने धरती के चक्रवर्ती सम्राट राजा मुचुकन्द से सहायता माँगी। राजा मुचुकुन्द ने उस युद्ध में देवताओं की तरफ से भाग लिया और दैत्यों के विरुद्ध घोर संग्राम किया।
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18 декабря 2020 г. 6:30:00
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