रामानंद सागर कृत श्री कृष्ण भाग 80 - श्री कृष्ण ने किया रुक्मिणी का हरण | रुक्मि और श्री कृष्ण युद्ध
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बजरंग बाण | पाठ करै बजरंग बाण की हनुमत रक्षा करै प्राण की | जय श्री हनुमान | तिलक प्रस्तुति 🙏
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Ramanand Sagar's Shree Krishna Episode 80 - Shri Krishna Ne Kiya Rukmini Ka Haran. Rukmi and Shri Krishna Ka Yudh.
राजकुमारी रुक्मिणी की रक्षा के लिये श्रीकृष्ण का रथ तेजी से कुण्डिनीपुर की ओर बढ़ रहा था। उधर रुक्मिणी के लिये एक पल पल भारी पड़ रहा था। न तो अभी तक श्रीकृष्ण पहुचे थे और न गुरुदेव की तरफ से कोई सूचना थी। उनकी सखी मैनावती महल की ड्योढ़ी पर दृष्टि गड़ाये उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। किसी को आता न देखकर रुक्मिणी का हृदय बैठा जा रहा था। दूसरी ओर शिशुपाल की बारात राजमहल पहुँच चुकी थी। शिशुपाल राजकुमार रुक्मि से कुछ अपशकुन का अहसास होने की बात कहता है। तभी गुरु सदानन्द राजमहल में प्रवेश करते हैं। उन्हें देखकर राजकुमारी रुक्मिणी प्रफुल्लित हो उठती हैं। मैनावती राजगुरु के कक्ष मे पधारने की सूचना देती है। रुक्मिणी अन्य दासियों को कक्ष से बाहर भेज देती हैं। गुरु सदानन्द रुक्मिणी को बताते हैं कि श्रीकृष्ण ने तुम्हारा प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया है और तुम्हें लेने स्वयं आये हैं। रुक्मिणी पूछती हैं कि फिर वे कहाँ हैं। गुरु सदानन्द कहते हैं कि श्रीकृष्ण बारात में आये सभी राजाओं को पराजित कर तुमसे विवाह करने की क्षमता रखते हैं किन्तु मैं इस नगर को व्यर्थ के रक्तपात से बचाना चाहता हूँ इसलिये मैंने उन्हें नगर के बाहर रोक दिया है। ऋषिवर रुक्मिणी को परामर्श देते हैं कि तुम गौरी पूजा के लिये मन्दिर में जाओ, वहीं से श्रीकृष्ण तुम्हें अपने रथ पर बैठाकर द्वारिका ले जायेंगे। रुक्मिणी के चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। गुरु सदानन्द उनसे कहते हैं कि अब तुम तनिक भी विलम्ब न करो। इसके पहले रुक्मि को बलराम के सेना सहित पहुँचने की सूचना मिले, तुम गौरी मन्दिर जाने के बहाने महल से निकल जाओ। श्रीकृष्ण तुम्हें मन्दिर के द्वार पर मिल जायेंगे। बाराती राजाओं में मदिरापान का दौर चल रहा है। तभी एक गुप्तचर आकर रुक्मि को सूचना देता है कि जिस बात का डर था, वही हुआ। यादवों की सेना कुण्डिनीपुर की ओर आ रही है। कृष्ण और बलराम के रथ भी आगे चल रहे हैं। रुक्मि राजमहल के चारों ओर सैनिक तैनात करने और राजकुमारी रुक्मिणी के महल के बाहर कड़ा पहरा बैठाने का आदेश देता है। इसके बाद वह एक दासी को महारानी के पास यह सन्देश लेकर भेजता है कि रुक्मिणी को तुरन्त विवाह मण्डप में लाया जाये। किन्तु उधर रुक्मिणी गौरी मन्दिर पहुँच चुकी होती हैं। रुक्मि श्रीकृष्ण और बलराम के सेना समेत कुण्डिनीपुर पहुँचने की जानकारी शिशुपाल को देता है और कहता है कि तुम महाराज शल्य की सेना के साथ नगर सीमा पर कूच करो। हम यादवों को रास्ते में ही रोक लेंगे। शिशुपाल जरासंध और शल्य के साथ श्रीकृष्ण पर आक्रमण के लिये जाता है। तभी दासी आकर रुक्मि को सूचना देती है कि राजकुमारी रुक्मिणी अपने महल में नहीं हैं। वह राजकुल की परम्परानुसार मण्डप में जाने से पहले गौरी पूजा के लिये भवानी मन्दिर गयीं हैं। रुक्मिणी के यूँ नगर के बाहर जाने पर रुक्मि क्रोधित होता है। रुक्मिणी मन्दिर में भवानी माँ से विनती करती हैं कि यदि आज श्रीकृष्ण मेरी मांग सिन्दूर से नहीं भरते हैं तो माता आज मुझे मृत्यु वरण का वरदान दें और मेरी लाज रखें। रुक्मि अपनी माँ पर भी जमकर बरसता है तो वह कहती हैं कि रुक्मिणी अकेले नहीं गयी है। कई दासियाँ और अंगरक्षक भी उसके साथ हैं। रुक्मि कहता है कि मुठ्ठी भर अंगरक्षकों के भरोसे वह अपनी बहन की सुरक्षा नहीं छोड़ सकता। शिशुपाल और शल्य नगर सीमा की ओर प्रस्थान करने वाले होते हैं तभी रुक्मि वहाँ आकर कहता है कि अब पहले भवानी मन्दिर जाना होगा क्योंकि रुक्मिणी गौरी पूजा के लिये अकेली मन्दिर चली गयी है। शिशुपाल पूछता है कि क्या इसमें कोई चाल हो सकती है। रुक्मि कहता है कि बेहतर होगा कि इन सब पर बात करने की बजाय तुरन्त प्रस्थान किया जाय। उधर बलराम और श्रीकृष्ण कुण्डिनीपुर की सीमा पर पहुँचते हैं तो उन्हें सामने से शत्रुसेना आते दिखती है। बलराम श्रीकृष्ण से मन्दिर जाकर रुक्मिणी को लाने और सीधे द्वारिका की ओर निकल जाने को कहते हैं। वह श्रीकृष्ण को आश्वस्त करते हैं कि वह जरासंध, शिशुपाल, शल्य, रुक्मि और उनकी सेनाओं को अकेले सम्भाल लेंगे। दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध प्रारम्भ होता है। उधर रुक्मिणी की पूजा समाप्त हो चुकी है किन्तु श्रीकृष्ण अभी तक मन्दिर नहीं पहुँचे हैं। इससे राजकुमारी अधीर होती हैं तभी उन्हें सामने से कृष्ण का रथ आते दिख जाता है। श्रीकृष्ण अपना हाथ बढ़ाकर रुक्मिणी का हाथ थामते हैं और उन्हें अपने रथ पर चढ़ा लेते हैं। वे दोनों मन्दिर के बाहर से ही माता भवानी को नमन करके आशीर्वाद माँगते हैं। इसके बाद उनका सारथी दारुक रथ को तेजी से रुक्मिणी के अंगरक्षकों को चकमा देकर निकाल ले जाता है। उधर रणभूमि मे श्रीकृष्ण न देखकर रुक्मि को कुछ शंका होती हैै। शिशुपाल उसकी शंका का निवारण करता हुआ कहता है कि कृष्ण अपनी सेना के मध्य में सुरक्षित स्थान देखकर छिपा बैठा होगा। इसपर रुक्मि दम्भपूर्वक कहता है कि आज कृष्ण को इन्द्र भी नहीं बचा सकते। मेरी तलवार आज उसका रक्तपान करके ही वापस म्यान में आयेगी। तभी सेनापति आकर रुक्मि को सूचित करता है कि श्रीकृष्ण राजकुमारी रुक्मिणी का हरण करके उन्हें पश्चिम दिशा की ओर ले गये हैं। रूक्मि शपथ लेता है कि वह जब तक कृष्ण को मारकर अपनी बहन को वापस नहीं ले आता, वह कुण्डिनपुर में अपना मुख नहीं दिखायेगा। इसके बाद वह अपना रथ श्रीकृष्ण के पीछे ले जाता है।
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राजकुमारी रुक्मिणी की रक्षा के लिये श्रीकृष्ण का रथ तेजी से कुण्डिनीपुर की ओर बढ़ रहा था। उधर रुक्मिणी के लिये एक पल पल भारी पड़ रहा था। न तो अभी तक श्रीकृष्ण पहुचे थे और न गुरुदेव की तरफ से कोई सूचना थी। उनकी सखी मैनावती महल की ड्योढ़ी पर दृष्टि गड़ाये उनकी प्रतीक्षा कर रही थी। किसी को आता न देखकर रुक्मिणी का हृदय बैठा जा रहा था। दूसरी ओर शिशुपाल की बारात राजमहल पहुँच चुकी थी। शिशुपाल राजकुमार रुक्मि से कुछ अपशकुन का अहसास होने की बात कहता है। तभी गुरु सदानन्द राजमहल में प्रवेश करते हैं। उन्हें देखकर राजकुमारी रुक्मिणी प्रफुल्लित हो उठती हैं। मैनावती राजगुरु के कक्ष मे पधारने की सूचना देती है। रुक्मिणी अन्य दासियों को कक्ष से बाहर भेज देती हैं। गुरु सदानन्द रुक्मिणी को बताते हैं कि श्रीकृष्ण ने तुम्हारा प्रणय निवेदन स्वीकार कर लिया है और तुम्हें लेने स्वयं आये हैं। रुक्मिणी पूछती हैं कि फिर वे कहाँ हैं। गुरु सदानन्द कहते हैं कि श्रीकृष्ण बारात में आये सभी राजाओं को पराजित कर तुमसे विवाह करने की क्षमता रखते हैं किन्तु मैं इस नगर को व्यर्थ के रक्तपात से बचाना चाहता हूँ इसलिये मैंने उन्हें नगर के बाहर रोक दिया है। ऋषिवर रुक्मिणी को परामर्श देते हैं कि तुम गौरी पूजा के लिये मन्दिर में जाओ, वहीं से श्रीकृष्ण तुम्हें अपने रथ पर बैठाकर द्वारिका ले जायेंगे। रुक्मिणी के चेहरे पर प्रसन्नता झलकती है। गुरु सदानन्द उनसे कहते हैं कि अब तुम तनिक भी विलम्ब न करो। इसके पहले रुक्मि को बलराम के सेना सहित पहुँचने की सूचना मिले, तुम गौरी मन्दिर जाने के बहाने महल से निकल जाओ। श्रीकृष्ण तुम्हें मन्दिर के द्वार पर मिल जायेंगे। बाराती राजाओं में मदिरापान का दौर चल रहा है। तभी एक गुप्तचर आकर रुक्मि को सूचना देता है कि जिस बात का डर था, वही हुआ। यादवों की सेना कुण्डिनीपुर की ओर आ रही है। कृष्ण और बलराम के रथ भी आगे चल रहे हैं। रुक्मि राजमहल के चारों ओर सैनिक तैनात करने और राजकुमारी रुक्मिणी के महल के बाहर कड़ा पहरा बैठाने का आदेश देता है। इसके बाद वह एक दासी को महारानी के पास यह सन्देश लेकर भेजता है कि रुक्मिणी को तुरन्त विवाह मण्डप में लाया जाये। किन्तु उधर रुक्मिणी गौरी मन्दिर पहुँच चुकी होती हैं। रुक्मि श्रीकृष्ण और बलराम के सेना समेत कुण्डिनीपुर पहुँचने की जानकारी शिशुपाल को देता है और कहता है कि तुम महाराज शल्य की सेना के साथ नगर सीमा पर कूच करो। हम यादवों को रास्ते में ही रोक लेंगे। शिशुपाल जरासंध और शल्य के साथ श्रीकृष्ण पर आक्रमण के लिये जाता है। तभी दासी आकर रुक्मि को सूचना देती है कि राजकुमारी रुक्मिणी अपने महल में नहीं हैं। वह राजकुल की परम्परानुसार मण्डप में जाने से पहले गौरी पूजा के लिये भवानी मन्दिर गयीं हैं। रुक्मिणी के यूँ नगर के बाहर जाने पर रुक्मि क्रोधित होता है। रुक्मिणी मन्दिर में भवानी माँ से विनती करती हैं कि यदि आज श्रीकृष्ण मेरी मांग सिन्दूर से नहीं भरते हैं तो माता आज मुझे मृत्यु वरण का वरदान दें और मेरी लाज रखें। रुक्मि अपनी माँ पर भी जमकर बरसता है तो वह कहती हैं कि रुक्मिणी अकेले नहीं गयी है। कई दासियाँ और अंगरक्षक भी उसके साथ हैं। रुक्मि कहता है कि मुठ्ठी भर अंगरक्षकों के भरोसे वह अपनी बहन की सुरक्षा नहीं छोड़ सकता। शिशुपाल और शल्य नगर सीमा की ओर प्रस्थान करने वाले होते हैं तभी रुक्मि वहाँ आकर कहता है कि अब पहले भवानी मन्दिर जाना होगा क्योंकि रुक्मिणी गौरी पूजा के लिये अकेली मन्दिर चली गयी है। शिशुपाल पूछता है कि क्या इसमें कोई चाल हो सकती है। रुक्मि कहता है कि बेहतर होगा कि इन सब पर बात करने की बजाय तुरन्त प्रस्थान किया जाय। उधर बलराम और श्रीकृष्ण कुण्डिनीपुर की सीमा पर पहुँचते हैं तो उन्हें सामने से शत्रुसेना आते दिखती है। बलराम श्रीकृष्ण से मन्दिर जाकर रुक्मिणी को लाने और सीधे द्वारिका की ओर निकल जाने को कहते हैं। वह श्रीकृष्ण को आश्वस्त करते हैं कि वह जरासंध, शिशुपाल, शल्य, रुक्मि और उनकी सेनाओं को अकेले सम्भाल लेंगे। दोनों सेनाओं के मध्य युद्ध प्रारम्भ होता है। उधर रुक्मिणी की पूजा समाप्त हो चुकी है किन्तु श्रीकृष्ण अभी तक मन्दिर नहीं पहुँचे हैं। इससे राजकुमारी अधीर होती हैं तभी उन्हें सामने से कृष्ण का रथ आते दिख जाता है। श्रीकृष्ण अपना हाथ बढ़ाकर रुक्मिणी का हाथ थामते हैं और उन्हें अपने रथ पर चढ़ा लेते हैं। वे दोनों मन्दिर के बाहर से ही माता भवानी को नमन करके आशीर्वाद माँगते हैं। इसके बाद उनका सारथी दारुक रथ को तेजी से रुक्मिणी के अंगरक्षकों को चकमा देकर निकाल ले जाता है। उधर रणभूमि मे श्रीकृष्ण न देखकर रुक्मि को कुछ शंका होती हैै। शिशुपाल उसकी शंका का निवारण करता हुआ कहता है कि कृष्ण अपनी सेना के मध्य में सुरक्षित स्थान देखकर छिपा बैठा होगा। इसपर रुक्मि दम्भपूर्वक कहता है कि आज कृष्ण को इन्द्र भी नहीं बचा सकते। मेरी तलवार आज उसका रक्तपान करके ही वापस म्यान में आयेगी। तभी सेनापति आकर रुक्मि को सूचित करता है कि श्रीकृष्ण राजकुमारी रुक्मिणी का हरण करके उन्हें पश्चिम दिशा की ओर ले गये हैं। रूक्मि शपथ लेता है कि वह जब तक कृष्ण को मारकर अपनी बहन को वापस नहीं ले आता, वह कुण्डिनपुर में अपना मुख नहीं दिखायेगा। इसके बाद वह अपना रथ श्रीकृष्ण के पीछे ले जाता है।
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