EP 292: AUTO SHANKAR की कहानी जिसे फ़िल्मों ने बनाया SERIAL KILLER सुनें पूरी कहानी शम्स की ज़ुबानी
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फांसी कैसे दी जाती है?
फांसी देते वक़्त क्या होता है?
फांसी का फंदा कैसे तैयार होता है?
फांसी देते वक्त फांसी घर में सब इशारों में क्यों बात करते हैं?
हर सावल का जवाब देगा....
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ये तीन शब्द काफी हैं ऑटो शंकर को परिभाषित करने के लिए. ऑटो शंकर. जिसने मात्र छह महीनों में मद्रास की सड़कों को नरक में तब्दील कर दिया. मद्रास में समंदर के किनारे बसे एक शांत गांव का खूंखार बाशिंदा एक लोकल गुंडे से सीरियल किलर में तब्दील हो गया.
गौरी शंकर. 1955 में वेल्लोर, तमिलनाडु में पैदा हुआ. उस वक़्त जब वहां से लोग काम धंधे के चक्कर में मद्रास चले जाते थे. मद्रास सपनों का शहर हुआ करता था और दक्षिणी यूथ और मिडल क्लास को काफी सूट भी करता था. शंकर मद्रास पहुंच गया. क्यूंकि उसे ऐसा लगता था कि मद्रास उसके लिए ही बना है. फिल्मों का शौकीन, पेंटिंग और डांस में रुचि रखने वाला शंकर मद्रास में खुद को देख रहा था. कॉलिवुड शंकर का पहला प्यार था और मद्रास कॉलिवुड का सेंटर था. पेरियार नगर में पेंटर का काम लेकर वो वहीं बस गया.
उस वक़्त तक मद्रास इतना नहीं बसा था जितना आज हम उसे देखते हैं. उसका आधा भी नहीं. शहर बहुत ही छोटा था और आज हम जिस जगह को तिरुवनमयूर के नाम से जानते हैं, वो उस ज़माने में एक सूना पड़ा मछली पकड़ने का अड्डा था. वहां अगर कोई दिखता था तो बस मछुआरे. आज वहां गाड़ियों का शोर और उगे हुए घर हैं. उस वक़्त वहां सब कुछ वीराना था. ये सब कुछ काफी फ़िल्मी सा लगता है. एकदम ऑटो शंकर के नाम और उसकी कहानी जैसा.
तिरुवनमयूर से लेकर महाबलीपुरम तक का पूरा तट मछुआरों की बसती ही हुआ करती थी. चारों ओर या तो मछुआरे दिखते थे या ताड़ और नारियल के पेड़. एकदम किसी आदर्श पेंटिंग जैसा. सड़कें अभी भी यहां तक नहीं पहुंची थी. सब कुछ इतना शांत, इतना कुशलता से चल रहा था कि पुलिसवाले इक्के दुक्के ही दिखाई देते थे. इंसानी फितरत ही यही है कि कुछ भी अच्छा होने लगे तो हम बुरे की कल्पना करना छोड़ देते हैं. ऑटो शंकर का जन्म इसी फितरत को काटने के लिए हुआ था.
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About the Channel:
आज वक़्त के जिस दौर में हम जी रहे हैं उसमें आने वाला पल किस शक्ल में हमारे सामने आएगा कोई नहीं जानता। हां....अगर हम कुछ कर सकते हैं तो सिर्फ़ इतना कि आने वाले पल के क़दमों की आहट को ज़रूर भांप सकते हैं। मगर आने वाले वक़्त की नीयत क्या है ये तभी जाना जा सकता है जब हम अपने आंख और कान खुले रखें। और इसमें CRIME TAK आपकी मदद करेगा। क्राइम की दुनिया की हर छोटी-बड़ी ख़बरों से आपको आगाह करके। ताकि आप सुरक्षित रहें।
Nowadays we are living in such a age, where one knows that what will happen in next moment? In such scenario what we can do is to be stay aware each moment. We can prepare for future only if we keep our eyes and ears open. CRIME TAK is here to help and assist you in this regard, by making you aware of all crime related incidents/stories, so that you can be safe.
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ये तीन शब्द काफी हैं ऑटो शंकर को परिभाषित करने के लिए. ऑटो शंकर. जिसने मात्र छह महीनों में मद्रास की सड़कों को नरक में तब्दील कर दिया. मद्रास में समंदर के किनारे बसे एक शांत गांव का खूंखार बाशिंदा एक लोकल गुंडे से सीरियल किलर में तब्दील हो गया.
गौरी शंकर. 1955 में वेल्लोर, तमिलनाडु में पैदा हुआ. उस वक़्त जब वहां से लोग काम धंधे के चक्कर में मद्रास चले जाते थे. मद्रास सपनों का शहर हुआ करता था और दक्षिणी यूथ और मिडल क्लास को काफी सूट भी करता था. शंकर मद्रास पहुंच गया. क्यूंकि उसे ऐसा लगता था कि मद्रास उसके लिए ही बना है. फिल्मों का शौकीन, पेंटिंग और डांस में रुचि रखने वाला शंकर मद्रास में खुद को देख रहा था. कॉलिवुड शंकर का पहला प्यार था और मद्रास कॉलिवुड का सेंटर था. पेरियार नगर में पेंटर का काम लेकर वो वहीं बस गया.
उस वक़्त तक मद्रास इतना नहीं बसा था जितना आज हम उसे देखते हैं. उसका आधा भी नहीं. शहर बहुत ही छोटा था और आज हम जिस जगह को तिरुवनमयूर के नाम से जानते हैं, वो उस ज़माने में एक सूना पड़ा मछली पकड़ने का अड्डा था. वहां अगर कोई दिखता था तो बस मछुआरे. आज वहां गाड़ियों का शोर और उगे हुए घर हैं. उस वक़्त वहां सब कुछ वीराना था. ये सब कुछ काफी फ़िल्मी सा लगता है. एकदम ऑटो शंकर के नाम और उसकी कहानी जैसा.
तिरुवनमयूर से लेकर महाबलीपुरम तक का पूरा तट मछुआरों की बसती ही हुआ करती थी. चारों ओर या तो मछुआरे दिखते थे या ताड़ और नारियल के पेड़. एकदम किसी आदर्श पेंटिंग जैसा. सड़कें अभी भी यहां तक नहीं पहुंची थी. सब कुछ इतना शांत, इतना कुशलता से चल रहा था कि पुलिसवाले इक्के दुक्के ही दिखाई देते थे. इंसानी फितरत ही यही है कि कुछ भी अच्छा होने लगे तो हम बुरे की कल्पना करना छोड़ देते हैं. ऑटो शंकर का जन्म इसी फितरत को काटने के लिए हुआ था.
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