nb-2022-02-12-आयौ फागुन मास सखी उमग्यौ है मन मेरौ || (ब्रज के होरी रसिया गायन )
आयौ फागुन मास सखी उमग्यौ है मन मेरौ ।
सगरी सखी मिल चलौ नन्द घर कृष्ण-कृष्ण कह टेरौ ।
घर न मिलै तौ सघन बन ढूड़ौ गैल घाट सब घेरौ
पाहै राखौ कर चेरौ ।
पहलें याकौ मंत्र विचारौ फिर कारे कूं छेरौ ।
ना जाने कहूँ जहर चढि आवै छूटेगौ गांम बसेरौ
सखी कहा बिगरैगौ तेरौ ।
या है छोटौ मत जानौ सखी री यामें गुण जो घनेरौ ।
गोकुल कौ यह कान्हा कहावै, ठाकुर सब ब्रज केरौ ।
कहा मुँह खाऔगी थपेरौ ।
खेलैं नन्द दुलारो हुरियाँ री ।।
रंग महल में खेल मच्यो जहाँ, राधा लहुरि बहुरियाँ री ।
रंग गुलाल उड़ेलनि डारें, ललिता आदि छुहरियाँ री ।
वृन्दावन हित निरखि प्रशंसित, बाला रूप जुहरियाँ री ।
पल्ले पर गई रंग में रंग दई होरी खेलत रसिया ।।
लहंगा सबरो रंग में में कर दियो रंग दइ अंगिया ।
रंग बिरंगी कर के छोड़ी रंग दइ फरिया ।
डफ लै होरी गावन लाग्यो दै दै के हँसिया ।
हांसी सुन रिस लागै बदलो लूंगी मन बसिया ।
रसिया की धोती पकड़ी मैंने मूठन ते कसिया ।
धोती फाड़ बनायो कोड़ा पीटयो मन भरिया ।
पिट-पिट के हू फाग सुनावै दाऊ को भैया ।
ऐसो भयो होरंगो ब्रज में गावै दुनिया ।
होरी में काहे भागे अरे लगवाय लै कजरा नन्द जू के ।।
काजर तोय लगाऊँ ऐसो, तिलक लगावै तू सज के जैसो ।
छैला अपनो साज आज सजवाय लै ढोटा नन्द जू के ।।
बहुत दिना तक मटकी फोरी, बहुतै करी तैने माखन चोरी ।
अपनी सबरी करनी को फल पाय लै लाला नन्द जू के ।।
भर-भर डारूँ रंग कौ गड़ुवा, तोय करूँ होरी को भड़ुवा ।
बन्यौ ठन्यौ डोलै रसिया रस पाय लै छोरा नन्द जू के ।।
मैं तो होरी खेलन जाऊँगी, नांय मानै मेरो मनुवा ||
होरी को अलबेलो छैला
मैंतो वाते नेह लगाऊंगी, नाय मानै ....|
भर पिचकारी रंग की मारूँ
अबीर गुलाल उड़ाऊँगी, नाय मानै ....|
ऐसो रंग डारूं कारे पै
गोरो आज बनाऊँगी, नाय मानै ....|
दै गुलचा सूधो कर डारूं
सबरी टेड़ निकारूंगी, नाय मानै ....|
चीर हरन को बदलो लूंगी
पीताम्बर छुड़ाऊँगी, नाय मानै ....|
हरि को नंगो कर होरी में
नैनन नैन लड़ाऊँगी, नाय मानै ....||
चलो खेलौ मोहन संग होरी ।।
केसर रंग भरी पिचकारी, अबीर गुलालन की झोरी ।
ललिता सुन बिन कहे तू मेरे, जइयो मत उनकी ओरी ।
हीरा सखी हित आज श्याम कूँ, पकर नचावो नव ओरी ।
Morning Satsang Time-08:30 to 09:30 am
Night Sankeertan Time-06:30 to 07:30 pm
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सगरी सखी मिल चलौ नन्द घर कृष्ण-कृष्ण कह टेरौ ।
घर न मिलै तौ सघन बन ढूड़ौ गैल घाट सब घेरौ
पाहै राखौ कर चेरौ ।
पहलें याकौ मंत्र विचारौ फिर कारे कूं छेरौ ।
ना जाने कहूँ जहर चढि आवै छूटेगौ गांम बसेरौ
सखी कहा बिगरैगौ तेरौ ।
या है छोटौ मत जानौ सखी री यामें गुण जो घनेरौ ।
गोकुल कौ यह कान्हा कहावै, ठाकुर सब ब्रज केरौ ।
कहा मुँह खाऔगी थपेरौ ।
खेलैं नन्द दुलारो हुरियाँ री ।।
रंग महल में खेल मच्यो जहाँ, राधा लहुरि बहुरियाँ री ।
रंग गुलाल उड़ेलनि डारें, ललिता आदि छुहरियाँ री ।
वृन्दावन हित निरखि प्रशंसित, बाला रूप जुहरियाँ री ।
पल्ले पर गई रंग में रंग दई होरी खेलत रसिया ।।
लहंगा सबरो रंग में में कर दियो रंग दइ अंगिया ।
रंग बिरंगी कर के छोड़ी रंग दइ फरिया ।
डफ लै होरी गावन लाग्यो दै दै के हँसिया ।
हांसी सुन रिस लागै बदलो लूंगी मन बसिया ।
रसिया की धोती पकड़ी मैंने मूठन ते कसिया ।
धोती फाड़ बनायो कोड़ा पीटयो मन भरिया ।
पिट-पिट के हू फाग सुनावै दाऊ को भैया ।
ऐसो भयो होरंगो ब्रज में गावै दुनिया ।
होरी में काहे भागे अरे लगवाय लै कजरा नन्द जू के ।।
काजर तोय लगाऊँ ऐसो, तिलक लगावै तू सज के जैसो ।
छैला अपनो साज आज सजवाय लै ढोटा नन्द जू के ।।
बहुत दिना तक मटकी फोरी, बहुतै करी तैने माखन चोरी ।
अपनी सबरी करनी को फल पाय लै लाला नन्द जू के ।।
भर-भर डारूँ रंग कौ गड़ुवा, तोय करूँ होरी को भड़ुवा ।
बन्यौ ठन्यौ डोलै रसिया रस पाय लै छोरा नन्द जू के ।।
मैं तो होरी खेलन जाऊँगी, नांय मानै मेरो मनुवा ||
होरी को अलबेलो छैला
मैंतो वाते नेह लगाऊंगी, नाय मानै ....|
भर पिचकारी रंग की मारूँ
अबीर गुलाल उड़ाऊँगी, नाय मानै ....|
ऐसो रंग डारूं कारे पै
गोरो आज बनाऊँगी, नाय मानै ....|
दै गुलचा सूधो कर डारूं
सबरी टेड़ निकारूंगी, नाय मानै ....|
चीर हरन को बदलो लूंगी
पीताम्बर छुड़ाऊँगी, नाय मानै ....|
हरि को नंगो कर होरी में
नैनन नैन लड़ाऊँगी, नाय मानै ....||
चलो खेलौ मोहन संग होरी ।।
केसर रंग भरी पिचकारी, अबीर गुलालन की झोरी ।
ललिता सुन बिन कहे तू मेरे, जइयो मत उनकी ओरी ।
हीरा सखी हित आज श्याम कूँ, पकर नचावो नव ओरी ।
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