महासंग्राम महाभारत | भाग - 3 | Mahasangram Mahabharata | Part - 3 | Movie | Tilak
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जब पितामह भीष्म पांडवों के वध करने की प्रतिज्ञा ले लेते हैं तो इस से पांडवों में चिंता बढ़ जाती है। द्रौपदी भीष्म की प्रतिज्ञा सुन श्री कृष्ण के पास जाती है और उनसे भीष्म के प्रतिज्ञा के बारे में बात करती है और उनसे पांडवों को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर करती है। श्री कृष्ण द्रौपदी को सांत्वना देते हैं की पांडवों को कुछ नहीं होगा। दुर्योधन भीष्म की प्रतिज्ञा के बारे में जब अपने शिविर में जाकर शकुनि दुशासन और कर्ण को बताता है तो तो कर्ण को अर्जुन का वध ना कर अपने पर अफ़सोस होता है लेकिन फिर भी वह दुर्योधन को भीष्म की प्रतिज्ञा पर बधाई देता है।
श्री कृष्ण पांडवों के पास जाते हैं और उनकी भीष्म की प्रतिज्ञा की चिंता को दूर करने के लिए उन्हें समझाते हैं। भीष्म से पांडवों के वध करने से बचाने के लिए श्री कृष्ण द्रौपदी को में रूप बदल कर भीष्म के शिविर में भेजते हैं और भीष्म से अपने पतियों के प्रणों की रक्षा के लिए सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद देने के लिए कहती है। भीष्म द्रौपदी को नहीं पहचान पाते क्योंकि द्रौपदी ने घूँघट किया हुआ था। भीष्म जब उसे आशीर्वाद दे देते हैं तो भीष्म को द्रौपदी अपना चेहरा देखा देती है जिसे देख भीष्म अपनी प्रतिज्ञा और द्रौपदी के आशीर्वाद के कारण धर्म संकट में आ जाते हैं। भीष्म समझ जाते हैं की यह सब श्री कृष्ण के कहने से हुआ है वहाँ श्री कृष्ण और पांडव पहुँच जाते हैं। श्री कृष्ण के कहने से भीष्म, पांडवों की विजय और अपनी प्रतिज्ञा और द्रौपदी को दिए वचन को निभाने का रास्ता बताते हैं तो उससे पहले पांडवों से अपने कहे अनुसार कार्य करने के लिए प्रतिज्ञा लेने को कहता है।
भीष्म पांडवों को कहते हैं की मेरे किसी भी पांडव का वध करने से पहले मेरा वध अर्जुन करेगा और उसमें तुम सबको अर्जुन की मदद करनी होगी। अर्जुन को भीष्म अपने वध करने के लिए समझाते हैं। दुर्योधन कर्ण और शकुनि दोनों अगले दिन के युद्ध की रणनीति तैयार करते हैं। अगले दिन युद्ध शुरू होता है और भीष्म पांडवों की सेना पर टूट पड़ते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को भीष्म से युद्ध करने के लिए कहते हैं। अर्जुन भीष्म पितामह के पास युद्ध करने के लिए चल पड़ता है। दुर्योधन अर्जुन को भीष्म से युद्ध करने के लिए शकुनि और दुशासन को भेजता है ताकि वह भीष्म तक ना पहुँचे और इतने भीष्म अर्जुन के अलावा चारों पांडवों को पहले मार दे। दुर्योधन गुरु कृपाचार्य और द्रोणाचार्य को भीष्म की रक्षा और उनका साथ देने को भेजता है।
अर्जुन उनकी चल को समझ जाता है और श्री कृष्ण से कहता है की आप मुझे इनसे दूर लेकर भीष्म के पास ले जाने को कहता है तो शकुनि और दुशासन अर्जुन को वहीं रोकने के लिए युद्ध के लिए ललकारते हैं। अर्जुन उन की बातों में आकर वहीं उनसे युद्ध करने के लिए रुक जाता है। अर्जुन उनसे युद्ध शुरू कर देता है और अर्जुन को श्री कृष्ण समझते हैं की इनसे युद्ध करने में समय व्यर्थ ना करे और भीष्म की ओर चल पड़े लेकिन अर्जुन शकुनि और दुशासन से युद्ध करके उन पर हावी हो जाता है। दुशासन अर्जुन के बाण से घायल हो जाता है। अर्जन भीम की प्रतिज्ञा के कारण दुशासन को जीवन दान देकर भीष्म को और चल पड़ता है। अर्जुन कौरवों की सेना को नष्ट करते हुए आगे बढ़ता है।
द्रोणाचार्य के सामने भीम आ जाता है, दुर्योधन भीष्म को भीम का वध करने के लिए कहता है तो भीम दुर्योधन पर हमला कर देता है। भीष्म भीम को मारने के लिए बाण छोड़ते हैं तो अर्जुन वहाँ आकर उनके बाण को अपने बाण से काट देता है। अर्जुन भीष्म को युद्ध के लिए ललकारता है और जैसे ही भीष्म अर्जुन पर बाण चलने वाले होते हैं तो तभी शिखंडीनी सामने आ जाती है तो भीष्म एक स्त्री पर वार करने से मना कर देते हैं। शिखंडी भीष्म पर वार करता है। दुर्योधन शिखंडी पर अपनी गदा फेंकता है तो भीम उसे अपनी गदा से नष्ट कर देता है।
दुर्योधन अपनी सेना के सभी योद्धाओं को शिखंडी को मारने के लिए आदेश देते है और युधिष्ठिर उसकी रक्षा करने के लिए अपनी सेना को कहता है। श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं की भीष्म पर वार करो। श्री कृष्ण अर्जुन को कहते है की तुम्हें शिखंडी को ढाल बनाकर उन पर बाण चालान होगा। अर्जुन श्री कृष्ण की आज्ञा से भीष्म पर बाण चला देता है। अर्जुन के बाण भीष्म को भेद देते हैं और भीष्म को बाणों की शैया पर लेटा देता है। भीष्म को घायल देख युद्ध रुक जाता है और सभी भीष्म के सम्मान में अपने मुकुट उतार देते हैं।
धृतराष्ट्र को भीष्म के घायल होने का धक्का लगता है। पांडव और कौरव भीष्म की ओर जाते हैं। भीष्म श्री कृष्ण से कहते हैं की इस बाणों की शैया में एक कमी हे मेरे सर के नीचे तकिया नहीं है जिसके कारण मेरे सर को सहारा नहीं मिल रहा। भीष्म अर्जुन से कहते हैं की जैसे तुमने शैया बनायी है वैसे हे मेरे लिए तकिया भी बना दो। अर्जुन भीष्म के सर को सहारा देने के लिए बाणों से उनके लिए सहारा बनता है। पांडवों और कौरवों में शोक की लहर होती है। दुर्योधन भीष्म को कहता है की मैंने आपके लिए वैद्य को बुलाया है जो आपके इन बाणों को भी निकल देगा और आपको दवा भी लगा देगा।
भीष्म दुर्योधन को मना कर देते है की मेरे शरीर से ये बाण मत निकलवाओ और कहते हैं की मेरा अंतिम संस्कार भी इसी शैया के साथ ही करना। भीष्म दुर्योधन से कहते हैं की मुझे प्यास लगी है। दुर्योधन पीने कि लिए शीतल जल लाने को कहता है तो भीष्म मना कर देते हैं और अर्जुन से कहते हैं की मैं अपने आख़िरी समय में गंगा मैया के दर्शन पाना चाहता हूँ और उसी से जल से प्यास भजन चाहता हूँ। अर्जुन अपने बाण को धरती पर मार कर गंगा को प्रकट कर देते हैं और भीष्म अपनी माँ गंगा के दर्शन पा लेते हैं। गंगा माता भीष्म को अपना जल पिलाती हैं।
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जब पितामह भीष्म पांडवों के वध करने की प्रतिज्ञा ले लेते हैं तो इस से पांडवों में चिंता बढ़ जाती है। द्रौपदी भीष्म की प्रतिज्ञा सुन श्री कृष्ण के पास जाती है और उनसे भीष्म के प्रतिज्ञा के बारे में बात करती है और उनसे पांडवों को लेकर अपनी चिंता ज़ाहिर करती है। श्री कृष्ण द्रौपदी को सांत्वना देते हैं की पांडवों को कुछ नहीं होगा। दुर्योधन भीष्म की प्रतिज्ञा के बारे में जब अपने शिविर में जाकर शकुनि दुशासन और कर्ण को बताता है तो तो कर्ण को अर्जुन का वध ना कर अपने पर अफ़सोस होता है लेकिन फिर भी वह दुर्योधन को भीष्म की प्रतिज्ञा पर बधाई देता है।
श्री कृष्ण पांडवों के पास जाते हैं और उनकी भीष्म की प्रतिज्ञा की चिंता को दूर करने के लिए उन्हें समझाते हैं। भीष्म से पांडवों के वध करने से बचाने के लिए श्री कृष्ण द्रौपदी को में रूप बदल कर भीष्म के शिविर में भेजते हैं और भीष्म से अपने पतियों के प्रणों की रक्षा के लिए सदा सुहागन रहने का आशीर्वाद देने के लिए कहती है। भीष्म द्रौपदी को नहीं पहचान पाते क्योंकि द्रौपदी ने घूँघट किया हुआ था। भीष्म जब उसे आशीर्वाद दे देते हैं तो भीष्म को द्रौपदी अपना चेहरा देखा देती है जिसे देख भीष्म अपनी प्रतिज्ञा और द्रौपदी के आशीर्वाद के कारण धर्म संकट में आ जाते हैं। भीष्म समझ जाते हैं की यह सब श्री कृष्ण के कहने से हुआ है वहाँ श्री कृष्ण और पांडव पहुँच जाते हैं। श्री कृष्ण के कहने से भीष्म, पांडवों की विजय और अपनी प्रतिज्ञा और द्रौपदी को दिए वचन को निभाने का रास्ता बताते हैं तो उससे पहले पांडवों से अपने कहे अनुसार कार्य करने के लिए प्रतिज्ञा लेने को कहता है।
भीष्म पांडवों को कहते हैं की मेरे किसी भी पांडव का वध करने से पहले मेरा वध अर्जुन करेगा और उसमें तुम सबको अर्जुन की मदद करनी होगी। अर्जुन को भीष्म अपने वध करने के लिए समझाते हैं। दुर्योधन कर्ण और शकुनि दोनों अगले दिन के युद्ध की रणनीति तैयार करते हैं। अगले दिन युद्ध शुरू होता है और भीष्म पांडवों की सेना पर टूट पड़ते हैं। श्री कृष्ण अर्जुन को भीष्म से युद्ध करने के लिए कहते हैं। अर्जुन भीष्म पितामह के पास युद्ध करने के लिए चल पड़ता है। दुर्योधन अर्जुन को भीष्म से युद्ध करने के लिए शकुनि और दुशासन को भेजता है ताकि वह भीष्म तक ना पहुँचे और इतने भीष्म अर्जुन के अलावा चारों पांडवों को पहले मार दे। दुर्योधन गुरु कृपाचार्य और द्रोणाचार्य को भीष्म की रक्षा और उनका साथ देने को भेजता है।
अर्जुन उनकी चल को समझ जाता है और श्री कृष्ण से कहता है की आप मुझे इनसे दूर लेकर भीष्म के पास ले जाने को कहता है तो शकुनि और दुशासन अर्जुन को वहीं रोकने के लिए युद्ध के लिए ललकारते हैं। अर्जुन उन की बातों में आकर वहीं उनसे युद्ध करने के लिए रुक जाता है। अर्जुन उनसे युद्ध शुरू कर देता है और अर्जुन को श्री कृष्ण समझते हैं की इनसे युद्ध करने में समय व्यर्थ ना करे और भीष्म की ओर चल पड़े लेकिन अर्जुन शकुनि और दुशासन से युद्ध करके उन पर हावी हो जाता है। दुशासन अर्जुन के बाण से घायल हो जाता है। अर्जन भीम की प्रतिज्ञा के कारण दुशासन को जीवन दान देकर भीष्म को और चल पड़ता है। अर्जुन कौरवों की सेना को नष्ट करते हुए आगे बढ़ता है।
द्रोणाचार्य के सामने भीम आ जाता है, दुर्योधन भीष्म को भीम का वध करने के लिए कहता है तो भीम दुर्योधन पर हमला कर देता है। भीष्म भीम को मारने के लिए बाण छोड़ते हैं तो अर्जुन वहाँ आकर उनके बाण को अपने बाण से काट देता है। अर्जुन भीष्म को युद्ध के लिए ललकारता है और जैसे ही भीष्म अर्जुन पर बाण चलने वाले होते हैं तो तभी शिखंडीनी सामने आ जाती है तो भीष्म एक स्त्री पर वार करने से मना कर देते हैं। शिखंडी भीष्म पर वार करता है। दुर्योधन शिखंडी पर अपनी गदा फेंकता है तो भीम उसे अपनी गदा से नष्ट कर देता है।
दुर्योधन अपनी सेना के सभी योद्धाओं को शिखंडी को मारने के लिए आदेश देते है और युधिष्ठिर उसकी रक्षा करने के लिए अपनी सेना को कहता है। श्री कृष्ण अर्जुन को कहते हैं की भीष्म पर वार करो। श्री कृष्ण अर्जुन को कहते है की तुम्हें शिखंडी को ढाल बनाकर उन पर बाण चालान होगा। अर्जुन श्री कृष्ण की आज्ञा से भीष्म पर बाण चला देता है। अर्जुन के बाण भीष्म को भेद देते हैं और भीष्म को बाणों की शैया पर लेटा देता है। भीष्म को घायल देख युद्ध रुक जाता है और सभी भीष्म के सम्मान में अपने मुकुट उतार देते हैं।
धृतराष्ट्र को भीष्म के घायल होने का धक्का लगता है। पांडव और कौरव भीष्म की ओर जाते हैं। भीष्म श्री कृष्ण से कहते हैं की इस बाणों की शैया में एक कमी हे मेरे सर के नीचे तकिया नहीं है जिसके कारण मेरे सर को सहारा नहीं मिल रहा। भीष्म अर्जुन से कहते हैं की जैसे तुमने शैया बनायी है वैसे हे मेरे लिए तकिया भी बना दो। अर्जुन भीष्म के सर को सहारा देने के लिए बाणों से उनके लिए सहारा बनता है। पांडवों और कौरवों में शोक की लहर होती है। दुर्योधन भीष्म को कहता है की मैंने आपके लिए वैद्य को बुलाया है जो आपके इन बाणों को भी निकल देगा और आपको दवा भी लगा देगा।
भीष्म दुर्योधन को मना कर देते है की मेरे शरीर से ये बाण मत निकलवाओ और कहते हैं की मेरा अंतिम संस्कार भी इसी शैया के साथ ही करना। भीष्म दुर्योधन से कहते हैं की मुझे प्यास लगी है। दुर्योधन पीने कि लिए शीतल जल लाने को कहता है तो भीष्म मना कर देते हैं और अर्जुन से कहते हैं की मैं अपने आख़िरी समय में गंगा मैया के दर्शन पाना चाहता हूँ और उसी से जल से प्यास भजन चाहता हूँ। अर्जुन अपने बाण को धरती पर मार कर गंगा को प्रकट कर देते हैं और भीष्म अपनी माँ गंगा के दर्शन पा लेते हैं। गंगा माता भीष्म को अपना जल पिलाती हैं।
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