VIsit Tehri | Diwali गांव वाली | मंगसीर की दिवाली | क्यारी की प्यारी कहानी | Food Of Uttrakhand
#Tehri #Diwali #Uttarakhand
VIsit Tehri | Diwali गांव वाली | मंगसीर की दिवाली | क्यारी की प्यारी कहानी | Food Of Uttrakhand
क्यारी गाँव।।टिहरी गढ़वाल
थत्यूड़ से 14 किमी की दूरी पर बसा क्यारी गाँव बसा है।गांव में 250 परिवार रहते है और पालीगाड़ पट्टी का यह सबसे बड़ा गाँव है।थत्यूड़ से ये गाँव नैनबाग रोड पर स्थित है और इस सड़क से आप यमुनोत्री धाम भी पहुँच सकते है
फसलो में यहाँ आलू,गोभी,मटर, टमाटर,बीन,शिमला मिर्च,मक्की होती है।यहाँ राजमा,कोलथ,उड़द,दालें होती है जबकि अनाज में गेंहू, मंडुवा, लाल चावल,जौ,कौणी, चीना,झिंगोरा होता है।
क्यारी गाँव का कुल देवता नागराजा है जिसका मंदिर गाँव में स्थित है।गाँव में सर्दियों के समय पांडव नृत्य का आयोजन होता है।
क्यारी सुरकंडा मंदिर एक प्राचीन सिद्ध पीठ है जिसकी दूरी गाँव से करीब 6 किमी है।यहाँ से हिमालय,यमुनोत्री घाटी,थत्यूड़ घाटी,मसूरी,विकासनगर दिखाई देते है।
दीपावली का पर्व
पहाड़ो में मंगसीर की दीवाली काफी प्रसिद्ध है।ये दीवाली पहाड़ में एक माह बाद मनाई जाती है।दरअसल टिहरी राजा के समय वीर भड़ माधोसिंह के विजय के बाद वापस लौटने पर यह पर्व मनाया जाता है।
दीपावली से ठीक एक दिन पहले सभी घरों में अस्के बनाई जाते है।ये झिंगोरा,चावल,कौणी, चीड़ा और गेंहूँ को मिलाकर आटा तैयार करते है और फिर अस्के तैयार किये जाते है।
दूसरे दिन शाम के समय 4 बजे ओलडु जलाया जाता है और इसमें घास को भीमल की लकड़ी की रस्सी से बांध दिया जाता है फिर जलाकर उसे घुमाया जाता है।इस दौरान ढोल और दमोडा में लोग नृत्य करते है।
रात को घरों में पकोड़ियां और पुरिया बनाई जाती है।सभी गाँव वाले एक दूसरे को ये बाँटते है।रात को पांडव चबूतरा में सभी पुरूष,महिलाएं और बच्चे तांदी और रासों लोक नृत्य करते है।
दीवाली के अगले दिन भद्राज पर्व मनाया जाता है।सुबह पुरिया बनाई जाती है फिर दोपहर बाद ओलडु जलाया जाता है और फिर मेला खत्म हो जाता है।
इस पर्व को मानने के पीछे गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी की वीर गाथा जुड़ी हुई है।माधो सिंह भंडारी अपनी सेना को लेकर तिब्बत में लड़ाई के लिए गए थे।जब काफी समय के बाद भी माधो सिंह को कोउ खबर नही मिली तो फिर लोगों में मायूसी छा गई और उन्होंने दीवाली भी नही मनाई।लेकिन माधो सिंह जब एक माह के बाद विजय होकर लौटे तो फिर पूरे पहाड़ में दीवाली मनाई गई।
संपर्क
जयबीर रांगड़-6398742001
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क्यारी गाँव।।टिहरी गढ़वाल
थत्यूड़ से 14 किमी की दूरी पर बसा क्यारी गाँव बसा है।गांव में 250 परिवार रहते है और पालीगाड़ पट्टी का यह सबसे बड़ा गाँव है।थत्यूड़ से ये गाँव नैनबाग रोड पर स्थित है और इस सड़क से आप यमुनोत्री धाम भी पहुँच सकते है
फसलो में यहाँ आलू,गोभी,मटर, टमाटर,बीन,शिमला मिर्च,मक्की होती है।यहाँ राजमा,कोलथ,उड़द,दालें होती है जबकि अनाज में गेंहू, मंडुवा, लाल चावल,जौ,कौणी, चीना,झिंगोरा होता है।
क्यारी गाँव का कुल देवता नागराजा है जिसका मंदिर गाँव में स्थित है।गाँव में सर्दियों के समय पांडव नृत्य का आयोजन होता है।
क्यारी सुरकंडा मंदिर एक प्राचीन सिद्ध पीठ है जिसकी दूरी गाँव से करीब 6 किमी है।यहाँ से हिमालय,यमुनोत्री घाटी,थत्यूड़ घाटी,मसूरी,विकासनगर दिखाई देते है।
दीपावली का पर्व
पहाड़ो में मंगसीर की दीवाली काफी प्रसिद्ध है।ये दीवाली पहाड़ में एक माह बाद मनाई जाती है।दरअसल टिहरी राजा के समय वीर भड़ माधोसिंह के विजय के बाद वापस लौटने पर यह पर्व मनाया जाता है।
दीपावली से ठीक एक दिन पहले सभी घरों में अस्के बनाई जाते है।ये झिंगोरा,चावल,कौणी, चीड़ा और गेंहूँ को मिलाकर आटा तैयार करते है और फिर अस्के तैयार किये जाते है।
दूसरे दिन शाम के समय 4 बजे ओलडु जलाया जाता है और इसमें घास को भीमल की लकड़ी की रस्सी से बांध दिया जाता है फिर जलाकर उसे घुमाया जाता है।इस दौरान ढोल और दमोडा में लोग नृत्य करते है।
रात को घरों में पकोड़ियां और पुरिया बनाई जाती है।सभी गाँव वाले एक दूसरे को ये बाँटते है।रात को पांडव चबूतरा में सभी पुरूष,महिलाएं और बच्चे तांदी और रासों लोक नृत्य करते है।
दीवाली के अगले दिन भद्राज पर्व मनाया जाता है।सुबह पुरिया बनाई जाती है फिर दोपहर बाद ओलडु जलाया जाता है और फिर मेला खत्म हो जाता है।
इस पर्व को मानने के पीछे गढ़वाल के वीर भड़ माधो सिंह भंडारी की वीर गाथा जुड़ी हुई है।माधो सिंह भंडारी अपनी सेना को लेकर तिब्बत में लड़ाई के लिए गए थे।जब काफी समय के बाद भी माधो सिंह को कोउ खबर नही मिली तो फिर लोगों में मायूसी छा गई और उन्होंने दीवाली भी नही मनाई।लेकिन माधो सिंह जब एक माह के बाद विजय होकर लौटे तो फिर पूरे पहाड़ में दीवाली मनाई गई।
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