कलियर वाले हजरत साबिर पाक की दरगाह से हर वो जानकारी जो आप शायद ही जानते होंगे
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यहां दुनिया भर से फरियाद लेकर आते हैं सवाली।
यहां से नहीं जाती किसी की भी झोली खाली।
आसमानी बलाओं से हों परेशान , या परेशानी हो रूहानी।
यहाँ हाजरी लगाने से दूर हो जाती है हर एक परेशानी।
जहाँ पर्चे पर लिख देने से दुख दूर होने का देखा जाता है कमाल।
कोई उन्हें साबिर पिया कहता है, तो कोई गंजे शकर के लाल।
भूपेश प्रताप सिंह ग्राउंड ज़ीरो से दिखाएंगे आपको, कलियर वाले बाबा साबिर पाक की पूरी कहानी।
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हरिद्वार से करीब 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित उत्तराखंड का छोटा सा कस्बा कलियर शरीफ किसी तआरुफ़ का मोहताज नहीं। क्योंकि यहां हज़रत अलाउद्दीन अली अहमद मखदूम यानी साबिर पिया की दरगाह है, और साबिर पाक की इस दरगाह पर देश और दुनिया का हर आम और ख़ास अपनी मन की मुरादे लेकर पहुंचता है। यहां चादर चढ़ाई जाती है, दरूद पढ़ी जाती है, और दुआ के लिए झोली फैलाई जाती है।
अकीदतमंदों का ऐसा दावा है कि अल्लाह के वली साबिर पाक की दरगाह से कभी कोई निराश नहीं लौटा। करीब 200 किलोमीटर की दूरी तय करके टाइम 24 की टीम भी बाबा की दरगाह पहुंची, टीम का यहां पहुंचने का मक़सद कोरोना काल में यहां के हालातों से आपको रूबरू कराने के साथ, घर बैठे आपको साबिर पाक की दरगाह के दर्शन कराने के साथ यह भी समझना था कि दरगाह की ओर क्या-क्या मान्यता हैं।हमें यहां पहुंचने पर सबसे पहले तो यह जानकारी हुई कि साबिर पाक कोमखदुम-उल-आलम, सबिर पिया, मखदूम, गंज ए शकर के लाल, अली अहमद, बाबा सबीर, चराग ए चिश्त जैसे कई नामों से जाना जाता है।यहां पहुंचने पर कई बड़ी चीजें सामने आईं, अकीदतमंदों की ओर से कई बड़े दावे भी किए गए।बताया गया कि दरगाह में लगे पेड़ पर अपनी परेशानी का पर्चा लिख के लगा दें, तो पर्चे पर लिखी मुश्किलों का हल हो जाता है। दरबार में पहुँचते ही बड़ी से बड़ी बिमारी और जिन्न,भूत प्रेत उनके दरबार में घुसने से पहले ही भाग जाते हैं। बताया गया कि कोरोना काल से पहले यह नजारा हर रोज़ देखा जाता था, जिसमे रोज़ हज़ारों की संख्या में जायरीन कलियर पहुँचते थे और अपनी परेशानियों से छुटकारा पाते थे। कोरोना के मद्देनजर अब दरगाह पर सामाजिक दूरी का ख़्याल रखते हुए भीड़ न जमा होने देने के निर्देश थे।
पड़ताल में सामने आया कि यहां आसमानी बलाओं का इलाज होता है, इलाज की पूरी प्रक्रिया है, जिसमें यंहा से निकलने के बाद दूसरी दरगाह किलकलि साहिब की है वँहा सलाम के बाद मरीज को दो नहरो के बीच बनी दरगाह जिसको नमक वाला पीर के नाम से भी पुकारा जाता है वँहा जाना पड़ता है यंहा प्रसाद के रूप में नमक झाड़ू और कोडिया चढ़ाई जाती है जिनके बाद अगर किसी को कोई एलर्जी या चमड़ी का रोग हो तुरन्त आराम होता है। बता दें कि साबिर पिया जिन्हें अलाउद्दीन सबिर कलियरी या ("कलियार के संत") के रूप में भी जाना जाता है, वो 13 वीं शताब्दी में एक प्रमुख दक्षिण एशियाई सूफी संत थे। जबकि साबिर पाक बाबा फरीद के उत्तराधिकारी में से के हैं।पड़ताल में ये भी सामने आया कि बाबा की दरगाह पर हर साल सालाना उर्स होता इस बार नवंबर में माह में बाबा की दरगाह पर 752 वां सालाना उर्स होना है। बाबा के यूँ तो बहुत से चमत्कारी किस्से हैं,मगर अकीदतमंदों का सबसे बड़ा दावा ये है कि बाबा की दरगाह पर कोई भी आसमानी बला इंसान का पीछा छोड़ देती है।जबकि बाबा जिसके भी लिए अल्लाह यानी ईश्वर से दुआ कर दें, उसका हर बिगड़ा काम बन जाता है।बाबा की दरगाह पर भी हिन्दू-मुस्लिम सिख-ईसाई सब हाजरी लगाने जाते हैं।
#Every_information_you_would_hardly_know_from_the_dargah_of_Hazrat_Sabir_Pak_of_Kaliyar
Видео कलियर वाले हजरत साबिर पाक की दरगाह से हर वो जानकारी जो आप शायद ही जानते होंगे канала Time24News UP
यहां दुनिया भर से फरियाद लेकर आते हैं सवाली।
यहां से नहीं जाती किसी की भी झोली खाली।
आसमानी बलाओं से हों परेशान , या परेशानी हो रूहानी।
यहाँ हाजरी लगाने से दूर हो जाती है हर एक परेशानी।
जहाँ पर्चे पर लिख देने से दुख दूर होने का देखा जाता है कमाल।
कोई उन्हें साबिर पिया कहता है, तो कोई गंजे शकर के लाल।
भूपेश प्रताप सिंह ग्राउंड ज़ीरो से दिखाएंगे आपको, कलियर वाले बाबा साबिर पाक की पूरी कहानी।
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हरिद्वार से करीब 25 किलोमीटर दूरी पर स्थित उत्तराखंड का छोटा सा कस्बा कलियर शरीफ किसी तआरुफ़ का मोहताज नहीं। क्योंकि यहां हज़रत अलाउद्दीन अली अहमद मखदूम यानी साबिर पिया की दरगाह है, और साबिर पाक की इस दरगाह पर देश और दुनिया का हर आम और ख़ास अपनी मन की मुरादे लेकर पहुंचता है। यहां चादर चढ़ाई जाती है, दरूद पढ़ी जाती है, और दुआ के लिए झोली फैलाई जाती है।
अकीदतमंदों का ऐसा दावा है कि अल्लाह के वली साबिर पाक की दरगाह से कभी कोई निराश नहीं लौटा। करीब 200 किलोमीटर की दूरी तय करके टाइम 24 की टीम भी बाबा की दरगाह पहुंची, टीम का यहां पहुंचने का मक़सद कोरोना काल में यहां के हालातों से आपको रूबरू कराने के साथ, घर बैठे आपको साबिर पाक की दरगाह के दर्शन कराने के साथ यह भी समझना था कि दरगाह की ओर क्या-क्या मान्यता हैं।हमें यहां पहुंचने पर सबसे पहले तो यह जानकारी हुई कि साबिर पाक कोमखदुम-उल-आलम, सबिर पिया, मखदूम, गंज ए शकर के लाल, अली अहमद, बाबा सबीर, चराग ए चिश्त जैसे कई नामों से जाना जाता है।यहां पहुंचने पर कई बड़ी चीजें सामने आईं, अकीदतमंदों की ओर से कई बड़े दावे भी किए गए।बताया गया कि दरगाह में लगे पेड़ पर अपनी परेशानी का पर्चा लिख के लगा दें, तो पर्चे पर लिखी मुश्किलों का हल हो जाता है। दरबार में पहुँचते ही बड़ी से बड़ी बिमारी और जिन्न,भूत प्रेत उनके दरबार में घुसने से पहले ही भाग जाते हैं। बताया गया कि कोरोना काल से पहले यह नजारा हर रोज़ देखा जाता था, जिसमे रोज़ हज़ारों की संख्या में जायरीन कलियर पहुँचते थे और अपनी परेशानियों से छुटकारा पाते थे। कोरोना के मद्देनजर अब दरगाह पर सामाजिक दूरी का ख़्याल रखते हुए भीड़ न जमा होने देने के निर्देश थे।
पड़ताल में सामने आया कि यहां आसमानी बलाओं का इलाज होता है, इलाज की पूरी प्रक्रिया है, जिसमें यंहा से निकलने के बाद दूसरी दरगाह किलकलि साहिब की है वँहा सलाम के बाद मरीज को दो नहरो के बीच बनी दरगाह जिसको नमक वाला पीर के नाम से भी पुकारा जाता है वँहा जाना पड़ता है यंहा प्रसाद के रूप में नमक झाड़ू और कोडिया चढ़ाई जाती है जिनके बाद अगर किसी को कोई एलर्जी या चमड़ी का रोग हो तुरन्त आराम होता है। बता दें कि साबिर पिया जिन्हें अलाउद्दीन सबिर कलियरी या ("कलियार के संत") के रूप में भी जाना जाता है, वो 13 वीं शताब्दी में एक प्रमुख दक्षिण एशियाई सूफी संत थे। जबकि साबिर पाक बाबा फरीद के उत्तराधिकारी में से के हैं।पड़ताल में ये भी सामने आया कि बाबा की दरगाह पर हर साल सालाना उर्स होता इस बार नवंबर में माह में बाबा की दरगाह पर 752 वां सालाना उर्स होना है। बाबा के यूँ तो बहुत से चमत्कारी किस्से हैं,मगर अकीदतमंदों का सबसे बड़ा दावा ये है कि बाबा की दरगाह पर कोई भी आसमानी बला इंसान का पीछा छोड़ देती है।जबकि बाबा जिसके भी लिए अल्लाह यानी ईश्वर से दुआ कर दें, उसका हर बिगड़ा काम बन जाता है।बाबा की दरगाह पर भी हिन्दू-मुस्लिम सिख-ईसाई सब हाजरी लगाने जाते हैं।
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