|| Gol Bawdi गोल बावड़ी || फरुखनगर गुरुग्राम रानी की बावड़ी बनी, मौत की गुफ़ा !!जानें क्यूँ.?
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#गोल_बावड़ी,
Location:-गोल बावड़ी
Jhajjar Rd, Farukh Nagar, Haryana 122506
https://g.co/kgs/gXsbb7
BAOLI GHAUS ALI SHAH
Location -: Farrukhnagar, District- Gurgaon
Situation -: Situated on Farrukhnagar-Jhajjar road, near old gate of Farrukhnagar town.
Under protection of -: Government of India
Period -: 18th Century AD
History and description -: An old baoli or step-well was built by Ghaus Ali Shah, a local chief during the reign of Mughal emperor Farrukh Siyar. Built out of stone, lime plaster and bricks, this baoli wears some resemblance with the Turkish hammam. The water tank in the centre is surrounded by a verandah with well-framed arches on all sides. There are also chambers for relaxation and recreation on the upper storeys.
इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवाने में तत्कालीन राजा फौजदार खा ने 1732 में फरुखनगर को बसाया था। यहा पर न केवल नमक, बल्कि हथियार भी तैयार किए जाते थे। कस्बे के लोगों की सुरक्षा के लिए फौजदार खा ने चारों ओर किलाबंदी की थी। समय बीतता गया राज करने वाले भी बदले, लेकिन फरखनगर की किस्मत नहीं बदली, उल्टे यहां ऐतिहासिक इमारतों की हालत जर्जर है और जहां पैसा लगाया भी गया, उसके लिए दूरदर्शिता का अभाव साफ नजर आया।
उसके पाच मुख्य द्वारा थे, जिन्हे दिल्ली दरवाजा, बसीरपुर गेट, खुरर्मपुर गेट, झगारी गेट व पातली गेट के नाम से विशालकाय दरवाजों का निर्माण भी कराया गया था। किले की चार दीवारी के अंदर शीश महल, गोल बावड़ी, कचहरी जैसी अनेक आलिशान ईमारतों का निर्माण भी कराया गया था, लेकिन देखरेख के अभाव में कई इमारतें अपना अस्तिव तक समाप्त कर चुकी हैं। करोड़ों रुपये की लागत से शीश महल व लाखों रुपये की लागत से दिल्ली दरवाजा व गोल बावड़ी का सौंर्दयकरण भी कराया गया, लेकिन घटिया सामग्री का इस्तेमाल होने से इन इमारतों के ऊपर खर्च किया गया पैसा व्यर्थ ही बरबाद हो गया।
फरुखनगर रियासत के नवाब अहमद अली खान के दिल्ली की गद्दी पर विराजमान रहे बादशाहों से मधुर संबंध थे। इस कारण मुगल काल में उनका अहम स्थान था। दुश्मनों की निगाहों के चलते सेना को हमेशा सर्तक रहना पड़ता था। 1757 में भरतपुर के राजा सूरजमल ने फरुखनगर पर आक्रमण कर इसे जीत लिया था और इस पर लगभग सात साल तक शासन किया था। बाद में मुगल दरबार के बजीरे आजम गाजीउद्दीन के दखल के बाद राजा सूरजमल ने फिर से नवाब फौजदार खा को सौंप दिया था।
आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी सरकार 1856 के स्वतंत्रता सेनानियों की स्थायी स्मृति बनाए रखने में कामयाब नही हो पाई है। 1857 में फरुखनगर के नवाब रहे अहमद अली खा की स्मृति में डाक टिकट जारी करना तो दूर उनका स्मारक भी नहीं बनवाया गया है।
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Period -: 18th Century AD
History and description -: An old baoli or step-well was built by Ghaus Ali Shah, a local chief during the reign of Mughal emperor Farrukh Siyar. Built out of stone, lime plaster and bricks, this baoli wears some resemblance with the Turkish hammam. The water tank in the centre is surrounded by a verandah with well-framed arches on all sides. There are also chambers for relaxation and recreation on the upper storeys.
इतिहास के पन्नों में अपना नाम दर्ज करवाने में तत्कालीन राजा फौजदार खा ने 1732 में फरुखनगर को बसाया था। यहा पर न केवल नमक, बल्कि हथियार भी तैयार किए जाते थे। कस्बे के लोगों की सुरक्षा के लिए फौजदार खा ने चारों ओर किलाबंदी की थी। समय बीतता गया राज करने वाले भी बदले, लेकिन फरखनगर की किस्मत नहीं बदली, उल्टे यहां ऐतिहासिक इमारतों की हालत जर्जर है और जहां पैसा लगाया भी गया, उसके लिए दूरदर्शिता का अभाव साफ नजर आया।
उसके पाच मुख्य द्वारा थे, जिन्हे दिल्ली दरवाजा, बसीरपुर गेट, खुरर्मपुर गेट, झगारी गेट व पातली गेट के नाम से विशालकाय दरवाजों का निर्माण भी कराया गया था। किले की चार दीवारी के अंदर शीश महल, गोल बावड़ी, कचहरी जैसी अनेक आलिशान ईमारतों का निर्माण भी कराया गया था, लेकिन देखरेख के अभाव में कई इमारतें अपना अस्तिव तक समाप्त कर चुकी हैं। करोड़ों रुपये की लागत से शीश महल व लाखों रुपये की लागत से दिल्ली दरवाजा व गोल बावड़ी का सौंर्दयकरण भी कराया गया, लेकिन घटिया सामग्री का इस्तेमाल होने से इन इमारतों के ऊपर खर्च किया गया पैसा व्यर्थ ही बरबाद हो गया।
फरुखनगर रियासत के नवाब अहमद अली खान के दिल्ली की गद्दी पर विराजमान रहे बादशाहों से मधुर संबंध थे। इस कारण मुगल काल में उनका अहम स्थान था। दुश्मनों की निगाहों के चलते सेना को हमेशा सर्तक रहना पड़ता था। 1757 में भरतपुर के राजा सूरजमल ने फरुखनगर पर आक्रमण कर इसे जीत लिया था और इस पर लगभग सात साल तक शासन किया था। बाद में मुगल दरबार के बजीरे आजम गाजीउद्दीन के दखल के बाद राजा सूरजमल ने फिर से नवाब फौजदार खा को सौंप दिया था।
आजादी के छह दशक बीत जाने के बाद भी सरकार 1856 के स्वतंत्रता सेनानियों की स्थायी स्मृति बनाए रखने में कामयाब नही हो पाई है। 1857 में फरुखनगर के नवाब रहे अहमद अली खा की स्मृति में डाक टिकट जारी करना तो दूर उनका स्मारक भी नहीं बनवाया गया है।
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