पारिजात और सत्यभामा कथा | Parijaat and Satyabhama Katha | Movie | Tilak
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श्री कृष्ण की तीन पटरानियाँ थी रुक्मिणी, जामवंती और सत्यभामा। सत्यभामा अपने रूप के कारण अहंकार में रहती थी।सत्यभामा को अपनी सुंदरता और अपनी समन्तक मणि पर बहुत अहंकार था। सत्यभामा की एक दासी उसे कहती हैं की श्री कृष्ण रुक्मिणी को अधिक मानते हैं और उसे अधिक महत्व देते हैं। इस बात से वह अहंकार से क्रोधित हो जाती है और अगले दिन प्रात: रुक्मिणी के साथ वासुदेव की दर्शनों के लिए जाती है और रुक्मिणी से पहले श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए कहती है।
रुक्मिणी उसे अपने से पहले सत्यभामा को श्री कृष्ण की पूजा करने का अधिकार दे देती है। श्री कृष्ण रुक्मिणी को अंतर मन से बात करते हुए कहते हैं की आप सत्यभामा के अहंकार को दूर करे तो रुक्मिणी श्री कृष्ण को ही ये कार्य करने के लिए कह देती हैं। उन्हीं दिनों में दैत्य सुर नरकसुर ने तीनों लोकों में ऊधम मचाया हुआ था। वह ब्रह्मा की तपस्या कर शतियाँ प्राप्त कर लेता है और जब वह स्वर्ग ओर हमला करता है तो इंद्र देव उस से लड़ने के लिए जाते हैं पर उसे हरा नहीं पाते और उस से डर कर भाग जाते हैं। नरकासुर इंद्र की माता अदिति के पास चला जाता है और उनसे कहता है की आप स्वर्ग पर मेरा राज है और इंद्र की माता के कानों से कुंडल निकल कर ले जाता है और कहता है की देवताओं में यदि ताक़त है मुझसे अपनी माता के कुंडल ले जाए। देवता भगवान ब्रह्मा जी के पास जाते हैं झन ब्रह्मा जी देवताओं को बताते हैं की नर्कसुर के पास देवताओं से ना हारने का वरदान है इसलिए उन्हें सिर्फ़ श्री कृष्ण हे हरा सकते हैं क्योंकि वो मनुष्य रूप में धरती पर हैं।
इंद्र श्री कृष्ण के पास जाते हैं और उन्हें नरकासुर के बारे में बताते हैं। श्री कृष्ण नरकासुर से युद्ध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। सत्यभामा श्री कृष्ण के साथ नरकासुर से युद्ध करने के लिए जाती है। श्री कृष्ण नरकासुर को युद्ध के लिए ललकारते हैं। श्री कृष्ण नरकासुर को युद्ध में हरा देते हैं और सुदर्शन चक्र से उसका वध कर देते हैं। नरकासुर भु देवी का पुत्र था मरने के बाद वह धरती में समा जाता है और भु देवी वहाँ आकर अदिति के कुंडलश्री कृष्ण को दे देती हैं जिसे लेकर श्री कृष्ण इंद्रलोक में जाकर उन्हें अदिति को वापस लौटा देते हैं। इंद्र देव श्री कृष्ण और सत्यभमा के नरकासुर को मारने पर धन्यवाद करते हैं।
सत्यभमा को अदिति देव माता चिर योवन का आशीर्वाद देती हैं। इंद्र देव श्री कृष्ण को पारिजात वृक्ष का पुष्प देते हैं। श्री कृष्ण और सत्यभमा वापस द्वारिका आ जाते हैं। रुक्मिणी श्री कृष्ण की पूजा करती है। श्री कृष्ण इंद्र लोक से पारिजात के वृक्ष के फूल को रुक्मिणी को दे देते हैं। सत्यभामा को मिले चिर योवन के आशीर्वाद से बहुत खुश होती है तभी नारद जी वहाँ आते हैं और उनसे कहते हैं की श्री कृष्ण को इंद्र देव से मिले पारिजात पुष्प को रुक्मिणी को भेंट कर दिया है जिसे सुन रुक्मिणी को क्रोध आ जाता है। वह श्री कृष्ण से पारिजात का वृक्ष माँगती है और उसे पाने के लिए वह श्री कृष्ण से रुष्ट को जाती है। श्री कृष्ण सत्यभमा को समझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सत्यभमा पारिजात के वृक्ष को उसके लिए लाने की बात पर अड़ जाती है। श्री कृष्ण सत्यभामा को पारिजात का वृक्ष लाने के लिए मान जाते हैं। श्री कृष्ण नारद मुनि जी इंद्र देव के पास भेजते हैं और कहते हैं की इंद्र से कहो की श्री कृष्ण जी को अपनी पत्नी सत्यभमा के पुण्यक व्रत के लिए पारिजात के वृक्ष की कामना करते हैं।
जब यह बात इंद्र देव को नाराद जी उन्हें ये बताते हैं तो इंद्र देव क्रोधित हो उठते हैं और नारद जी को मना कर देते हैं की श्री मैं पारिजात का वृक्ष नहीं दे सकता। नारद जी श्री कृष्ण के पास जाते हैं और उन्हें कहते हैं की इंद्र ने पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर भेजने के लिए मना कर दिया है। श्री कृष्ण पारिजात का वृक्ष पाने के लिए हैं इंद्र देव से युद्ध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। श्री कृष्ण इंद्र लोक पहुँच जाते हैं और इंद्र को युद्ध के लिए ललकारते हैं। श्री कृष्ण और इंद्र देव में युद्ध शुरू हो जाता है युद्ध करते करते संध्या को जाती है और इंद्र देव युद्ध रोकने के लिए कह देते हैं श्री कृष्ण पर्यात्र पर्वत पर जाकर शिव की आराधना करने के लिए चले जाते हैं। श्री कृष्ण शिव रात्रि के उपलक्ष में शिव पूजन करते हैं। अगले दिन श्री कृष्ण और इंद्र देव में युद्ध शुरू हो जाता है। श्री कृष्ण इंद्र के वज्र को समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र को चलाते हैं जब सुदर्शन चक्र इंद्र के वज्र को ख़त्म करने के बाद इंद्र देव के पास जाता हैं, तभी अदिति वहाँ आ जाती है और श्री करिशं को युद्ध रोकने के लिए कहती हैं और उन्हें पारिजात का वृक्ष दे देती हैं और कहती हैं की यह वृक्ष सत्यभामा के व्रत के पूर्ण होते ही वापस इंद्र लोक आ जाएगा।
श्री कृष्ण इंद्र को उसका वज्र वापस दे देते है और पारिजात का वृक्ष लेकर वापस द्वारिका आ जाते हैं। श्री कृष्ण और इंद्र के बीच हुए युद्ध के बारे में नारद मुनि जी देवी सत्यभामा को सारी बातें बताते हैं। श्री कृष्ण सत्यभामा के पास आते हैं सत्यभामा। सत्यभामा श्री कृष्ण का स्वागत करती हैं। सत्यभामा को श्री कृष्ण पारिजात के वृक्ष का उपहार में देते हैं और उनसे कहते हैं की अपना पुण्यक व्रत को पूरा करे। सत्यभामा अपने पुण्यक व्रत की शुरू करती हैं। नारद मुनि जी पुण्यक व्रत को शुरू करवाते हैं। श्री कृष्ण और सत्यभामा व्रत का पूजन शुरू करते हैं और गणेश जी की आरती करते हैं।
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श्री कृष्ण की तीन पटरानियाँ थी रुक्मिणी, जामवंती और सत्यभामा। सत्यभामा अपने रूप के कारण अहंकार में रहती थी।सत्यभामा को अपनी सुंदरता और अपनी समन्तक मणि पर बहुत अहंकार था। सत्यभामा की एक दासी उसे कहती हैं की श्री कृष्ण रुक्मिणी को अधिक मानते हैं और उसे अधिक महत्व देते हैं। इस बात से वह अहंकार से क्रोधित हो जाती है और अगले दिन प्रात: रुक्मिणी के साथ वासुदेव की दर्शनों के लिए जाती है और रुक्मिणी से पहले श्री कृष्ण की पूजा करने के लिए कहती है।
रुक्मिणी उसे अपने से पहले सत्यभामा को श्री कृष्ण की पूजा करने का अधिकार दे देती है। श्री कृष्ण रुक्मिणी को अंतर मन से बात करते हुए कहते हैं की आप सत्यभामा के अहंकार को दूर करे तो रुक्मिणी श्री कृष्ण को ही ये कार्य करने के लिए कह देती हैं। उन्हीं दिनों में दैत्य सुर नरकसुर ने तीनों लोकों में ऊधम मचाया हुआ था। वह ब्रह्मा की तपस्या कर शतियाँ प्राप्त कर लेता है और जब वह स्वर्ग ओर हमला करता है तो इंद्र देव उस से लड़ने के लिए जाते हैं पर उसे हरा नहीं पाते और उस से डर कर भाग जाते हैं। नरकासुर इंद्र की माता अदिति के पास चला जाता है और उनसे कहता है की आप स्वर्ग पर मेरा राज है और इंद्र की माता के कानों से कुंडल निकल कर ले जाता है और कहता है की देवताओं में यदि ताक़त है मुझसे अपनी माता के कुंडल ले जाए। देवता भगवान ब्रह्मा जी के पास जाते हैं झन ब्रह्मा जी देवताओं को बताते हैं की नर्कसुर के पास देवताओं से ना हारने का वरदान है इसलिए उन्हें सिर्फ़ श्री कृष्ण हे हरा सकते हैं क्योंकि वो मनुष्य रूप में धरती पर हैं।
इंद्र श्री कृष्ण के पास जाते हैं और उन्हें नरकासुर के बारे में बताते हैं। श्री कृष्ण नरकासुर से युद्ध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। सत्यभामा श्री कृष्ण के साथ नरकासुर से युद्ध करने के लिए जाती है। श्री कृष्ण नरकासुर को युद्ध के लिए ललकारते हैं। श्री कृष्ण नरकासुर को युद्ध में हरा देते हैं और सुदर्शन चक्र से उसका वध कर देते हैं। नरकासुर भु देवी का पुत्र था मरने के बाद वह धरती में समा जाता है और भु देवी वहाँ आकर अदिति के कुंडलश्री कृष्ण को दे देती हैं जिसे लेकर श्री कृष्ण इंद्रलोक में जाकर उन्हें अदिति को वापस लौटा देते हैं। इंद्र देव श्री कृष्ण और सत्यभमा के नरकासुर को मारने पर धन्यवाद करते हैं।
सत्यभमा को अदिति देव माता चिर योवन का आशीर्वाद देती हैं। इंद्र देव श्री कृष्ण को पारिजात वृक्ष का पुष्प देते हैं। श्री कृष्ण और सत्यभमा वापस द्वारिका आ जाते हैं। रुक्मिणी श्री कृष्ण की पूजा करती है। श्री कृष्ण इंद्र लोक से पारिजात के वृक्ष के फूल को रुक्मिणी को दे देते हैं। सत्यभामा को मिले चिर योवन के आशीर्वाद से बहुत खुश होती है तभी नारद जी वहाँ आते हैं और उनसे कहते हैं की श्री कृष्ण को इंद्र देव से मिले पारिजात पुष्प को रुक्मिणी को भेंट कर दिया है जिसे सुन रुक्मिणी को क्रोध आ जाता है। वह श्री कृष्ण से पारिजात का वृक्ष माँगती है और उसे पाने के लिए वह श्री कृष्ण से रुष्ट को जाती है। श्री कृष्ण सत्यभमा को समझाने की कोशिश करते हैं। लेकिन सत्यभमा पारिजात के वृक्ष को उसके लिए लाने की बात पर अड़ जाती है। श्री कृष्ण सत्यभामा को पारिजात का वृक्ष लाने के लिए मान जाते हैं। श्री कृष्ण नारद मुनि जी इंद्र देव के पास भेजते हैं और कहते हैं की इंद्र से कहो की श्री कृष्ण जी को अपनी पत्नी सत्यभमा के पुण्यक व्रत के लिए पारिजात के वृक्ष की कामना करते हैं।
जब यह बात इंद्र देव को नाराद जी उन्हें ये बताते हैं तो इंद्र देव क्रोधित हो उठते हैं और नारद जी को मना कर देते हैं की श्री मैं पारिजात का वृक्ष नहीं दे सकता। नारद जी श्री कृष्ण के पास जाते हैं और उन्हें कहते हैं की इंद्र ने पारिजात वृक्ष को पृथ्वी पर भेजने के लिए मना कर दिया है। श्री कृष्ण पारिजात का वृक्ष पाने के लिए हैं इंद्र देव से युद्ध करने के लिए तैयार हो जाते हैं। श्री कृष्ण इंद्र लोक पहुँच जाते हैं और इंद्र को युद्ध के लिए ललकारते हैं। श्री कृष्ण और इंद्र देव में युद्ध शुरू हो जाता है युद्ध करते करते संध्या को जाती है और इंद्र देव युद्ध रोकने के लिए कह देते हैं श्री कृष्ण पर्यात्र पर्वत पर जाकर शिव की आराधना करने के लिए चले जाते हैं। श्री कृष्ण शिव रात्रि के उपलक्ष में शिव पूजन करते हैं। अगले दिन श्री कृष्ण और इंद्र देव में युद्ध शुरू हो जाता है। श्री कृष्ण इंद्र के वज्र को समाप्त करने के लिए सुदर्शन चक्र को चलाते हैं जब सुदर्शन चक्र इंद्र के वज्र को ख़त्म करने के बाद इंद्र देव के पास जाता हैं, तभी अदिति वहाँ आ जाती है और श्री करिशं को युद्ध रोकने के लिए कहती हैं और उन्हें पारिजात का वृक्ष दे देती हैं और कहती हैं की यह वृक्ष सत्यभामा के व्रत के पूर्ण होते ही वापस इंद्र लोक आ जाएगा।
श्री कृष्ण इंद्र को उसका वज्र वापस दे देते है और पारिजात का वृक्ष लेकर वापस द्वारिका आ जाते हैं। श्री कृष्ण और इंद्र के बीच हुए युद्ध के बारे में नारद मुनि जी देवी सत्यभामा को सारी बातें बताते हैं। श्री कृष्ण सत्यभामा के पास आते हैं सत्यभामा। सत्यभामा श्री कृष्ण का स्वागत करती हैं। सत्यभामा को श्री कृष्ण पारिजात के वृक्ष का उपहार में देते हैं और उनसे कहते हैं की अपना पुण्यक व्रत को पूरा करे। सत्यभामा अपने पुण्यक व्रत की शुरू करती हैं। नारद मुनि जी पुण्यक व्रत को शुरू करवाते हैं। श्री कृष्ण और सत्यभामा व्रत का पूजन शुरू करते हैं और गणेश जी की आरती करते हैं।
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