देश का सत्यानाश कर दिया महात्मा गाँधी की इन गलतियों ने !
महात्मा गांधी को पुरे विश्व में अहिंसा और शांति का सन्देश देने के लिए जाना जाता है उन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है लेकिन गलती हर इंसान से होती है तो महात्मा गाँधी से भी हुई और गलतिया भी ऐसी जिन्हें आज पूरा देश भुगत रहा है
गाँधी जी की जिद -
गाँधी जी बेहद जिद्दी थे उन्होंने काफी बड़े और प्रभावी आंदोलन किये,, पर आदर्शो एवं सिद्धांतों के नाम पर उन आंदोलनों को खुद ही ख़त्म कर दिया गांधी जी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कितन बड़ा नेता हैं या उसने कितने अच्छे काम किये हैं जबतक वो गाँधी जी विचारों से सहमत नहीं होता था , गाँधी जी का समर्थन उन्हें नही मिलता था , देश के बंटवारे के बाद भी वो पाकिस्तान को पैसे देने के जिद लेके भूख हड़ताल पर बैठ गए थे और उनकी जिद की वजह से ही भारत को 55 करोड़ का भुगतान पाकिस्तान को करना पड़ा था जबकि पाकिस्तान कश्मीर को कब्जाने के लिए भारत पर हमला भी कर चूका था जिसकी वजह से सरदार पटेल ने गांधीजी को समझाने की बहुत कोशिश की कि इन पैसे का इस्तेमाल पाकिस्तान हमारे खिलाफ है हथियार बनाने के लिए करेगा लेकिन फिर भी गाँधी जी ने अपनी जिद्द नही छोड़ी
भगत सिंह की फांसी
गांधीजी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रोक सकते थे पर कई लोगों का यह मानना है कि गांधीजी ने भगत सिंह के की फांसी पर कभी गंभीरता दिखाई ही नहीं। हालांकि भारत के वायसरॉय को लिखे पत्र में गांधी जी ने लिखा था के वे भगत सिंह के फांसी वाले फैसले की पुन: समीक्षा करे पर यदि गांधीजी चाहते तो फांसी के खिलाफ आंदोलन कर सकते थे या फिर उनलोगो का साथ दे सकते थे जो भगत सिंह और उनके साथियों के फांसी के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे पर उन्होंने सिर्फ पत्र लिखने और विनती करने के अलावा कुछ नहीं किया। प्रसिद्द लेखक A.G NOORANI अपनी किताब थे “ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह में लिखा है के गांधी जी के प्रयास आधे अधूरे थे, उन्होंने कभी दिल से प्रयास किया ही नहीं! जब जेल में भगत सिंह और उनके साथी भूख हड़ताल पर थे, गांधीजी ने उनसे मिलने या उन्हें देखने तक की जहमत नहीं उठाई ! और तो और लार्ड इरविन को लिखे पत्र मैं गांधी जी ने फांसी के फैसले को रद्द करने के बजाये उसे सिर्फ कुछ समय तक टालने का आग्रह किया था।”
असहयोग आंदोलन को वापिस लेना
1920 की बात है जब गांधीजी के ही नेतृत्व में देशव्यापी असहयोग आंदोलन चरम पर था पर चौरा चौरी में कुछ उग्र लोगों ने एक पुलिस थाने को जला दिया इससे आहृत होकर गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया। वजह सिर्फ एक थी गांधीजी के आदर्श!! सिर्फ अपने अहिंसा के आदर्शों की रक्षा करने के लिए उन्होंने एक देशव्यापी आंदोलन को वापस ले लिया! आंदोलन के बाद 19 लोगों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी. 6 की मृत्यु पुलिस कस्टडी में हुई एवं 110 लोगो को आजीवन कारावास की सजा मिली! और ये सारी गिरफ्तारियां और फैसले सिर्फ संदेह और झूठे गवाहों के आधार पर हुए। क्या ये देशवासियो के साथ अन्याय नहीं था, क्या फांसी देना हिंसक नहीं था पर गांधीजी के आदर्श उनकी नजर में गरीब हिन्दुस्तानियों की मौत से कहीं अधिक बढ़ कर थे! यहाँ तक के उन्होंने आंदोलन वापस लेकर अंग्रेजो को द्वितीय विश्वयुद्ध में सहयोग का आश्वाशन दिया।
सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस छोड़ने को मजबूर करना
ऐसा माना जाता है के सवर्प्रथम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने ही गांधीजी को रास्ट्रपिता कह के सम्भोधित किया था नेताजी हमेशा गाँधी जी का सम्मान करते रहे लेकिन गाँधी जी को नेताजी बिलकुल नहीं भाते थे ,गाँधी जी कहते थे के नेता वो होता है जो जनता द्वारा चुन कर आये लेकिन जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 14 में से तेरह वोट लेकर नेहरु को हरा दिया तो उनकी ये जीत गाँधी जी को रास नहीं आये ,,,उस समय पार्टी में गाँधी जी के चहेते नेहरु को कोई पसंद नहीं करता था फलस्वरूप नेहरु को हार का सामना करना पड़ा , नेताजी बिलकुल गणतांत्रिक तरके से जीते थे लेकिन गाँधी जी उनकी जीत से बहुत दुखी थे उन्होंने नेहरु की हार को अपनी हार बताया और फिर जिद्द पर बैठ गए उन्होंने नेताजी को मजबूर करके पार्टी से निकल दिया जिससे वे अपने प्रिय नेहरु को कांग्रेस अध्यक्ष के पद से सम्मानित कर सके
भारत का विभाजन
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद ये साफ़ हो गया था की भारतीय अब और नहीं सहेंगे! इसे भांपते हुए इंग्लिश शासन ने अपना अंतिम दांव खेला, उन्होंने कहा की विश्व युद्ध में भारत हमारा सहयोग करे और हम बदले में उसे आज़ाद कर देंगे। गांधी ने , अपनी आदत के अनुसार घुटने टेक दिए और आन्दोलन वापिस लेके अंग्रेजो को विश्वयुद्ध की समाप्ति तक का वक्त दिया जबकि आज़ादी हमें उससे पहले ही मिल सकती थी। इस आन्दोलन वापिस लेने के बाद देश में धर्म के आधार पर कई सारी पार्टिया बन गई जिससे देश के विभाजन की बात उठने लगी उस समय कांग्रेस के नेताओं का कहना था विभाजन टाला नहीं जा सकता और उन्होंने विभाजन पर सहमति दे दी पर यदि गांधीजी अपनी बात पर अड़ जाते तो भी इस विभाजन को रोका जा सकता था! ऐसी ही समस्या अमेरिका की आज़ादी के वक़्त अब्राहम लिंकन के सामने थी पर देश के टुकड़े करने के बजाए उन्होंने एक लम्बी और हिंसक लड़ाई लड़ी तब जा कर अमेरिका आज यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका बना! लेकिन गांधीजी की अहिंसा यहाँ भी देश हित पर भारी पड़ी नतीजन देश के टुकड़े हो गए और देश कितना अहिंसावादी और शांतिप्रय तरीके से अलग हुआ था ये बात किसी से छुपी नहीं है
लेकिन इन सारी ग़लतियो के बावजूद भी गाँधीजी का भारत की स्वतंत्रता में एक अहम योगदान रहा है जिसे हम नज़रअंदाज कतई नही कर सकते!
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गाँधी जी की जिद -
गाँधी जी बेहद जिद्दी थे उन्होंने काफी बड़े और प्रभावी आंदोलन किये,, पर आदर्शो एवं सिद्धांतों के नाम पर उन आंदोलनों को खुद ही ख़त्म कर दिया गांधी जी को कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई कितन बड़ा नेता हैं या उसने कितने अच्छे काम किये हैं जबतक वो गाँधी जी विचारों से सहमत नहीं होता था , गाँधी जी का समर्थन उन्हें नही मिलता था , देश के बंटवारे के बाद भी वो पाकिस्तान को पैसे देने के जिद लेके भूख हड़ताल पर बैठ गए थे और उनकी जिद की वजह से ही भारत को 55 करोड़ का भुगतान पाकिस्तान को करना पड़ा था जबकि पाकिस्तान कश्मीर को कब्जाने के लिए भारत पर हमला भी कर चूका था जिसकी वजह से सरदार पटेल ने गांधीजी को समझाने की बहुत कोशिश की कि इन पैसे का इस्तेमाल पाकिस्तान हमारे खिलाफ है हथियार बनाने के लिए करेगा लेकिन फिर भी गाँधी जी ने अपनी जिद्द नही छोड़ी
भगत सिंह की फांसी
गांधीजी चाहते तो भगत सिंह की फांसी रोक सकते थे पर कई लोगों का यह मानना है कि गांधीजी ने भगत सिंह के की फांसी पर कभी गंभीरता दिखाई ही नहीं। हालांकि भारत के वायसरॉय को लिखे पत्र में गांधी जी ने लिखा था के वे भगत सिंह के फांसी वाले फैसले की पुन: समीक्षा करे पर यदि गांधीजी चाहते तो फांसी के खिलाफ आंदोलन कर सकते थे या फिर उनलोगो का साथ दे सकते थे जो भगत सिंह और उनके साथियों के फांसी के विरोध में शांतिपूर्ण आंदोलन कर रहे थे पर उन्होंने सिर्फ पत्र लिखने और विनती करने के अलावा कुछ नहीं किया। प्रसिद्द लेखक A.G NOORANI अपनी किताब थे “ट्रायल ऑफ़ भगत सिंह में लिखा है के गांधी जी के प्रयास आधे अधूरे थे, उन्होंने कभी दिल से प्रयास किया ही नहीं! जब जेल में भगत सिंह और उनके साथी भूख हड़ताल पर थे, गांधीजी ने उनसे मिलने या उन्हें देखने तक की जहमत नहीं उठाई ! और तो और लार्ड इरविन को लिखे पत्र मैं गांधी जी ने फांसी के फैसले को रद्द करने के बजाये उसे सिर्फ कुछ समय तक टालने का आग्रह किया था।”
असहयोग आंदोलन को वापिस लेना
1920 की बात है जब गांधीजी के ही नेतृत्व में देशव्यापी असहयोग आंदोलन चरम पर था पर चौरा चौरी में कुछ उग्र लोगों ने एक पुलिस थाने को जला दिया इससे आहृत होकर गांधीजी ने आंदोलन वापस ले लिया। वजह सिर्फ एक थी गांधीजी के आदर्श!! सिर्फ अपने अहिंसा के आदर्शों की रक्षा करने के लिए उन्होंने एक देशव्यापी आंदोलन को वापस ले लिया! आंदोलन के बाद 19 लोगों को मृत्युदंड की सजा सुनाई गयी. 6 की मृत्यु पुलिस कस्टडी में हुई एवं 110 लोगो को आजीवन कारावास की सजा मिली! और ये सारी गिरफ्तारियां और फैसले सिर्फ संदेह और झूठे गवाहों के आधार पर हुए। क्या ये देशवासियो के साथ अन्याय नहीं था, क्या फांसी देना हिंसक नहीं था पर गांधीजी के आदर्श उनकी नजर में गरीब हिन्दुस्तानियों की मौत से कहीं अधिक बढ़ कर थे! यहाँ तक के उन्होंने आंदोलन वापस लेकर अंग्रेजो को द्वितीय विश्वयुद्ध में सहयोग का आश्वाशन दिया।
सुभाष चन्द्र बोस को कांग्रेस छोड़ने को मजबूर करना
ऐसा माना जाता है के सवर्प्रथम नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने ही गांधीजी को रास्ट्रपिता कह के सम्भोधित किया था नेताजी हमेशा गाँधी जी का सम्मान करते रहे लेकिन गाँधी जी को नेताजी बिलकुल नहीं भाते थे ,गाँधी जी कहते थे के नेता वो होता है जो जनता द्वारा चुन कर आये लेकिन जब कांग्रेस के अध्यक्ष पद के चुनाव में नेताजी सुभाष चन्द्र बोस ने 14 में से तेरह वोट लेकर नेहरु को हरा दिया तो उनकी ये जीत गाँधी जी को रास नहीं आये ,,,उस समय पार्टी में गाँधी जी के चहेते नेहरु को कोई पसंद नहीं करता था फलस्वरूप नेहरु को हार का सामना करना पड़ा , नेताजी बिलकुल गणतांत्रिक तरके से जीते थे लेकिन गाँधी जी उनकी जीत से बहुत दुखी थे उन्होंने नेहरु की हार को अपनी हार बताया और फिर जिद्द पर बैठ गए उन्होंने नेताजी को मजबूर करके पार्टी से निकल दिया जिससे वे अपने प्रिय नेहरु को कांग्रेस अध्यक्ष के पद से सम्मानित कर सके
भारत का विभाजन
1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन के बाद ये साफ़ हो गया था की भारतीय अब और नहीं सहेंगे! इसे भांपते हुए इंग्लिश शासन ने अपना अंतिम दांव खेला, उन्होंने कहा की विश्व युद्ध में भारत हमारा सहयोग करे और हम बदले में उसे आज़ाद कर देंगे। गांधी ने , अपनी आदत के अनुसार घुटने टेक दिए और आन्दोलन वापिस लेके अंग्रेजो को विश्वयुद्ध की समाप्ति तक का वक्त दिया जबकि आज़ादी हमें उससे पहले ही मिल सकती थी। इस आन्दोलन वापिस लेने के बाद देश में धर्म के आधार पर कई सारी पार्टिया बन गई जिससे देश के विभाजन की बात उठने लगी उस समय कांग्रेस के नेताओं का कहना था विभाजन टाला नहीं जा सकता और उन्होंने विभाजन पर सहमति दे दी पर यदि गांधीजी अपनी बात पर अड़ जाते तो भी इस विभाजन को रोका जा सकता था! ऐसी ही समस्या अमेरिका की आज़ादी के वक़्त अब्राहम लिंकन के सामने थी पर देश के टुकड़े करने के बजाए उन्होंने एक लम्बी और हिंसक लड़ाई लड़ी तब जा कर अमेरिका आज यूनाइटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका बना! लेकिन गांधीजी की अहिंसा यहाँ भी देश हित पर भारी पड़ी नतीजन देश के टुकड़े हो गए और देश कितना अहिंसावादी और शांतिप्रय तरीके से अलग हुआ था ये बात किसी से छुपी नहीं है
लेकिन इन सारी ग़लतियो के बावजूद भी गाँधीजी का भारत की स्वतंत्रता में एक अहम योगदान रहा है जिसे हम नज़रअंदाज कतई नही कर सकते!
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